राजनीतिक राय, पत्रकारों को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी भी नहीं किया जाना चाहिए: उच्चतम न्यायालय

By भाषा | Updated: December 10, 2021 19:45 IST2021-12-10T19:45:36+5:302021-12-10T19:45:36+5:30

State force should never be used to suppress political opinion, journalists: Supreme Court | राजनीतिक राय, पत्रकारों को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी भी नहीं किया जाना चाहिए: उच्चतम न्यायालय

राजनीतिक राय, पत्रकारों को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी भी नहीं किया जाना चाहिए: उच्चतम न्यायालय

नयी दिल्ली, 10 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि राजनीतिक विचारों या पत्रकारों को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि देश में व्यक्त किये जा रहे विचारों के स्तर पर राजनीतिक वर्ग को भी आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और ‘‘ट्विटर युग’’ में पत्रकारों को भी अधिक जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश की पीठ ने पश्चिम बंगाल में प्रकाशित लेखों के संबंध में एक समाचार वेब पोर्टल के संपादकों और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी रद्द करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक ऐसे देश में जो अपनी विविधता पर गर्व करता है, वहां राजनीतिक विचारों सहित अलग-अलग धारणाएं और राय होना स्वाभाविक है।

पीठ ने कहा कि यही लोकतंत्र का सार है। उसने कहा, ‘‘राजनीतिक राय या पत्रकारों को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी नहीं किया जाना चाहिए।’’ पीठ ने कहा कि ट्विटर युग में पत्रकारों की जिम्मेदारी कम नहीं होती है और उन्हें मामलों की रिपोर्ट करते समय यह सावधानी बरतनी होगी कि इसे किस तरह से रिपोर्ट किया जाये।

पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने पीठ को सूचित किया कि राज्य ने ‘ओपइंडिया डॉट कॉम’ की संपादक नूपुर जे शर्मा, यूट्यूबर अजीत भारती और अन्य के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी वापस लेने का फैसला किया है। जिसमें इसके संस्थापक और सीईओ भी शामिल हैं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह समाज और अदालत को परेशान कर रहीं बातों के बारे में कहने का मौका नहीं छोड़ना चाहती।

पीठ ने कहा, ‘‘इसमें संदेह नहीं कि मौजूदा दौर में होने वाली बातचीत के स्तर में जो पतन हो रहा है, उस पर देश के राजनीतिक वर्ग को आत्मनिरीक्षण करने की जरूरत है। एक देश जिसे अपनी विविधता पर गर्व है, उसमें किसी विषय पर भिन्न दृष्टिकोण या राय होना स्वाभाविक है।’’

उच्चतम न्यायालय ने इससे पहले पश्चिम बंगाल में दर्ज एक नई प्राथमिकी पर आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

शीर्ष अदालत ने पिछले साल 26 जून को पश्चिम बंगाल में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकी में आगे की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी।

अपने आवेदन में, शर्मा और अन्य ने कहा था कि वे पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लगातार पीछा किये जाने और उत्पीड़न के कारण शीर्ष अदालत का रुख करने के लिए विवश हैं, जिन्होंने मीडिया रिपोर्टों को रोकने के अपने प्रयास में उनके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज कीं।

इसमें कहा गया था कि प्राथमिकी मई 2020 के टेलीनीपारा सांप्रदायिक दंगों के बारे में 'ओपइंडिया डॉट कॉम' में प्रकाशित मीडिया रिपोर्टों से संबंधित है और उसी समय प्राथमिकी के रूप में दर्ज की गई थी, जो रिट याचिका का विषय है।

शर्मा और समाचार पोर्टल के संस्थापक और सीईओ और इसके हिंदी भाषा प्रकाशनों के संपादक सहित अन्य की मुख्य याचिका में दावा किया गया था कि पश्चिम बंगाल सरकार और उसकी ‘‘सत्तावादी कोलकाता पुलिस’’ पत्रकारों को डराने के लिए एफआईआर और ‘‘पुलिस शक्तियों’’ का दुरुपयोग कर रही है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: State force should never be used to suppress political opinion, journalists: Supreme Court

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे