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सुप्रीम कोर्ट की केरल वक्फ बोर्ड को लताड़, कहा- "अगर संविधान आज लिखा जाता तो Article 21 नहीं शामिल किया जाता"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: February 3, 2023 15:00 IST

सुप्रीम कोर्ट ने केरल वक्फ बोर्ड के एक मामले में सुनवाई की है। यह मामला वक्फ बोर्ड की जमीन पर किरायेदारी और अतिक्रमण से जुड़ा है, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने वक्फ बोर्ड की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए हैं।

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट ने केरल वक्फ बोर्ड के एक मामले में सुनवाई की है। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड की कार्रवाई पर सवाल खड़े करते हुए उसे गलत बताया है। यह मामला वक्फ बोर्ड की जमीन पर किरायेदारी और अतिक्रमण से जुड़ा है।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने केरल वक्फ बोर्ड को एक मामले में सुनवाई करते हुए लताड़ लगाई और कहा कि आप "आर्म-ट्विस्टिंग" कर रहे हैं। जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच केरल वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 52ए के खिलाफ दायर हुई एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दरअसल, यह विवाद वक्फ की जमीन पर किरायेदारी और अतिक्रमण से जुड़ा हुआ था।

सुप्रीम कोर्ट में आने से पहले मामले में केरल हाईकोर्ट ने किरायेदारी के इस विवाद में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ क्रिमिनल एक्शन पर रोक लगाने से मना कर दिया था। दरअसल, वक्फ की जमीन पर याचिकाकर्ताओं की किरायेदारी की मियाद 2005 में ही खत्म हो गई थी लेकिन वे बेदखली का विरोध कर रहे थे और उस पर रोक भी लगी हुई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वकील बेसेंट आर ने बेंच के दोनों जजों को बताया कि वक्फ बोर्ड द्वारा की गई कार्रवाई किसी भी प्रकार सही नहीं है और काफी जटिल प्रकृति की है। 

सुनवाई के दौरान दोनों जजों की बेंच ने केरल वक्फ बोर्ड के खिलाफ बेहद कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि वक्फ का एक्शन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसा है, जैसे वो उनका हाथ मरोड़ रही है और बेहद कठोर कानूनी प्रक्रिया को अपना रही है। जस्टिस एस रवींद्र भट ने कहा, "यह बेहद क्रूर है! मैं पूरी तरह अवाक हूं! अगर आज की तारीख में भारत का संविधान लिखा जाता, तो शायद उसमें आर्टिकल 21 (जीने का अधिकार) को नहीं शामिल किया जाता। 

उन्होंने केस का जिक्र करते हुए कहा कि भले ही 2005 में किरायेदारी अमान्य कर दी गई हो लेकिन इस मुद्दे को लटकाए रखा गया और जब आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए 2013 में संशोधन लागू हुआ तो केरल राज्य वक्फ बोर्ड ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ "सख्त" उपाय शुरू कर दिया है।"

हालांकि, जस्टिस एस रवींद्र भट की इस कठोर टिप्पणी पर बचाव करते हुए राज्य वक्फ बोर्ड की ओर से कहा गया कि वह केवल क़ानून से मिली हुई शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं और यह "पब्लिक सर्विस" है। वक्फ कोई पर्सनल बॉडी नहीं हैं। जिसके जवाब में बेंच ने वक्फ की खिंचाई करते हुए कहा, "हम समझते हैं कि आपके पास लाखों और लाखों एकड़ जमीन है, लेकिन आप इस तरह से व्यक्तियों पर मुकदमा नहीं चला सकते हैं। यह आर्म नागरिक उपचार है और यह आर्म-ट्विस्टिंग के अलावा कुछ नहीं है।" सुनवाई के अंत में वक्फ बोर्ड के वकील ने कोर्ट को बताया कि किरायेदारों पर आपराधिक मुकदमा चलाने के लिए 2013 में संशोधन हुआ था लेकिन 2015 में एक और संशोधन द्वारा उसे रद्द कर दिया गया था।

जिस पर नाराजगी जताते हुए जस्टिस एस रवींद्र भट ने कहा, "तो क्या साल 2013 से 2015 के बीच के उन दो वर्षों के लिए वे क्रिमिनल थे!" सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि केरल हाईकोर्ट को कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करना चाहिए था और वक्फ अधिनियम की धारा 52ए को रद्द किया जाना चाहिए था। मामले में कोर्ट द्वारा फैसला सुरक्षित रख लिया गया है।

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