शहीदी दिवस: जानिए कौन थे सुखदेव और राजगुरु, जो भगत सिंह के साथ आज ही हुए थे शहीद

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: March 23, 2018 10:09 IST2018-03-23T09:04:31+5:302018-03-23T10:09:00+5:30

Shaheedi Diwas 2018: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को 23 मार्च 1931 को ब्रिटिश ने लाहौर जेल में फांसी दे दी थी।

On this Shaheedi Diwas, read the story of Indian Martyrs' Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev, real Freedom fighter hero | शहीदी दिवस: जानिए कौन थे सुखदेव और राजगुरु, जो भगत सिंह के साथ आज ही हुए थे शहीद

Shaheedi Diwas (शहीदी दिवस)| Shaheed Sukhdev (शहीद सुखदेव)| Saheed Rajguru (शहीद राजगुरु)

आज शहीद दिवस है। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर को अंग्रेजों ने लाहौर जेल फांसी दे दी थी।  तीनों को लाहौर षडयंत्र केस में फांसी की सजा सुनाई गई थी। देश की आजादी की राह में कुर्बान हर शहीद का बलिदान एक समान महत्व रखता है लेकिन कुछ लोगों को ज्यादा ख्याति प्राप्त हो जाती है और कुछ लोग समय की गर्त में खो जाते हैं। 23 मार्च 1931 को शहीद हुए इन तीनों शहीदों के मामले में भी यही होता है। वक्त के साथ भगत सिंह लोकप्रियता बरकरार रही लेकिन सुखदेव और राजगुरु को लोग भुलाते चले गये। शहीद दिवस पर भी ज्यादातर भगत सिंह की ही चर्चा होती है, उनके साथ ही फांसी पर लटके सुखदेव और राजगुरु की लगभग नहीं होती। आइए आज हम आपको सुखदेव और राजगुरु के बारे में बताते हैं।

कौन थे सुखदेव थापर?

सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना के नौगढ़ा मोहल्ले में रामलाल थापर और राली देवी के घर में हुआ था। सुखदेव के बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया था। उनका लालन-पालन उनके चाचा लाला अचिंतराम ने किया था। सुखदेव बचपन से ही ब्रिटिश शासन की ज्यादतियों के प्रति जागरूक हो चुके थे। लाहौर नेशनल कॉलेज में छात्र जीवन के दौरान ही उनकी भगत सिंह से दोस्ती हुई। दोनों ही स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय और इतिहासकार जय चंद विद्यालंकार से प्रभावित थे। लाहौर कॉलेज के छात्रों ने आजादी की लड़ाई में युवाओं को जोड़ने के लिए नौजवान भारत सभा का गठन किया था। भगत सिंह और सुखदेव इस संगठन के सक्रिय सदस्य थे। ये सभा कई प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों को कॉलेज में निमंत्रित करती थी। 

रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्लाह खान और रोशन सिंह, चंद्रशेखर आजाद इत्यादि ने जब हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) का गठन किया तो भगत सिंह और सुखदेव उसमें भी साथ-साथ थे। बिस्मिल, रोशन और अशफाक को फांसी हो जाने के बाद एसएसआरए में सर्वप्रमुख नेता चंद्रशेखर आजाद थे और उनके बाद भगत सिंह और सुखदेव ही वैचारिक रूप से सर्वाधिक प्रखर माने जाते थे।

भगत सिंह और सुखदेव केवल क्रांति की राह के साथ नहीं थे। दोनों के बीच प्रगाढ़ मित्रता थी और दोनों ही दुनिया के तमाम मसलों पर एक दूसरे से तीखी बहसें करते रहते थे। लाहौर षडयंत्र केस में गिरफ्तार होने के बाद भी दोनों के बीच जारी रहीं बहसों का संकेत भगत सिंह के पत्रों से मिलता है। इनमें से एक पत्र काफी प्रसिद्ध है जिसमें भगत सिंह ने प्रेम पर दोनों के परस्पर विपरीत विचारों और फिर बाद में दोनों के विचार के बदल जाने का जिक्र किया है।  

कौन थे शिवराम राजगुरु?

शिवराम राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के पुणे के एक गाँव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उस दौर के सभी क्रांतिकारी युवकों की तरह राजगुरु भी बचपन से ही देश की पीड़ा के प्रति जागरूक थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई स्थानीय स्कूलों में हुई। राजगुरु कुश्ती के शौकीन थे और कहते हैं कि वो अच्छे पहलवान थे। राजगुरु संस्कृत के विद्वान भी थे।  राजगुरु चंद्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी व्यक्तित्व और विचारों से प्रेरित होकर भगत सिंह और सुखदेव से मिले थे और हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हुए थे। तीनों के बीच जल्द ही गाढ़ी दोस्ती हो गयी। 

फ़रवरी 1928 में जब संवैधानिक सुधार की अनुशंसा पर विचार करने के लिए साइमन कमीशन भारत आया तो यहाँ उसका काफी विरोध हुआ। कमीशन में किसी भी भारतीय को नहीं शामिल किया गया था। पूरे देश में इसके खिलाफ आवाज उठी। देश भर में "साइमन गो बैक" के नारे गूँज उठे। साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान ही ब्रिटिश शासन ने लाठी चार्ज करवा दिया जिसमें स्वतंत्रता सेनानी और पंजाब के मशहूर नेता लाला लाजपत राय के सिर पर घातक चोट लगी और उन्हें नहीं बचाया जा सका।

लाला लाजपत राय की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिए राजगुरु और भगत सिंह ने लाठी चार्ज के लिए जिम्मेदार पुलिस अफसर जेम्स स्कॉट की हत्या की योजना बनाई।  योजना को अंजाम देने में तीनों से गलती हो गई और उन्होंने स्कॉट की जगह जॉन सॉन्डर्स की हत्या की हत्या कर दी।   

बाद में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली में बम फेंककर एचएसआरए के मकसद और अपने मंसूबों की घोषणा की थी। भगत सिंह और दत्त ने असेंबली में एक पर्चा फेंका था जिसका शीर्षक था- बहरों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत होती है। सिंह और दत्त ने असेंबली में खाली जगह पर बम फेंका था ताकि किसी की जान न जाए। उनका मकसद बस अपनी बात सत्ता और जनता तक पहुँचाना था।

ब्रिटिश शासकों ने सॉन्डर्स हत्या और असेंबली बम कांड दोनों की एक साथ सुनवाई करवाई। इसे ही लाहौर षडयंत्र केस नाम दिया गया।  तीनों को दोषी ठहराते हुए ब्रिटिश जज ने फांसी की सजा सुनाई।

शहीद-ए-आजम भगत सिंह-

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर में हुआ था। भगत सिंह का परिवार आर्यसमाजी था और आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने वाले अग्रणी परिवारों में एक था। उनके पिता और दो चाचा उस समय ही जेल से रिहा हुए थे जब भगत सिंह का जन्म हुआ। उनके चाचा अजित सिंह और स्वर्ण सिंह पंजाब के अग्रणी नेताओं में थे। भगत सिंह को देशप्रेम के संस्कार बचपन से घर में ही मिलने शुरू हो गये थे। भगत सिंह के पिता और चाचा गदर पार्टी के सदस्य थे। गदर पार्टी के नेता हर दयाल और कर्तार सिंह सराभा उनके आदर्श थे। भगत सिंह अपनी जेब में कर्तार सिंह सराभा की तस्वीर रखकर घूमते थे। भगत सिंह ने कर्तार सिंह सराभा पर एक लेख भी लिखा है जिसमें उन्होंने उन्हें अपना हीरो बताया था।

1923 में भगत सिंह का प्रवेश लाहौर नेशनल कॉलेज में हुआ। उन्होंने अपने साथीयों के साथ मिलकर 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की। बाद में वो हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के अहम सदस्य बने। सॉन्डर्स हत्या और असेंबली बम कांड में उन्हें सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी की सजा हुई। देश के इन तीनों सपूतों ने 23 मार्च 1931 को फानी दुनिया को अलविदा कह दिया।

English summary :
Shaheedi Diwas| Shaheed Diwas| Martyrs' Day: Know the Storu about Shaheed Sukhdev and Saheed Rajguru who Sacrificed their lives with Shaheed Bhagat Singh on 23rd March 1931


Web Title: On this Shaheedi Diwas, read the story of Indian Martyrs' Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev, real Freedom fighter hero

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