सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज की याचिका खारिज करते हुए कहा, "जज के जजमेंट में यदि बेइमानी हो तो यह न्यायिक कदाचार की सबसे बुरी बात है"
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: May 6, 2022 10:03 PM2022-05-06T22:03:06+5:302022-05-06T22:09:34+5:30
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला त्रिवेदी ने आगरा में तैनात पूर्व जज मुजफ्फर हुसैन ने भूमि अधिग्रहण मामले में वादियों को अधिक मुआवजा देकर गंभीर कदाचार के मामले में इलाहाबाद दाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि जज के जजमेंट में अगर बेइमानी हो तो यह न्यायिक कदाचार का सबसे बुरी बात है।
दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने एक पूर्व जज से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि एक जज को सीजर की पत्नी की तरह सभी प्रकार के "संदेह से ऊपर" होना चाहिए क्योंकि जज के जजमेंट में यदि वादी का अनुचित पक्ष लिया जाता है तो यह "न्यायिक बेईमानी और दर दुरुपयोग" का सबसे खराब मामला है।
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यह कड़ी टिप्पणी पूर्व जज के उस मामले में दी, जिसमें जज पर भूमि अधिग्रहण मामलों में दिये गये एक अनुचित फैसले के आरोप में रिटायर होने के बाद पेंशन लाभ से वंचित कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पूर्व जज की अपील को खारिज कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई दो जजों की बेंच ने की। निर्णय के संबंध में बोलते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि आगरा में तैनात पूर्व जज मुजफ्फर हुसैन ने भूमि अधिग्रहण मामले में वादियों को अधिक मुआवजा देकर गंभीर कदाचार किया है। इसलिए पूर्व जज मुजफ्फर हुसैन की अपील को खारिज किया जाता है।
मालूम हो कि पूर्व जज हुसैन के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 02 सितंबर 2006 को सुनवाई करते हुए उनके पेंशन लाभ में 90 फीसदी कटौती का आदेश दिया था। इसी आदेश के खिलाफ जज हुसैन ने सुप्रीाम कोर्ट में अपील की थी।
हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने पूर्व जज द्वारा दोबारा अपील करने पर कदाचार संबंधि आरोपों में दिये गये अन्य आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था लेकिन पेंशन लाभ की कटौती को 90 फीसदी से कम करते हुए 70 फीसदी कर दिया था। इसी आदेश के खिलाफ जज हुसैन ने सुप्रीाम कोर्ट में अपील की थी।
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील पर फैसला देते हुए कहा कि पूर्व जज की याचिका में कोई दम नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा, "हमारी राय में कोर्ट के जजमेंट में अगर कोई पक्षपात या बेइमानी होती है तो यह न्यायिक बेईमानी और कदाचार की सबसे बुरी बात है। अक्सर यह कहा जाता है कि लोक सेवक पानी में मछली की तरह हैं, कोई नहीं कह सकता कि मछली ने कब और कैसे पानी पिया।"
मालूम हो कि आरोप लगने के बाद जज हुसैन ने न्यायिक सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और उसके बाद वो मुंबई बेंच में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के मेंबर बन गये, तब उन्हें आगरा भूमि मामले में कदाचार का नोटिस दिया।
पूर्व जज हुसैन पर आरोप था कि उन्होंने 23 मई 2001 से 19 मई 2003 के दौरान आगार में अपनी तैनाती के क्रम में भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत एक मामले में फैसला सुनाते हुए कई गुना अधिक मुआवजा बढ़ाकर दिया था। इसके अलावा बाद के उनके फैसले में खरीदारों को अधिग्रहित भूमि के मुआवजे पर दावा करने का भी कोई अधिकार नहीं था। (समाचार एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)