एसकेएम ने प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखकर वार्ता बहाल करने को कहा, लखनऊ में सोमवार को होगी महापंचायत

By भाषा | Updated: November 21, 2021 23:02 IST2021-11-21T23:02:59+5:302021-11-21T23:02:59+5:30

SKM wrote an open letter to the Prime Minister asking for resumption of talks, Mahapanchayat will be held in Lucknow on Monday | एसकेएम ने प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखकर वार्ता बहाल करने को कहा, लखनऊ में सोमवार को होगी महापंचायत

एसकेएम ने प्रधानमंत्री को खुला पत्र लिखकर वार्ता बहाल करने को कहा, लखनऊ में सोमवार को होगी महापंचायत

नयी दिल्ली/लखनऊ, 21 नवंबर केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन की अगुवाई करने वाले किसान संगठनों के समूह संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम खुला पत्र लिखा और कहा कि जब तक सरकार उनकी छह मांगों पर वार्ता बहाल नहीं करती, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

वहीं, नरमी का कोई संकेत न दिखाते हुए किसान संगठनों ने घोषणा की कि वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने संबंधी कानून के लिए दबाव बनाने के वास्ते सोमवार को लखनऊ में महापंचायत के साथ ही अपने निर्धारित विरोध प्रदर्शनों पर अडिग हैं।

उधर, सरकारी सूत्रों ने रविवार को कहा कि तीन कृषि कानूनों को रद्द करने से संबंधित विधेयकों को मंजूरी दिए जाने पर बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा विचार किए जाने की संभावना है ताकि उन्हें संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में पेश किया जा सके।

एसकेएम ने पत्र में तीनों कृषि कानून वापस लेने के फैसले पर आभार जताया, हालांकि, कहा, ‘‘ 11 दौर की वार्ता के बाद, आपने द्विपक्षीय समाधान के बजाए एकतरफा घोषणा करने का रास्ता अपनाया।’’

मोर्चा ने छह मांगें रखीं, जिनमें उत्पादन की व्यापक लागत के आधार पर एमएसपी को सभी कृषि उपज के लिए किसानों का कानूनी अधिकार बनाने, लखीमपुर खीरी घटना के संबंध में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा को बर्खास्त करने और उनकी गिरफ्तारी के अलावा किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेने और आंदोलन के दौरान जान गंवाने वालों के लिए स्मारक का निर्माण शामिल है।

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में अक्टूबर में हुई घटना के दौरान चार प्रदर्शनकारी किसानों की मौत हो गई थी। इस मामले में मंत्री अजय मिश्रा के बेटे को गिरफ्तार किया गया था।

एसकेएम ने पर्यावरण संबंधी अधिनियम में किसानों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई का प्रावधान हटाए जाने और सरकार द्वारा प्रस्तावित विद्युत संशोधन विधेयक 2020-2021 के मसौदे को वापस लेने की भी मांग की है।

पत्र में कहा गया, '' प्रधानमंत्री, आपने किसानों से अपील की है कि अब हमें वापस लौट जाना चाहिए। हम आपको यह भरोसा दिलाना चाहते हैं कि हमें सड़कों पर बैठने का कोई शौक नहीं है। हमारी भी यहीं इच्छा है कि इन लंबित मुद्दों का जल्द से जल्द समाधान होने के बाद हम अपने घरों, परिवारों और खेतों को लौट सकें।''

इसमें कहा गया, '' अगर आप ऐसा चाहते हैं, तो सरकार को उक्त छह मांगों पर जल्द से जल्द संयुक्त किसान मोर्चा के साथ वार्ता बहाल करनी चाहिए। तब तक, संयुक्त मोर्चा का आंदोलन जारी रहेगा।''

इस बीच, आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने कहा कि वे अपने निर्धारित विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे, जिसमें कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनों का एक साल पूरा होने के उपलक्ष्य में 29 नवंबर को संसद तक मार्च भी शामिल है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुक्रवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा किए जाने के बाद अपनी पहली बैठक में आंदोलनकारी किसान संगठनों के निकाय ने यह निर्णय लिया।

प्रदर्शन स्थलों में से एक सिंघू बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने कहा, “हमने कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की घोषणा पर चर्चा की। इसके बाद, कुछ फैसले लिए गए। एसकेएम के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम पहले की तरह ही जारी रहेंगे। 22 नवंबर को लखनऊ में किसान पंचायत, 26 नवंबर को सभी सीमाओं पर सभा और 29 नवंबर को संसद तक मार्च होगा।”

संगठन ने कहा कि एसकेएम आगे की कार्रवाई पर विचार करने के लिए 27 नवंबर को फिर बैठक करेगा। इसने कहा कि वह अपनी मांगों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र भी लिखेगा।

तीन कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के आंदोलनकारी किसान पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर तीन जगहों पर बैठे हुए हैं। उनका कहना है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, तब तक वे वापस नहीं जाएंगे।

विपक्षी दलों ने स्थिति के लिए सरकार को दोषी ठहराया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने रविवार को कहा कि अतीत में ‘झूठे जुमले’ झेल चुके लोग कृषि कानूनों को निरस्त करने के प्रधानमंत्री के बयान पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं।

समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी केंद्र की घोषणा को लेकर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मंशा पर संशय जाहिर करते हुए कहा कि भाजपा का दिल साफ नहीं है और वह उत्तर प्रदेश में 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के बाद इस संबंध में फिर से विधेयक लाएगी।

सपा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया, ‘‘साफ नहीं इनका दिल, चुनाव बाद फिर लाएंगे बिल (विधेयक)।''

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने भी इसी तरह की बात कही।

उन्होंने कहा, ‘‘तीनों कृषि कानून वापस लेने का काम देर से हुआ है, लेकिन इस अवधि में 700 से ज्यादा किसानों की मौत हो गई है। इन मौतों की जिम्मेदारी कौन लेगा? अब भी लोगों को इस निर्णय पर भरोसा नहीं है, क्योंकि भाजपा के कई लोग कह रहे हैं कि इन कानूनों को फिर से लाया जाएगा।’’

शिवसेना सांसद संजय राउत ने मांग की कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर तक चले विरोध प्रदर्शन के दौरान जान गंवाने वाले 700 से अधिक किसानों के परिजनों को ‘पीएम केयर्स फंड’ से वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए।

राउत ने कहा, ‘‘सरकार को अब अपनी गलती का अहसास हुआ है और उसने कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। देश के विभिन्न हिस्सों से मांग है कि जान गंवाने वाले किसानों के परिजनों को आर्थिक मुआवजा दिया जाए।’’

न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर भी विपक्षी दलों ने आंदोलनकारी किसानों को अपना समर्थन जारी रखा है।

भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने लखनऊ में लोगों से 'एमएसपी अधिकार किसान महापंचायत' में शामिल होने का आग्रह किया, जिसे किसान संगठनों द्वारा ताकत दिखाने की कवायद माना जा रहा है।

उन्होंने ट्वीट किया, ‘‘चलो लखनऊ-चलो लखनऊ। सरकार द्वारा जिन कृषि सुधारों की बात की जा रही है, वे नकली एवं बनावटी हैं। इन सुधारों से किसानों की बदहाली रुकने वाली नहीं है। कृषि एवं किसानों के लिए न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य को कानून बनाना सबसे बड़ा सुधार होगा।’’

भारतीय किसान यूनियन की उत्तर प्रदेश इकाई के उपाध्यक्ष हरनाम सिंह वर्मा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘प्रधानमंत्री ने तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि एमएसपी कानून कब बनेगा। जब तक एमएसपी कानून नहीं बनता और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को नहीं हटाया जाता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा।’’

उत्तर प्रदेश की राजधानी में किसान महापंचायत इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कृषि पर निर्भर राज्य में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव है।

लखनऊ के पुलिस आयुक्त डी. के. ठाकुर ने कहा कि ईको गार्डन में होने वाले कार्यक्रम के लिए सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए हैं।

इस बीच, विभिन्न जिलों से आ रही खबरों में कहा गया है कि किसानों के समूह महापंचायत में शामिल होने के लिए लखनऊ जा रहे हैं।

लखीमपुर खीरी की घटना में मारे गए चार किसानों में शामिल गुरविंदर सिंह के पिता सुखविंदर सिंह ने कहा कि वह अन्य किसानों के साथ महापंचायत में मौजूद रहेंगे।

अपने समर्थकों के साथ महापंचायत में भाग लेने जा रहे राष्ट्रीय किसान मंच के अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने कहा कि सैकड़ों किसानों के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘‘जब तक प्रदर्शन कर रहे किसानों की सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं, आंदोलन जारी रहेगा। प्रधानमंत्री द्वारा कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा पांच राज्यों में आगामी चुनावों के कारण है, जहां भाजपा को दिख रहा है कि सत्ता उसके हाथों से फिसल रही है।’’

दीक्षित ने कहा, ‘‘अगर पिछले साल कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की गई होती तो कई किसानों की जान बचाई जा सकती थी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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