कार्यस्थल पर वरिष्ठ सहकर्मी की फटकार ‘‘इरादतन किया गया अपमान’’ नहीं?, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-आरोप पूरी तरह से काल्पनिक

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: February 16, 2025 17:58 IST2025-02-16T17:57:39+5:302025-02-16T17:58:50+5:30

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि महज गाली-गलौज, अशिष्टता, असभ्यता या अशिष्टता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 के तहत इरादतन किया गया अपमान नहीं है।

Supreme Court says Senior colleague's rebuke workplace not "intentional insult" allegations completely imaginary | कार्यस्थल पर वरिष्ठ सहकर्मी की फटकार ‘‘इरादतन किया गया अपमान’’ नहीं?, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-आरोप पूरी तरह से काल्पनिक

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Highlightsआईपीसी की धारा 504 शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित है।भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत धारा 352 से बदल दिया गया है, जो जुलाई 2024 से प्रभावी है। 2022 के आपराधिक मामले को खारिज करते हुए आया, जिन पर एक सहायक प्रोफेसर का अपमान करने का आरोप था।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कार्यस्थल पर वरिष्ठ सहकर्मी की फटकार ‘‘इरादतन किया गया अपमान’’ नहीं है जिसके लिए आपराधिक कार्यवाही की आवश्यकता हो। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे मामलों में व्यक्तियों के विरुद्ध आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति देने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं, जिससे कार्यस्थल पर अपेक्षित संपूर्ण अनुशासनात्मक माहौल बिगड़ सकता है। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि महज गाली-गलौज, अशिष्टता, असभ्यता या अशिष्टता भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 504 के तहत इरादतन किया गया अपमान नहीं है।

आईपीसी की धारा 504 शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित है। दो साल तक की जेल की सजा के प्रावधान वाले इस अपराध को अब भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत धारा 352 से बदल दिया गया है, जो जुलाई 2024 से प्रभावी है। शीर्ष अदालत का यह फैसला राष्ट्रीय बौद्धिक दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान के कार्यवाहक निदेशक के खिलाफ 2022 के आपराधिक मामले को खारिज करते हुए आया, जिन पर एक सहायक प्रोफेसर का अपमान करने का आरोप था।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि निदेशक ने उनके खिलाफ उच्च अधिकारियों को शिकायत करने को लेकर अन्य कर्मचारियों के सामने उन्हें फटकार लगाई। यह भी आरोप लगाया गया कि निदेशक संस्थान में पर्याप्त पीपीई किट उपलब्ध कराने में विफल रहे, जिससे कोविड-19 के फैलने का बड़ा खतरा पैदा हो गया।

न्यायालय ने कहा कि आरोप पत्र और उसमें दिए गए दस्तावेजों के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि आरोप पूरी तरह से काल्पनिक हैं और किसी भी तरह से उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 269 (लापरवाहीपूर्ण कार्य जिससे खतरनाक बीमारी फैल सकती है) और 270 (जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाला दुर्भावनापूर्ण कार्य) के तहत अपराध के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता।

पीठ ने कहा, ‘‘इसलिए, हमारा मानना है कि वरिष्ठ सहकर्मी की चेतावनी को धारा 504, आईपीसी के तहत ‘उकसाने के इरादे से जानबूझकर अपमान’ के रूप में नहीं माना जा सकता है, बशर्ते कि चेतावनी कार्यस्थल से संबंधित मामलों से संबंधित हो, जिसमें अनुशासन और उसमें कर्तव्यों का निर्वहन शामिल हो।’’

न्यायालय के दस फरवरी के फैसले में कहा गया, ‘‘यह एक ऐसे व्यक्ति की ओर से उचित अपेक्षा है जो यह देखता है कि उसके कनिष्ठ सहकर्मी अपने पेशेवर कर्तव्यों का पूरी ईमानदारी और समर्पण के साथ निर्वहन करें।’’

Web Title: Supreme Court says Senior colleague's rebuke workplace not "intentional insult" allegations completely imaginary

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