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CAA पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- देश कठिन दौर से गुजर रहा है और बहुत अधिक हिंसा हो रही है, शीघ्र सुनवाई से इंकार

By भाषा | Updated: January 9, 2020 20:43 IST

नागरिकता संशोधन कानून, 2019 में 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आये हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

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ठळक मुद्देपीठ ने याचिका पर अचरज व्यक्त करते हुये कहा कि पहली बार कोई किसी कानून को संवैधानिक घोषित करने का अनुरोध कर रहा है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस समय इतनी अधिक हिंसा हो रही है और देश कठिन दौर से गुजर रहा है और हमारा प्रयास शांति के लिये होना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने नागरिकता संशोधन कानून को संवैधानिक घोषित करने के लिये दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई से इंकार करते हुये बृहस्पतिवार को कहा कि इस समय देश कठिन दौर से गुजर रहा है और बहुत अधिक हिंसा हो रही है।

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत की पीठ ने याचिका पर अचरज व्यक्त करते हुये कहा कि पहली बार कोई किसी कानून को संवैधानिक घोषित करने का अनुरोध कर रहा है।

पीठ ने कहा कि वह हिंसा थमने के बाद नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘इस समय इतनी अधिक हिंसा हो रही है और देश कठिन दौर से गुजर रहा है और हमारा प्रयास शांति के लिये होना चाहिए।

इस न्यायालय का काम कानून की वैधता निर्धारित करना है न कि उसे संवैधानिक घोषित करना।’’ न्यायालय ने यह टिप्पणी उस वक्त की जब अधिवक्ता विनीत ढांडा ने नागरिकता संशोधन कानून को संवैधानिक घोषित करने और सभी राज्यों को इस कानून पर अमल करने का निर्देश देने के लिये दायर याचिका सुनवाई के लिये शीघ्र सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया।

इस याचिका में ‘अफवाहें फैलाने’ के लिये कार्यकर्ताओं, छात्रों और मीडिया घरानों के खिलाफ कार्रवाई करने का भी अनुरोध किया गया है। शीर्ष अदालत 18 दिसंबर को नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता की विवेचना के लिये तैयार हो गया था लेकिन उसने इसके अमल पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था।

नागरिकता संशोधन कानून, 2019 में 31 दिसंबर, 2014 तक पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आये हिन्दू, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।

शीर्ष अदालत ने इस कानून को चुनौती देने वाली 59 याचिकाओं पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया था और इसे जनवरी के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया था। शीर्ष अदालत में नागरिकता संशोधन कानून की वैधता को चुनौती देने वालों में कांग्रेस के जयराम रमेश, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, राजद नेता मनोज झा, एआईएमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, पीस पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच’ और ‘सिटीजंस अगेन्स्ट हेट’, अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा और कानून के छात्र शामिल हैं।

टॅग्स :नागरिकता संशोधन कानूनसुप्रीम कोर्टमोदी सरकारदिल्लीपश्चिम बंगालकेरलजामिया मिल्लिया इस्लामियाजवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू)
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