धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान, कहा- समलैंगिक संबंधों से नहीं होती एड्स जैसी बीमारियां
By भाषा | Published: July 17, 2018 10:09 PM2018-07-17T22:09:05+5:302018-07-17T22:09:05+5:30
सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि, विक्टोरिया युग की नैतिकता, निषेध, असुरक्षित यौन संबंध आदि से एड्स जैसे यौन संचारित बीमारियों (एसटीडी) का प्रसार हुआ और इसका दोष समलैंगिक संबंधों को नहीं दिया जा सकता। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि यौन संबंधों को अपराध के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।
नई दिल्ली, 17 जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि, विक्टोरिया युग की नैतिकता, निषेध, असुरक्षित यौन संबंध आदि से एड्स जैसे यौन संचारित बीमारियों (एसटीडी) का प्रसार हुआ और इसका दोष समलैंगिक संबंधों को नहीं दिया जा सकता। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि यौन संबंधों को अपराध के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।
न्यायालय ने वेश्यावृत्ति और समलैंगिक संबंधों जैसे कार्यों पर प्रतिबंध को एसटीडी के प्रसार की वजहों में से एक बताया। न्यायालय ने कहा कि यदि आप वेश्यावृत्ति का लाइसेंस देते हैं , तो आप इसे नियंत्रित करते हैं। अगर आप इसे विक्टोरिया युग की नैतिकता के कारण छिपाते हैं तो इससे केवल स्वास्थ्य चिंताएं पैदा होंगी।
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प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने उन याचिकाओं पर अपना फैसला आज सुरक्षित रख लिया जिनमें परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है।
पीठ ने कहा कि यौन संचारित संक्रमित बीमारियों का कारण यौन संबंध नहीं बल्कि असुरक्षित संबंध है। एक ग्रामीण महिला को पति से यह बीमारी मिल सकती है जो प्रवासी कामगार है।
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