सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी से लद्दाख की राजनीति में आया नया मोड़? लेह हिंसा के बाद बदले हालात
By अंजली चौहान | Updated: October 3, 2025 12:56 IST2025-10-03T12:42:19+5:302025-10-03T12:56:39+5:30
Ladakh violence: सरकार ने उन पर हिंसा भड़काने और विदेशी तत्वों (पाकिस्तान से जुड़ाव) के संपर्क में रहने का गंभीर आरोप लगाया है। उनकी पत्नी ने इन आरोपों को निराधार बताया है और NSA के तहत गिरफ्तारी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी से लद्दाख की राजनीति में आया नया मोड़? लेह हिंसा के बाद बदले हालात
Ladakh violence: सोनम वांगचुक का लेह की राजनीति में उभार हाल ही में हुई हिंसक घटनाओं और केंद्र सरकार द्वारा उन पर की गई कड़ी कार्रवाई के कारण एक बड़ा और गंभीर मोड़ ले चुका है। पहले लद्दाख में यह आंदोलन मुख्य रूप से शांतिपूर्ण विरोध पर आधारित था, लेकिन सितंबर 2025 में हुई हिंसा और वांगचुक की गिरफ़्तारी ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया है।
लेह हिंसा और वांगचुक का उभार
अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनने के बाद स्थानीय लोगों में खुशी थी, लेकिन जल्द ही यह खुशी चिंता में बदल गई। केंद्र सरकार द्वारा UT का दर्जा दिए जाने के बावजूद, लद्दाखी जनता की मुख्य माँगें अनसुनी रहीं, जिसके कारण हाल ही में अभूतपूर्व तनाव और हिंसा हुई। लेह में यह घटनाक्रम तब सामने आया जब सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद् सोनम वांगचुक ने लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की माँग को लेकर 15 दिन की भूख हड़ताल शुरू की।
1. आंदोलन का हिंसक होना
घटना: 24 सितंबर, 2025 को, वांगचुक के अनशन स्थल से निकली युवाओं की भीड़ हिंसक हो गई। प्रदर्शनकारियों ने लेह स्थित भाजपा कार्यालय को जला दिया और पुलिस के वाहनों में आग लगा दी।
परिणाम: पुलिस की गोलीबारी में चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 90 से अधिक लोग घायल हुए। इसके बाद लेह में कर्फ्यू लगा दिया गया।
नया मोड़: इस हिंसा ने लद्दाख के दशकों पुराने शांतिपूर्ण आंदोलनों में एक खूनी अध्याय जोड़ दिया, जिसके लिए केंद्र सरकार ने सीधे तौर पर वांगचुक को जिम्मेदार ठहराया।
2. केंद्र सरकार की कड़ी कार्रवाई
हिंसा के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने सोनम वांगचुक पर अभूतपूर्व कार्रवाई की:
गिरफ्तारी: 26 सितंबर को उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया गया और राजस्थान की जोधपुर जेल भेज दिया गया।
एनजीओ लाइसेंस रद्द: उनकी संस्था SECMOL का FCRA (विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम) लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया, जिसमें विदेशी फंडिंग के उल्लंघन का आरोप लगाया गया।
गंभीर आरोप: लद्दाख के पुलिस महानिदेशक (DGP) ने उन पर हिंसा भड़काने और एक पाकिस्तानी PIO (इंटेलिजेंस ऑफिसर) के संपर्क में होने का सनसनीखेज आरोप लगाया, जिसकी जाँच जारी है।
सोनम वांगचुक, जो पहले शिक्षा और पर्यावरण के क्षेत्र में अपने अभिनव कार्यों के लिए जाने जाते थे, अब लद्दाख के राजनीतिक और संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई का सबसे बड़ा चेहरा बन गए हैं।
सोनम वांगचुक पर सरकार की कड़ी कार्रवाई ने लद्दाख की राजनीति को एक जटिल चौराहे पर ला दिया है। यह अब केवल संवैधानिक अधिकारों की मांग नहीं रही, बल्कि स्थानीय पहचान और आंदोलनकारी आवाज को दबाने के प्रयासों के बीच का सीधा टकराव बन गई है। उनकी गिरफ्तारी ने आंदोलन को भले ही अस्थायी रूप से शांत किया हो, लेकिन इसने लोगों की मांगों और सरकार के प्रति अविश्वास को और मजबूत किया है।
सोनम वांगचुक की भूमिका
सोनम वांगचुक एक विश्व-प्रसिद्ध शिक्षाविद्, पर्यावरणविद् और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो मुख्य रूप से लद्दाख में शिक्षा और जलवायु परिवर्तन पर अपने अभिनव कार्यों के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में, वह लद्दाख को संवैधानिक सुरक्षा दिलाने के लिए चल रहे बड़े राजनीतिक आंदोलन का चेहरा बन गए हैं।
2019 में जम्मू-कश्मीर से अलग होकर लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश (UT) बनने के बाद, सोनम वांगचुक ने पर्यावरण और स्थानीय पहचान को बचाने के लिए सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन का नेतृत्व करना शुरू कर दिया।
वांगचुक के नेतृत्व में लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) की चार प्रमुख माँगे हैं:
1- पूर्ण राज्य का दर्जा (Statehood): लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश के बजाय पूर्ण राज्य का दर्जा देना।
2- संविधान की छठी अनुसूची: लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करना। यह अनुसूची आदिवासी बहुल क्षेत्रों की जमीन, संस्कृति और स्व-शासन को संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करती है। लद्दाख की लगभग 97% आबादी आदिवासी है।
3- दो संसदीय सीटें: लद्दाख क्षेत्र के लिए संसद में दो सीटें (लेह और कारगिल)।
4- रोजगार संरक्षण: स्थानीय युवाओं के लिए नौकरियों में आरक्षण सुनिश्चित करना।
सितंबर 2025 में वांगचुक का आंदोलन एक अप्रत्याशित संकट में बदल गया, जिसने लद्दाख की राजनीति को पूरी तरह से नया मोड़ दे दिया।
24 सितंबर को, वांगचुक की भूख हड़ताल के दौरान, युवाओं का एक समूह हिंसक हो गया। इस दौरान भाजपा कार्यालय पर हमला हुआ और पुलिस की कार्रवाई में चार लोगों की मौत हो गई। हिंसा भड़कने के बाद वांगचुक ने शांति की अपील करते हुए अपना अनशन समाप्त कर दिया। 26 सितंबर को लद्दाख प्रशासन ने सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया और उन पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया। उन्हें फिलहाल जोधपुर जेल (राजस्थान) में रखा गया है। लद्दाख पुलिस महानिदेशक ने उन पर हिंसा भड़काने के अलावा उनकी संस्था (SECMOL) के विदेशी चंदे के दुरुपयोग (FCRA उल्लंघन) और विदेशी तत्वों के संपर्क में होने के गंभीर आरोप भी लगाए हैं।
सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि आंगमो ने उनकी गिरफ्तारी और NSA लगाए जाने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। वांगचुक की गिरफ्तारी ने लद्दाखी जनता के बीच असंतोष को और बढ़ा दिया है, जिससे यह मुद्दा अब केवल स्थानीय मांग नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर संवैधानिक अधिकारों और दमन का विषय बन गया है।