रांचीःझारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के संस्थापक दिशोम गुरू शिबू सोरेन मंगलवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। पारंपरिक संथाल रीति-रिवाजों के साथ उनका अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव नेमरा (रामगढ़ जिला) में बड़का नाला के पास शाम में करीब साढे पांच बजे किया गया। दिशोम गुरु को उनके कनिष्ठ पुत्र बसंत सोरेन ने मुखाग्नि दी। इस दौरान झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा राज्य और केंद्रीय मंत्री समेत कई दिग्गज गुरु जी को अंतिम विदाई देने गांव पहुंचे थे। इसके अलावा राज्य के लगभग सभी जिले से भारी संख्या में लोगों का जन सैलाब उमड़ा पड़ा था। सभी ने नम आंखों से गुरु जी को अंतिम विदाई दी।
इसके पहले गुरु जी का पार्थिव शरीर जैसे ही नेमरा गांव पहुंचा लोगों के आंखों से आंसू के सैलाब बह पड़ा। सभी की आंखें नम थीं। वहीं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनके भाई बसंत सोरेन की आंखें नम थी और दोनों भाई खुद को संभालते हुए वहां पर उपस्थित भीड़ को भी नियंत्रित कर रहे थे। वहां लगातार शिबू सोरेन अमर रहे का नारा गूंज रहे था।
दिशोम गुरु शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर घर पहुंचते ही परिजन दहाड़ मरकर रोने लगे। ऐसा लग रहा था मानो गुरु जी के जाने से उनके परिजन पूरी तरह टूट चुके हैं। पैतृक आवास में पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार परिजनों द्वारा उनको कफन ओढ़ाकर गुरु जी का पार्थिव शरीर को आवास से बाहर निकाला। उनके निधन से पत्नी रूपी सोरेन फफक कर रो पड़ीं।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन उन्हें संभालते दिखाई पड़ी। इस दौरान वहां पर जितने लोग मौजूद थे सबकी आंखें नम हो गई। दिशोम गुरु शिबू सोरेन के पार्थिव शरीर को जैसे ही घाट ले जाने के लिए निकाला गया, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन फूट-फूट कर रो पड़े। उनके साथ दोनों बेटे भी थे जिसकी आंखें नम थीं।
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और आदिवासी नेता शिबू सोरेन (गुरुजी) को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई। जैप (झारखंड आर्म्ड पुलिस) के जवानों ने पारंपरिक सलामी देकर उन्हें श्रद्धांजलि दी। शिबू सोरेन के निधन के बाद रांची स्थित उनके आवास पर श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहा।
गुरुजी का पार्थिव शरीर विधानसभा परिसर से नेमरा स्थित उनके पैतृक गांव के लिए रवाना किया गया तो शवयात्रा मेकॉन चौक, सिरमटोली, कांटाटोली और बूटी मोड़ होते हुए उनके गांव ले जाय गया। गुरुजी शिबू सोरेन की अंतिम यात्रा उनके आवास से शुरू हुई थी। उनका पार्थिव शरीर एंबुलेंस से विधानसभा परिसर की ओर रवाना हुआ, जिसमें उनके बेटे और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मौजूद थे।
शवयात्रा में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में लोग उमड़ पड़े थे। एंबुलेंस के पीछे हजारों की भीड़ पैदल चल रही थी। विधानसभा परिसर में शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि देने के लिए मंत्री, विधायक, पार्टी कार्यकर्ता और आमजन पहुंचे थे। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के अलावे भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन को श्रद्धांजलि अर्पित की।
उन्होंने कहा कि शिबू सोरेन आदिवासियों की सशक्त आवाज थे। उनकी सोच और संघर्ष को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मनोज तिवारी ने याद दिलाया कि स्वर्गीय सोरेन ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से झारखंड राज्य की मांग की थी और झारखंड के गठन में उनकी अहम भूमिका रही है।
बता दें कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने लंबी बीमारी के बाद सोमवार को अंतिम सांस ली थी। शिबू सोरेन एक महीने से ज्यादा समय से दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती थे। शिबू सोरेन को जून के आखिरी सप्ताह में किडनी संबंधी समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उल्लेखनीय है कि शिबू सोरेन ने सिर्फ एक आंदोलन खड़ा नहीं किया।
उन्होंने अगली पीढ़ी को भी तैयार किया। उनके बेटे हेमंत सोरेन आज झारखंड के मुख्यमंत्री हैं, जो पिता के रास्ते पर चल रहे हैं। शिबू सोरेन ने हमेशा आदिवासी समाज की शिक्षा, ज़मीन और पहचान की लड़ाई लड़ी। उनकी वजह से कई गांवों में स्कूल खुले, आदिवासी भाषा-संस्कृति को संरक्षण मिला।
झारखंड के महानायक और तीन बार के मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने जिंदगी की जंग को भी एक योद्धा की तरह लड़ा और अंतत: वीरगति को प्राप्त हुए। शिबू सोरेन आदिवासियों के सर्वमान्य नेता थे और उन्होंने अपना पूरा जीवन ही आदिवासी कल्याण के लिए लगाया।
झारखंड अलग राज्य का संघर्ष उन्होंने किया और तब तक लड़े जब तक कि उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ। शिबू सोरेन संताल आदिवासी के सर्वमान्य नेता थे। शिबू सोरेन ने अलग राज्य से पहले कराया था स्वायत्तशासी परिषद का गठन और 2008 में परिसीमन को रुकवाया। वर्ष 2000 में 15 नवंबर को बिहार से लग कराकर झारखंड राज्य का निर्माण कराया।