प्रवासी श्रमिकों का ‘‘शोषण’’ रोकने के लिये मजबूत तंत्र की जरूरत: सोरेन

By भाषा | Published: June 13, 2021 04:23 PM2021-06-13T16:23:42+5:302021-06-13T16:23:42+5:30

Strong mechanism needed to stop "exploitation" of migrant workers: Soren | प्रवासी श्रमिकों का ‘‘शोषण’’ रोकने के लिये मजबूत तंत्र की जरूरत: सोरेन

प्रवासी श्रमिकों का ‘‘शोषण’’ रोकने के लिये मजबूत तंत्र की जरूरत: सोरेन

(नमिता तिवारी)

रांची, 13 जून झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने देश के विभिन्न हिस्सों, विशेष रूप से दुर्गम इलाकों में झारखंड के प्रवासी श्रमिकों के ‘‘शोषण’’ को लेकर चिंता जताते हुए इस पर रोक लगाने के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता बतायी और कहा कि वह अन्य राज्यों के अपने समकक्षों के साथ आवश्यक चर्चा करेंगे।

सोरेन ने यह भी दावा किया कि केंद्र सरकार की कई एजेंसियां ​​​​विकास परियोजनाओं के लिए काम पर रखने के बाद श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही हैं। उन्होंने साथ ही कहा कि ‘‘नियुक्ति निकाय और ठेकेदारों के बीच गठजोड़’’ इस तरह के अनुचित व्यवहार को संभव बनाता है।

सोरेन ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘उनकी दुर्दशा देखकर मुझे दुख होता है...श्रमिकों को उनके वैध बकाया से वंचित किया जाता है, जबकि उन्हें एनटीपीसी और बीआरओ जैसे संगठनों द्वारा ठेकेदारों या बिचौलियों के जरिए काम पर रखा जाता है। उनके अधिकारों की रक्षा के लिए नीतियां मौजूद हैं, लेकिन आमतौर पर उन्हें लागू नहीं किया जाता है।’’

मुख्यमंत्री ने कहा कि वह इस मुद्दे को विभिन्न मंचों पर उठाते रहे हैं, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।

सोरेन ने कहा, ‘‘कोविड-19 संकट से निपटने के बाद मैं उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और लद्दाख के अलावा अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों और प्रशासकों के साथ व्यक्तिगत तौर पर बैठक करूंगा और श्रमिकों के शोषण पर रोक के लिए एक मजबूत तंत्र पर जोर दूंगा।’’

उन्होंने इसको लेकर खेद व्यक्त किया कि राज्य को प्राकृतिक आपदा के दौरान श्रमिकों को निकालने या कुछ मामलों में उनके पार्थिव शरीर को घर लाने के लिये अपने संसाधनों का उपयोग करना पड़ता है और हितधारकों से कोई मदद नहीं मिलती।

मुख्यमंत्री ने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत-चीन सीमा के पास, उत्तराखंड के चमोली जिले में सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा लगाये गए झारखंड के 15 प्रवासी श्रमिकों की अप्रैल में हिमस्खलन में मौत हो गई थी।

उन्होंने कहा कि इसी तरह फरवरी में तब कई श्रमिकों की मौत हो गई थी, जब एक विनाशकारी बाढ़ ने 13.2 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना को ध्वस्त कर दिया था और उत्तराखंड में धौलीगंगा पर एनटीपीसी के एक अन्य परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचाया था।

मुख्यमंत्री ने कहा, ‘‘जम्मू-कश्मीर में बादल फटने और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में हमने श्रमिकों को खो दिया । ऐसे उदाहरणों के बावजूद, प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए नीतियों को लागू नहीं किया जा रहा है।’’

सोरेन ने कहा कि उनकी सरकार ने अतीत में अपने अप्रिय अनुभवों के बावजूद, लद्दाख में भारत-चीन के बीच गतिरोध के समय राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए बीआरओ को श्रमिकों को रोजगार देने के लिए अपनी मंजूरी दी थी।

उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने मुख्यमंत्री दीदी रसोई योजना शुरू की है, जिसने पिछले साल लॉकडाउन के दौरान चार करोड़ लोगों को खाना खिलाया। उन्होंने कहा, ‘‘हमने सुनिश्चित किया कि पहली विशेष ट्रेन जो उपलब्ध थी, उससे तेलंगाना से रांची के हटिया तक 1,200 श्रमिकों को लाया गया। लेह में फंसे प्रवासी श्रमिकों को दिल्ली लाया गया, जहां से वे दो महीने की चिंता और अनिश्चितता के बाद झारखंड के लिए एक अन्य उड़ान में सवार हुए।’’

सोरेन पिछले साल मई में लद्दाख में फंसे 60 प्रवासी कामगारों को हवाई मार्ग से लाने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री थे।

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Web Title: Strong mechanism needed to stop "exploitation" of migrant workers: Soren

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