सोहराबुद्दीन मामले पर स्मृति ईरानी का सोनिया गांधी पर जबरदस्त हमला, कहा- 'कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी'

By पल्लवी कुमारी | Published: January 1, 2019 04:05 PM2019-01-01T16:05:19+5:302019-01-01T16:05:19+5:30

विशेष सीबीआई अदालत ने कहा है कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ की जांच एक पहले से सोचे समझे गए एक सिद्धांत के साथ कई राजनीतिक नेताओं को फंसाने के लिए की।

Smriti Irani slams sonial gandhi says clear proof of political conspiracy by Congress destroy Amit Shah | सोहराबुद्दीन मामले पर स्मृति ईरानी का सोनिया गांधी पर जबरदस्त हमला, कहा- 'कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी'

सोहराबुद्दीन मामले पर स्मृति ईरानी का सोनिया गांधी पर जबरदस्त हमला, कहा- 'कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी'

सोहराबुद्दीन मामले में कांग्रेस पर पलटवार करते हुए केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, सोहराबुद्दीन मामले में नेताओं को गलत तरीके से फंसाया जा रहा था। खासकर इस मामले बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को फंसाया गया था। जबकि अमित शाह ने इस जांत में पूरा सहयोग किया है। 

केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, कांग्रेस पार्टी सत्ता में रहकर प्रशानिक चीजों का फायदा उठाकर अपने विपक्षी पार्टियों को खत्म करने के लिए प्लानिंग करते रहते हैं। स्मृति ईरानी ने अमित शाह का बचाव करते हुए कहा कि कांग्रेस उन्हें फंसाने का कोशिश कर रही है। लेकिन फिर भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी है।  केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी इस मामले में सोनिया गांधी पर भी निशाना साधा है। 

स्मृति ईरानी ने कहा, ''कांग्रेस के नेतृत्व के आदेश पर सीबीआई ने श्री अमित शाह जी को राजनीतिक षड्यंत्र में फसाने का प्रयास किया था। कोर्ट ने माना है कि राजनीतिक कारणों से ये केस श्री अमित शाह पर थोपे गये थे। ना सिर्फ मुंबई हाईकोर्ट बल्कि सुप्रीम कोर्ट में भी कांग्रेस के षड्यंत्रों मुंह की खानी पड़ी थी।''

ईरानी ने कहा, ''कांग्रेस पार्टी सत्ता में रहकर प्रशासनिक ढांचे का दुरुपयोग करके अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को खत्म करने के लिए अपने पैरों तले न्याय और संविधान को भी रौंदने के लिए तत्पर रहती है।''

उन्होंने कहा, ''अमित शाह जी ने 8 वर्ष तक संघर्ष किया, इन वर्षों के दौरान उनके परिवार को प्रताड़ित किया गया उन पर तरह-तरह के इलज़ाम लगाए गए लेकिन आज न्यायपालिका के आशीर्वाद से सच राष्ट्र के सम्मुख प्रस्तुत हुआ है।''

यहां देखें स्मृति ईरानी का पूरा प्रेस कॉन्फ्रेंस  



अरूण जेटली ने भी कांग्रेस पर साध चुके हैं निशाना 

सोहराबुद्दीन मामले में कांग्रेस पर पलटवार करते हुए वित्त मंत्री अरूण जेटली ने सोमवार को कहा कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के लिये पूछने वाला उचित सवाल यह होता कि इस मामले में जांच का किसने सत्यानाश किया।

मुंबई के विशेष सीबीआई न्यायाधीश ने सोहराबुद्दीन मामले में सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। मंत्री ने कहा, ‘‘आरोपियों को बरी करने के आदेश से ज्यादा प्रासंगिक न्यायाधीश की यह टिप्पणी है कि शुरूआत से ही जांच एजेंसी ने सच का पता लगाने के लिये पेशेवर तरीके से मामले की जांच नहीं की, बल्कि कुछ नेताओं की तरफ इसका रुख मोड़ने की कोशिश की।’’ 

राहुल गांधी ने कहा था- किसी ने भी सोहराबुद्दीन की हत्या नहीं की

मामले में फैसला आने पर राहुल गांधी ने कहा था, ‘‘किसी ने भी सोहराबुद्दीन की हत्या नहीं की।’’ जेटली ने कहा, ‘‘यह उचित होता अगर उन्होंने यह सवाल पूछा होता कि किसने सोहराबुद्दीन मामले में जांच का सत्यानाश किया तो उन्हें सही जवाब मिलता।’’ 

जेटली ने ‘हू किल्ड द सोहराबुद्दीन इन्वेस्टिगेशन’ शीर्षक से अपने फेसबुक पोस्ट में कहा कि जिन लोगों ने हाल में संस्थाओं की स्वतंत्रता को लेकर चिंता जताई थी, उन्हें गंभीरता से आत्ममंथन करना चाहिये कि जब वे सत्ता में थे तो उन्होंने सीबीआई के साथ क्या किया।

सीबीआई अदालत का फैसला 

विशेष सीबीआई अदालत ने कहा है कि केंद्रीय जांच एजेंसी ने सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ की जांच एक पहले से सोचे समझे गए एक सिद्धांत के साथ कई राजनीतिक नेताओं को फंसाने के लिए की। विशेष सीबीआई न्यायाधीश एस जे शर्मा ने 21 दिसंबर को मामले में 22 आरोपियों को बरी करते हुए 350 पृष्ठों वाले फैसले में यह टिप्पणी की। 

अदालत ने सबूतों के अभाव में आरोपियों को बरी कर दिया और तीन मौतों पर दुख प्रकट किया। फैसले की प्रति शुक्रवार को अनुपलब्ध रही, लेकिन मीडिया को फैसले के अंश मुहैया किए गए। 

अपने आदेश में न्यायाधीश शर्मा ने कहा कि उनके पूर्वाधिकारी (न्यायाधीश एमबी गोस्वामी) ने आरोपी संख्या 16 (भाजपा अध्यक्ष अमित शाह) की अर्जी पर आरोपमुक्त आदेश जारी करते हुए कहा था कि जांच राजनीति से प्रेरित थी। 

फैसले में कहा गया है, ‘‘मेरे समक्ष पेश किए गए तमाम सबूतों और गवाहों के बयानों पर करीब से विचार करते हुए मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि सीबीआई जैसी एक शीर्ष जांच एजेंसी के पास एक पूर्व निर्धारित सिद्धांत और पटकथा थी, जिसका मकसद राजनीतिक नेताओं को फंसाना था।’’ 

आदेश में कहा गया है कि सीबीआई ने मामले की अपनी जांच के दौरान सच्चाई को सामने लाने के बजाय कुछ और चीज पर काम किया। 

फैसले में कहा गया है, ‘‘यह साफ तौर पर जाहिर होता है कि सीबीआई सच्चाई का पता लगाने के बजाय पहले से सोचे समझे गए एक खास और पूर्व निर्धारित सिद्धांत को स्थापित करने के लिए कहीं अधिक व्याकुल थी।’’ 

इसमें कहा गया है कि सीबीआई ने कानून के मुताबिक जांच करने के बजाय अपने ‘‘लक्ष्य’’ पर पहुंचने के लिए काम किया। 

फैसले में कहा गया है कि इस तरह पूरी जांच का लक्ष्य उस मुकाम को हासिल करने के लिए एक पटकथा पर काम करना था। साथ ही, राजनीतिक नेताओं को फंसाने की प्रक्रिया में सीबीआई ने साक्ष्य गढ़े तथा आरोपपत्र में गवाहों के बयान डाले। 

अदालत ने इस बात का जिक्र किया कि महत्वपूर्ण साक्ष्य के प्रति सीबीआई ने लापरवाही बरती, जो यह स्पष्ट संकेत देता है कि जांच एजेंसी ने आनन - फानन में जांच पूरी की। 

फैसले में कहा गया है, ‘‘...इस तरह सीबीआई ने उन पुलिसकर्मियों को फंसाया जिन्हें किसी साजिश के बारे में कोई जानकारी नहीं थी...। ’’ 

अदालत ने इस बात का भी जिक्र किया कि तीन लोगों के मारे जाने का उसे दुख है और इसके लिए सजा नहीं मिल पा रही। साथ ही, उसके पास आरोपियों को दोषी नहीं करार देने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। 

फैसले में कहा गया है सीबीआई के इस सिद्धांत को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि एक पुलिस टीम ने तीनों लोगों (मृतकों) को अगवा किया था। 

आदेश में यह भी कहा गया है कि सीबीआई यह साबित करने में भी नाकाम रही कि कथित घटना के वक्त मौके पर आरोपी पुलिसकर्मी मौजूद थे। 

क्या था पूरा मामला 

गौरतलब है कि तीनों लोग (मृतक) हैदराबाद से एक बस में महाराष्ट्र के सांगली लौट रहे थे, जिन्हें 22 - 23 नवंबर 2005 की दरम्यिानी रात एक पुलिस टीम ने कथित तौर पर हिरासत में ले लिया और दंपती को एक वाहन में ले जाया गया जबकि प्रजापति को दूसरे वाहन में ले जाया गया। 

सीबीआई के मुताबिक शेख 26 नवंबर 2005 को कथित तौर पर गुजरात और राजस्थान पुलिस की एक संयुक्त टीम ने मार गिराया और तीन दिन बाद कौसर बी मारी गई। प्रजापति 27 दिसंबर 2006 को गुजरात - राजस्थान सीमा पर एक मुठभेड़ में मारा गया। 

सीबीआई ने इस मामले में 38 लोगों को आरोपी बनाया था। अभियोजन ने 210 गवाहों से पूछताछ की जिनमें से 92 मुकर गए। 

अदालत का 21 दिसंबर का फैसला आने से पहले सबूतों के अभाव में गुजरात के तत्कालीन गृह मंत्री अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया तथा डीजी वंजारा और पीसी पांडे जैसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को बरी कर दिया गया था।

न्यायाधीश शर्मा का 21 दिसंबर का फैसला उनके करियर का संभवत: आखिरी फैसला था क्योंकि वह 31 दिसंबर को सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। (समाचार एजेंसी भाषा इनपुट के साथ)

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