Supreme Court on Bihar Voter List Revision: आधार, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड को मानिए प्रूफ, सुप्रीम कोर्ट में आयोग को राहत, देखिए मुख्य 15 बातें
By सतीश कुमार सिंह | Updated: July 10, 2025 17:07 IST2025-07-10T17:04:42+5:302025-07-10T17:07:00+5:30
Supreme Court on Bihar Voter List Revision: निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की।

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नई दिल्लीः सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग को चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के अपने कार्य को जारी रखने की अनुमति दे दी है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि प्रथम दृष्टया उसकी राय है कि न्याय के हित में, चुनाव आयोग को बिहार में मतदाता सूचियों के चल रहे विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र आदि जैसे दस्तावेजों को भी शामिल करने पर विचार करना चाहिए। बिहार के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा, "हम निर्णय का स्वागत करेंगे... ये (विपक्ष) एक तरफ कहते हैं कि चुनाव आयोग पर विश्वास है और दूसरी ओर संवैधानिक संस्था का अपमान करते हैं। अगर शत प्रतिशत मतदान हो, मतदाताओं में जागरुकता उत्पन्न हो, सभी को मतदान में अधिकार मिले तो इसमें इन्हें(विपक्ष) आपत्ती क्यों है?.."
Supreme Court on Bihar Voter List Revision: मुख्य बात-
उच्चतम न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि उसे बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कुछ आपत्तियां हैं।
निर्वाचन आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गयी थी।
उच्चतम न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर निर्वाचन आयोग से सवाल किया।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है, यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।
निर्वाचन आयोग ने न्यायालय से कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच आवश्यक है।
यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के अंतर्गत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है।
उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा- क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने, अपनायी गयी प्रक्रिया और कब यह पुनरीक्षण किया जा सकता है, उसका अधिकार है?
समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उनका पुनरीक्षण आवश्यक होता है।
निर्वाचन आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने पूछा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं है तो फिर यह कौन करेगा?
विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो लोकतंत्र की जड़ से जुड़ा है, यह मतदान के अधिकार से संबंधित है।
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से क्यों जोड़ा जा रहा है, यह प्रक्रिया चुनावों से अलग क्यों नहीं की जा सकती?
किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा।
बिहार मतदाता सूची संशोधन को चुनौती।
उच्चतम न्यायालय ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण पर रोक नहीं लगाई, क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने फिलहाल इसके लिए दबाव नहीं डाला।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान प्रथम दृष्टया आधार, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड को दस्तावेज के तौर पर विचार किया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मामले की सुनवाई 28 जुलाई को सक्षम अदालत में होनी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के चुनाव आयोग को चुनावी राज्य बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दे दी है। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा, "... यह लोकतंत्र के लिए राहत की बात है। अब इस मामले की सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड को सत्यापन प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि चुनाव आयोग सर्वोच्च न्यायालय के इस सुझाव पर अमल करेगा। इसका इंतज़ार कीजिए।"
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को निर्वाचन आयोग को बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को जारी रखने की अनुमति देते हुए इसे ‘‘संवैधानिक दायित्व’’ बताया। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने हालांकि, इस कवायद के समय पर सवाल उठाया और कहा कि बिहार में एसआईआर के दौरान आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड पर दस्तावेज के तौर पर विचार किया जा सकता है।
पीठ ने कहा, ‘‘हमारा प्रथम दृष्टया मानना है कि मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान आधार, मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड पर दस्तावेज के तौर पर विचार किया जा सकता है।’’ उच्चतम न्यायालय ने कहा कि 10 विपक्षी दलों के नेताओं सहित किसी भी याचिकाकर्ता ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया पर अंतरिम रोक की मांग नहीं की है।
उसने संबंधित याचिकाओं पर जवाब मांगा और सुनवाई की अगली तारीख 28 जुलाई तय की। पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग 21 जुलाई तक इन याचिकाओं पर जवाबी हलफनामा दाखिल करे और इन पर प्रत्युत्तर 28 जुलाई तक दाखिल किए जाएं। पीठ ने कहा कि उसे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और ईमानदारी पर संदेह नहीं है, क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व है,
लेकिन इस प्रक्रिया का समय संदेह पैदा कर रहा है। न्यायालय ने चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी से कहा, ‘‘हमें आपकी ईमानदारी पर संदेह नहीं है, लेकिन कुछ धारणाएं हैं। हम आपको रोकने के बारे में नहीं सोच रहे हैं क्योंकि यह एक संवैधानिक दायित्व है।’’
द्विवेदी ने कहा कि 60 प्रतिशत मतदाताओं ने अपनी पहचान सत्यापित कर दी हैं और उन्होंने अदालत को आश्वासन दिया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा। पीठ ने कहा, ‘‘हम किसी संवैधानिक संस्था को वह करने से नहीं रोक सकते जो उसे करना चाहिए। साथ ही, हम उन्हें वह भी नहीं करने देंगे जो उन्हें नहीं करना चाहिए।’’
इससे पहले, पीठ ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के समय पर सवाल उठाते हुए निर्वाचन आयोग से कहा कि आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है। हालांकि, उसने इस दलील को खारिज कर दिया कि आयोग के पास इस कवायद को करने का कोई अधिकार नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि विशेष गहन पुनरीक्षण की कवायद महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो लोकतंत्र की जड़ों से जुड़ा है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है। भारत निर्वाचन आयोग ने इस कवायद को न्यायोचित ठहराया और कहा कि आधार कार्ड ‘‘नागरिकता का प्रमाण’’ नहीं है।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण में दस्तावेजों की सूची में आधार कार्ड पर विचार न करने को लेकर सवाल किया और कहा कि निर्वाचन आयोग का किसी व्यक्ति की नागरिकता से कोई लेना-देना नहीं है और यह गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है।
द्विवेदी ने संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला देते हुए कहा कि प्रत्येक मतदाता को भारतीय नागरिक होना चाहिए और ‘‘आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है।’’ न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, ‘‘यदि आपको बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के अंतर्गत नागरिकता की जांच करनी है, तो आपको पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है।’’ इस बीच, पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों की इस दलील को खारिज कर दिया कि निर्वाचन आयोग के पास बिहार में ऐसी किसी कवायद का अधिकार नहीं है। पीठ ने कहा कि निर्वाचन आयोग जो कर रहा है वह संविधान के तहत आता है और पिछली बार ऐसी कवायद 2003 में की गयी थी। याचिकाकर्ताओं की दलीलों का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग को तीन प्रश्नों का उत्तर देना होगा, क्योंकि बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया ‘‘लोकतंत्र की जड़ से जुड़ी है और यह मतदान के अधिकार से संबंधित है।’’ उच्चतम न्यायालय ने निर्वाचन आयोग से तीन मुद्दों पर जवाब मांगा कि क्या उसके पास मतदाता सूची में संशोधन करने, अपनायी गयी प्रक्रिया और कब यह पुनरीक्षण किया जा सकता है, उसका अधिकार है। द्विवेदी ने कहा कि समय के साथ-साथ मतदाता सूची में नामों को शामिल करने या हटाने के लिए उनका पुनरीक्षण आवश्यक होता है और एसआईआर ऐसी ही कवायद है। उन्होंने पूछा कि अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं है तो फिर यह कौन करेगा? बहरहाल, निर्वाचन आयोग ने आश्वस्त किया कि किसी को भी अपनी बात रखने का अवसर दिए बिना मतदाता सूची से बाहर नहीं किया जाएगा। मामले की सुनवाई शुरू होने पर गैर-सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ ने कहा कि जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण की अनुमति दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि समग्र एसआईआर के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिक आएंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय में इस मामले के संबंध में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गयी हैं जिनमें प्रमुख याचिकाकर्ता ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ है। राजद सांसद मनोज झा और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा के अलावा, कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल, शरद पवार नीत राकांपा गुट से सुप्रिया सुले, भाकपा से डी राजा, समाजवादी पार्टी से हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (उबाठा) से अरविंद सावंत, झारखंड मुक्ति मोर्चा से सरफराज अहमद और भाकपा (माले) के दीपांकर भट्टाचार्य ने संयुक्त रूप से शीर्ष अदालत का रुख किया है। सभी नेताओं ने बिहार में मतदाता सूची विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्वाचन आयोग के आदेश को चुनौती दी है और इसे रद्द करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है।