चुनावी बॉण्ड योजना की एसआईटी जांच नहीं होगी, उच्चतम न्यायालय ने याचिकाएं खारिज कीं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: August 2, 2024 19:34 IST2024-08-02T19:31:08+5:302024-08-02T19:34:20+5:30

उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना की अदालत की निगरानी में जांच के अनुरोध वाली कई याचिकाओं को शुक्रवार को खारिज करते हुए कहा कि वह ‘रोविंग इनक्वायरी’ (मामले से असंबद्ध जांच) का आदेश नहीं दे सकता।

Supreme Court rejects petitions regarding SIT investigation into electoral bond scheme | चुनावी बॉण्ड योजना की एसआईटी जांच नहीं होगी, उच्चतम न्यायालय ने याचिकाएं खारिज कीं

उच्चतम न्यायालय

Highlightsउच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना की एसआईटी जांच को लेकर याचिकाएं खारिज कींपीठ ने कहा- आपराधिक गड़बड़ियों से जुड़े मामलों को अनुच्छेद 32 के तहत नहीं लाया जाना चाहिएअनुच्छेद 32 नागरिकों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर सीधे उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार देता है

नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने चुनावी बॉण्ड योजना की अदालत की निगरानी में जांच के अनुरोध वाली कई याचिकाओं को शुक्रवार को खारिज करते हुए कहा कि वह ‘रोविंग इनक्वायरी’ (मामले से असंबद्ध जांच) का आदेश नहीं दे सकता। प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि जब आपराधिक कानून प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले सामान्य कानून के तहत उपलब्ध उपायों का उपयोग नहीं किया गया है, तो सेवानिवृत्त न्यायाधीश के तहत जांच का आदेश देना समय पूर्व और अनुचित होगा। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह अनुबंध देने के बदले में किसी प्रकार लाभ पहुंचाए जाने की धारणा के आधार पर चुनावी बॉण्ड की खरीद के संबंध में ‘रोविंग इनक्वायरी’ के आदेश नहीं दे सकती। पीठ ने कहा, ‘‘अदालत ने चुनावी बॉण्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार किया, क्योंकि इसमें न्यायिक समीक्षा का पहलू था। लेकिन आपराधिक गड़बड़ियों से जुड़े मामलों को अनुच्छेद 32 के तहत नहीं लाया जाना चाहिए, जबकि कानून के तहत उपाय उपलब्ध हैं।’’ 

अनुच्छेद 32 नागरिकों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर सीधे उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने का अधिकार देता है। शीर्ष अदालत ने याचिकाकर्ताओं के इस अनुरोध को भी ठुकरा दिया, जिसमें अधिकारियों को राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के माध्यम से मिली धनराशि की वसूली करने तथा उनका आयकर मूल्यांकन फिर से कराने का निर्देश देने की गुहार लगाई गई थी। पीठ ने कहा कि ये उपाय आयकर अधिनियम के तहत अधिकारियों द्वारा वैधानिक कार्यों के प्रयोग से संबंधित हैं। 

पीठ ने कहा, ‘‘इस चरण में अदालत द्वारा इस तरह के कोई भी निर्देश जारी करना विवादित तथ्यों पर एक निर्णायक राय के समान होगा।’’ पीठ ने कहा, ‘‘हमारा यह मानना ​​है कि इस न्यायालय के किसी पूर्व न्यायाधीश या अन्य की अध्यक्षता में एसआईटी के गठन का आदेश उन उपायों के आधार पर नहीं दिया जाना चाहिए, जो दोनों आपराधिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने वाले कानून के तहत उपलब्ध हैं।’’ 

शीर्ष अदालत गैर सरकारी संगठनों ‘कॉमन कॉज’ और ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन’ (सीपीआईएल) तथा डॉ खेम सिंह भट्टी, सुदीप नारायण तमन्कर और जय प्रकाश शर्मा द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। सुनवाई की शुरुआत में ‘कॉमन कॉज’ और सीपीआईएल की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी कि उच्चतम न्यायालय द्वारा चुनावी बॉण्ड योजना को रद्द करने के बाद जो खुलासे हुए हैं, उनसे पता चलता है कि बॉण्ड खरीदने वाली कारोबारी इकाइयों और चंदा पाने वाले राजनीतिक दलों के बीच ‘‘लेन-देन’’ हुआ था। उन्होंने कहा कि यह एक असाधारण मामला है, जो शीर्ष अदालत के आदेश पर किए गए खुलासे के बाद बड़े पैमाने पर संदिग्ध लेन-देन को दर्शाता है। 

भट्टी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने कहा कि याचिकाकर्ता चुनावी बॉण्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त धन को जब्त करने का निर्देश देने का अनुरोध कर रहे हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि चुनावी बॉण्ड मामले में शीर्ष अदालत के फैसले में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि फायदे पहुंचाने के एवज में लिया गया चंदा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत रिश्वतखोरी के समान होगा। दोनों गैर सरकारी संगठनों की जनहित याचिका में इस योजना की आड़ में राजनीतिक दलों, कॉरपोरेशन और जांच एजेंसियों के बीच स्पष्ट मिलीभगत का आरोप लगाया गया। चुनावी बॉण्ड योजना को ‘‘घोटाला’’ करार देते हुए, याचिका में अधिकारियों को ‘‘शेल (छद्म) कंपनियों और घाटे वाली कंपनियों के वित्तपोषण के स्रोत की जांच करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया, जिन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों को चंदा दिया, जैसा कि निर्वाचन आयोग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है।’’ 

याचिका में अधिकारियों को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया कि वे कंपनियों द्वारा ‘‘परस्पर लाभ के लिए चंदा के तौर पर दिए गए धन को वसूल करें, जहां ये अपराध की आय पाए जाते हैं।’’ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार द्वारा शुरू की गई राजनीतिक वित्तपोषण की चुनावी बॉण्ड योजना को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 15 फरवरी को रद्द कर दिया था। उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद, योजना के अंतर्गत अधिकृत वित्तीय संस्थान भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने आंकड़ों को निर्वाचन आयोग के साथ साझा किया, जिसने बाद में इसे सार्वजनिक कर दिया। 

याचिका में कहा गया, ‘‘चुनावी बॉण्ड घोटाले में 2जी घोटाले या कोयला घोटाले के विपरीत धन का लेन-देन हुआ है, जहां स्पेक्ट्रम और कोयला खनन पट्टों का आवंटन मनमाने ढंग से किया गया था, लेकिन धन के लेन-देन का कोई सबूत नहीं था। फिर भी इस अदालत ने उन दोनों मामलों में अदालत की निगरानी में जांच का आदेश दिया, विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति की और उन मामलों से निपटने के लिए विशेष अदालतें बनाईं।’’ याचिका में दावा किया गया कि सरकारी एजेंसियों की जांच के घेरे में आई कई कंपनियों ने जांच के परिणाम को प्रभावित करने के लिए सत्तारूढ़ पार्टी को बड़ी रकम दान की। 


(इनपुट-भाषा )

Web Title: Supreme Court rejects petitions regarding SIT investigation into electoral bond scheme

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