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आरपीएन सिंह के भाजपा में जाने का असर झारखंड की सियासत पर पड़ने की अटकलें, हेमंत सोरेन सरकार के लिए चिंता का विषय!

By एस पी सिन्हा | Updated: January 25, 2022 21:30 IST

राजनीति गलियारों में ये चर्चा होने लगी हैं कि आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने का असर झारखंड की सियासत पर भी पड़ सकता है।

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ठळक मुद्देआरपीएन सिंह के बीजेपी में जाने के झारखंड में राजनीति में उथल-पुथल की संभावना है हेमंत सोरेन की सरकार के लिए कई मुश्‍क‍िलें सामने आ सकती हैं

रांची: झारखंडकांग्रेस के प्रभारी व पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह के द्वारा कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होने के बाद झारखंड में भी सियासत गर्मा गई है। आरपीएन सिंह के कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने का असर झारखंड की सियासत पर भी पड़ सकता है। झारखंड में राजनीति में उथलपुथल की संभावना व्यकत की जाने लगी है।

झारखंड कांग्रेस में बड़ा बदलाव दिख सकता है। ऐसे कयास लगाये जा रहे हैं कि कई विधायक आरपीएन सिंह के ईशारे पर झारखंड में कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं। आरपीएन सिंह के दल बदलने से झारखंड में कांग्रेस कमजोर तो होगी ही, राज्य में राजनीतिक उथलपुथल मच सकता है। हेमंत सोरेन की सरकार के लिए कई मुश्‍क‍िलें सामने आ सकती हैं।

वैसे यह तभी संभव है जब कांग्रेस के विधायक पाला बदल लें। वैसे झारखंड में कांग्रेस के विधायकों पर आरपीएन सिंह की मजबूत पकड़ है। वर्ष 2019 में हुए झारखंड विधानसभा चुनाव में आरपीएन सिंह ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ तालमेल कर 16 सीटों पर कब्जा करने में कामयाबी पाई थी। आरपीएन सिंह दो बार झारखंड के कांग्रेस प्रदेश प्रभारी रह चुके हैं।

पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं के बीच अच्छी पकड़ रही है। आरपीएन सिंह की पहल पर ही बाद में झारखंड के दो और विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये थे। इनमें बंधु तिर्की और प्रदीप यादव शामिल हैं। दोनों बाबूलाल मरांडी के नेतृत्‍व वाली जेवीएम से चुनाव जीते थे। वहीं, अकेला पड़ जाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी भाजपा में शामिल हो गए थे।

जानकारों के अनुसार आलाकमान ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आरपीएन सिंह को उनकी काबिलियत को देखते हुए पहली बार 2017 में झारखंड कांग्रेस प्रदेश प्रभारी का कमान सौंपे थे। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में इनके नेतृत्व में कांग्रेस ने राज्य में शानदार प्रदर्शन किया। पार्टी को 16 सीट मिली।

वहीं, हेमंत सरकार में पार्टी के चार विधायकों को मंत्री पद दिलाने में अहम भूमिका निभाई। राज्य में कांग्रेस की स्थिति मजबूत करने को देखते हुए आलाकमान ने उन्हें वर्ष 2020 में दूसरी बार प्रदेश प्रभारी का जिम्मा दिया था। अगर विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव को भी कांग्रेस का विधायक मान लिया जाए तो कांग्रेस विधायकों की झारखंड में कुल संख्‍या 18 हो जाती है।

इस हिसाब से भी कांग्रेस की यहां महत्‍वपूर्ण भूमिका नजर आती है। वैसे भी झारखंड में झारखंड मुक्‍त‍ि मोर्चा की सरकार कांग्रेस के समर्थन से ही चल रही है। इस बीच आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होते ही झारखंड की सियासत पर सभी दलों की नजर केंद्र‍ित हो गई है। झारखंड मुक्‍त‍ि मोर्चा और भाजपा की नजर कांग्रेस विधायकों के रुख पर टिकी है।

भाजपा को ऐसा लग रहा कि झारखंड में सरकार गिर सकती है। उधर, झारखंड मुक्‍त‍ि मोर्चा के रणनीतिकार भी कांग्रेस विधायकों पर पैनी नजर रखने लगे हैं। हालांकि, अभी तक कांग्रेस के किसी भी विधायक में ऐसी कोई सुगबुगाहट नहीं देखी जा रही है। आरपीएन सिंह के भाजपा में शामिल होने पर किसी भी विधायक ने कोई टिप्पणी नहीं की है।

वैसे झारखंड में हेमंत सोरेन सरकार को गिराने की साजिश की बात अक्‍सर सामने आती रही है। खुद झामुमो के विधायक समय समय पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि भाजपा के इशारे पर कुछ लोग झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार गिराना चाह रहे हैं। पिछले साल इसको लेकर बवाल भी मच गया था।

वहीं, झामुमो विधायकों को तोड़ने की कोशिश में लगे हैं। झामुमो के विधायक रामदास सोरेन तो इस संबंध में प्राथमिकी तक दर्ज करा चुके हैं। इतना ही नहीं वर्ष 2021 में पुलिस ने रांची में छापेमारी कर कुछ लोगों को एक होटल से गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप लगा था कि झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार को गिराने की साजिश रच रहे हैं।

आरोपित जेल भेजे गए थे। बाद में झारखंड हाईकोर्ट से उन्‍हें जमानत मिली और बाहर आ गए, हालांकि यह जांच अभी तक पूरी नहीं हो सकी है। यहां बता दें कि झारखंड सरकार में दलीय स्‍थ‍िति इस प्रकार है- झारखंड मुक्‍त‍ि मोर्चा-30, कांग्रेस-16, भाजपा-25, जेवीएम-03, आजसू पार्टी-02, एनसीपी-01, भाकपा-माले-01, राजद- 01 और निर्दलीय-02। 

इसके साथ ही जेवीएम के दो विधायक कांग्रेस तथा एक विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में मौजूदा समय में भाजपा को सरकार बनाने के लिए कुल 10 विधायकों की जरूरत है। ऐसे में आरपीएन सिंह के सहयोग से भाजपा में कांग्रेस में सेंध लगा दी तो झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार धाराशायी हो जा सकती है, जबकि भाजपा की बल्ले-बल्ले हो जायेगी।

इधर, झारखंड कांग्रेस के अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने आरपीएन सिंह के इस्तीफे पर कहा कि ये बेहद दुखद है, हालांकि, कई प्रभारी आये और गये। इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता है, उनके अनुसार आरपीएन सिंह ने गलत फैसला लिया है। 

उन्होंने कहा कि आरपीएन सिंह का भाजपा में जाना भले ही उनका व्यक्तिगत निर्णय है, लेकिन इस वक्त पार्टी को आरपीएन सिंह जैसे नेता की जरूरत है और इस वक्त पार्टी छोड़कर जाने का उनका निर्णय सही नहीं है।

टॅग्स :कांग्रेसझारखंड
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