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स्टैन स्वामी : जेसुइट पादरी जिनका जीवन आदिवासियों एवं वंचितों के लिये समर्पित रहा

By भाषा | Updated: July 5, 2021 22:05 IST

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रांची, पांच जुलाई स्टैनिस्लॉस लोर्दूस्वामी उर्फ फादर स्टैन स्वामी एक रोमन कैथोलिक पादरी थे, जिनका जीवन 1990 के दशक से ही झारखंड के आदिवासियों और वंचितों के अधिकारों के लिये काम करने के लिए पूरी तरह समर्पित रहा।

चौरासी वर्षीय स्वामी का जमानत के लिये उनकी अपील पर एक अदालत में सुनवाई से पहले ही मुंबई में सोमवार को निधन हो गया। उन्हें भीमा-कोरेगांव मामले में कथित संलिप्तता को लेकर राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) ने गिरफ्तार किया था।

स्टैन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उनके मित्रों के अनुसार उन्होंने थियोलॉजी और मनीला विश्वविद्यालय से 1970 के दशक में समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की। बाद में उन्होंने ब्रसेल्स में भी पढ़ाई की, जहां उनकी दोस्ती आर्चबिशप होल्डर कामरा से हुई, जिनके ब्राजील के गरीबों के लिये काम ने उन्हें काफी प्रभावित किया।

बाद में उन्होंने 1975 से 1986 तक बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट के निदेशक के तौर पर काम किया। झारखंड में आदिवासियों के लिये एक कार्यकर्ता के रूप में करीब 30 साल पहले उन्होंने काम करना शुरू किया। उन्होंने जेलों में बंद आदिवासी युवाओं की रिहाई के लिये काम किया, जिन्हें अक्सर झूठे मामलों में फंसाया जाता था। उन्होंने हाशिये पर रहने वाले उन आदिवासियों के लिये भी काम किया, जिनकी जमीन का बांध, खदान और विकास के नाम पर बिना उनकी सहमति के अधिग्रहण कर लिया गया था।

स्टैन स्वामी के साथ आदिवासियों के अधिकारों के लिए बनाये गये गैर सरकारी संगठन ‘बिरसा’ में काम कर चुके चाईबासा में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता दामू वानरा ने बताया कि समाजशास्त्र से एमए करने के बाद कैथोलिक्स द्वारा चलाये जा रहे बेंगलुरू स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में निदेशक के तौर पर काम करने के दौरान ही स्टैन स्वामी झारखंड के चाईबासा आने लगे और उन्होंने गरीबों तथा वंचितों के साथ रह कर उनके जीवन को नजदीक से देखने और समझने की कोशिश की।

उन्होंने बताया कि इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट से 1986 में सेवानिवृत्त होने के बाद स्टैन स्वामी चाईबासा में ही जाकर रहने लगे और वहां उन्होंने आदिवासी अधिकारों के लिए काम करने के वास्ते ‘बिरसा’ नामक एनजीओ की स्थापना की। वहीं, मुख्य रूप से मिशनरी के सामाजिक कार्य के लिए ‘जोहार’ नामक एनजीओ का प्रारंभ किया।

स्टैन स्वामी के साथ काम करने वाली अजीता जॉर्ज ने बताया कि वर्ष 2003 तक तो स्टैन स्वामी चाईबासा के आदिवासियों एवं मिशनरियों के ही होकर रह गये लेकिन उसके बाद वह रांची के नामकुम में जाकर रहने लगे और चाईबासा में कभी-कभी जाते थे।

दामू ने कहा, ‘‘पादरी होने के बावजूद स्टैन स्वामी कभी भी लोगों से दूर नहीं होते थे। उनसे कभी भी कोई भी जाकर मिल सकता था। स्वामी स्वयं चाईबासा के गांव-गांव से जुड़े हुए थे। बड़ी संख्या में वहां ऐसे गांव हैं, जहां लोग स्वामी को व्यक्तिगत तौर पर जानते थे।’’

उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में स्वामी ने पादरी का काम किया लेकिन फिर आदिवासी अधिकारों की लड़ाई लड़ने लगे। बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता झारखंड में विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन की भी स्थापना की। यह संगठन आदिवासियों और दलितों के अधिकारों की लड़ाई लड़ता है।

फादर स्टैन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से भी जुड़े रहे, जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था, जिसके बाद चाईबासा में बांध बनाने का काम रोक दिया गया।

वर्ष 2010 में फादर स्टैन स्वामी की ‘जेल में बंद कैदियों का सच’ नामक किताब प्रकाशित हुई, जिसमें यह उल्लेख किया गया था कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया।

स्वामी के साथ काम करने वाली सिस्टर अनु ने बताया कि स्वामी गरीब आदिवासियों से जेल में भी मिलने जाते थे और 2014 में उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें कहा गया कि नक्सली होने के नाम पर हुई तीन हजार गिरफ्तारियों में से 97 प्रतिशत मामलों में आरोपी का नक्सल आंदोलन से कोई संबंध नहीं था। इसके बावजूद ये नौजवान जेल में बंद रहे।

अपने अध्ययन में उन्होंने यह भी बताया कि झारखंड की जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों में 31 प्रतिशत आदिवासी हैं और उनमें भी अधिकतर गरीब आदिवासी।

दामू वानरा ने बताया, ‘‘स्वामी लगातार कहते थे कि गरीबों, आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ो लेकिन कानून अपने हाथ में न लो, लेकिन वह स्वयं पहले खूंटी के पत्थलगड़ी आंदोलन में कानून अपने हाथ में लेने और आदिवासियों को भड़काने के मामलों में पुलिस प्राथमिकी में आरोपी बनाये गये और फिर भीमा कोरेगांव के एल्गार परिषद वाले मामले में भी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने उन्हें आरोपी बनाकर गिरफ्तार कर लिया।’’

स्टैन स्वामी पर पत्थलगढ़ी आंदोलन के मुद्दे पर तनाव भड़काने के लिए झारखंड सरकार के खिलाफ बयान जारी करने के आरोप थे। झारखंड की खूंटी पुलिस ने स्टैन स्वामी समेत 20 लोगों पर राजद्रोह का मामला भी दर्ज किया था।

एनआईए ने आरोप लगाया था कि स्टैन स्वामी प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य हैं। उसने आरोप लगाया था कि वह इसके मुखौटा संगठनों के संयोजक हैं तथा सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं। जांच एजेंसी ने उनपर संगठन का काम बढ़ाने के लिए एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल करने का आरोप लगाया था।

वानरा ने अफसोस जताया कि आखिर स्वयं कानून-व्यवस्था को हाथ में लेने के आरोप में जेल में बंद स्वामी का आज मुंबई में निधन हो गया, जिसका उन्हें सदा दुख रहेगा।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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