सुप्रीम कोर्ट में 'दिल्ली सेवा अध्यादेश' पर हुई सुनवाई, शीर्ष अदालत ने प्रावधानों पर अंतरिम रोक नहीं लगाई, केंद्र को नोटिस जारी

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: July 10, 2023 16:23 IST2023-07-10T16:20:51+5:302023-07-10T16:23:08+5:30

केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। ये अध्यादेश दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार से जुड़े मामले में लाया गया था।

Supreme Court issues notice to Centre on a plea of Delhi government Services Ordinance | सुप्रीम कोर्ट में 'दिल्ली सेवा अध्यादेश' पर हुई सुनवाई, शीर्ष अदालत ने प्रावधानों पर अंतरिम रोक नहीं लगाई, केंद्र को नोटिस जारी

सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

Highlightsमुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मामले की सुनवाई कीदिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील डॉ.अभिषेक मनु सिंघवीशीर्ष न्यायालय ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है

नई दिल्ली: केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ दी गई दिल्ली सरकार की याचिका पर सोमवार, 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। शीर्ष न्यायालय ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील डॉ.अभिषेक मनु सिंघवी सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मामले की सुनवाई की।  अंतरिम राहत की प्रार्थना पर विचार करने के लिए मामले को अगले सोमवार के लिए आगे बढ़ा दिया गया है।

सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉ.अभिषेक मनु सिंघवी ने प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी। सिंघवी ने अध्यादेश की धारा 45K जैसे प्रावधानों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये उपराज्यपाल को असिमित शक्तियां दे रहे हैं। उन्होंने तर्क दिया कि अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरित था। 

 दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील डॉ.अभिषेक मनु सिंघवी चाहते थे कि पीठ अध्यादेश पर रोक लगाए। लेकिन सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि यह एक अध्यादेश है। हमें मामले की सुनवाई करनी होगी। पीठ ने कहा कि  अदालत किसी क़ानून पर रोक नहीं लगा सकती।

सिंघवी ने यह कहकर पीठ को समझाने का प्रयास किया कि न्यायालय द्वारा कानूनों पर रोक लगाने के कुछ उदाहरण हैं। उन्होंने कहा कि अध्यादेश ने चुनी हुई सरकार और मुख्यमंत्री की भूमिका को कम कर दिया है। उन्होंने सरकार द्वारा नियुक्त कई सलाहकारों को बर्खास्त करने के एलजी द्वारा हाल ही में लिए गए फैसले का जिक्र किया। भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि प्रभावित पक्षों ने बर्खास्तगी को चुनौती देने का विकल्प नहीं चुना है। इसके जवाब में सिंघवी ने कहा कि यह फैसला अध्यादेश के तहत शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए लिया गया है।

केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय पहुंची थी दिल्ली सरकार

केंद्र द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी की सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। ये अध्यादेश दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार से जुड़े मामले में लाया गया था। अपनी याचिका में दिल्ली सरकार ने कहा था कि अध्यादेश असंवैधानिक है। यह संविधान के अनुच्छेद 239एए में संशोधन नहीं करता है और एक निर्वाचित सरकार से नियंत्रण छीनकर एक गैर-निर्वाचित एलजी के हाथों में सौंपता है। 

बता दें कि 19 मई को, केंद्र ने राष्ट्रीय राजधानी में आईएएस और दानिक्स अधिकारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग का अधिकार लेते हुए एक अध्यादेश जारी किया था। अरविंद केजरीवाल सरकार ने इस कदम को सेवाओं के नियंत्रण पर शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लंघन बताया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजधानी में पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि को छोड़कर सेवाओं का नियंत्रण निर्वाचित सरकार को सौंपने के एक सप्ताह बाद यह अध्यादेश जारी किया गया था।

Web Title: Supreme Court issues notice to Centre on a plea of Delhi government Services Ordinance

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