रूपकुंड झील: यहां बिखरे हैं कंकाल और नरमुंड, 4000 साल पुरानी लाशों का रहस्य आज भी नहीं जान पाए वैज्ञानिक, जानें सबकुछ

By शिवेन्द्र कुमार राय | Updated: September 2, 2024 16:05 IST2024-09-02T16:03:49+5:302024-09-02T16:05:32+5:30

Roopkund- lake of skeletons: कंकालों के पहले के अध्ययनों से पता चला है कि मरने वाले मध्यम आयु वर्ग के वयस्क थे, जिनकी उम्र 35 से 40 के बीच थी। कोई शिशु या बच्चे नहीं थे। रूपकुंड झील न तो किसी व्यापार मार्ग पर स्थित है न ही इस इलाके में किसी बड़े युद्ध का इतिहास है।

Roopkund lake ka rahasya lake of skeletons Himalaya Uttarakhand Nanda Devi | रूपकुंड झील: यहां बिखरे हैं कंकाल और नरमुंड, 4000 साल पुरानी लाशों का रहस्य आज भी नहीं जान पाए वैज्ञानिक, जानें सबकुछ

रूपकुंड झील, उत्तराखंड राज्य में हिमालय की गोद में समुद्र तल से 5,029 मीटर (16,500 फीट) ऊपर स्थित है

Highlightsरूपकुंड झील, उत्तराखंड राज्य में हिमालय की गोद में स्थित हैइसे "कंकालों की झील" भी कहते हैंआज तक, अनुमानित 600-800 लोगों के कंकाल अवशेष यहां पाए गए हैं

Roopkund- lake of skeletons: भारत के 11 राज्यों से होकर गुजरने वाला महान हिमालय पर्व अपने अंदर हजारों रहस्य भी समेटे हुए है। देवताओं का निवास माने जाने वाले हिमालय की गोद में कई ऐसे रहस्य आज भी पड़े हैं जिनके बारे में विज्ञान भी कोई सटीक जानकारी नहीं दे पाता। हिमालय से जुड़ी एक ऐसी ही रहस्यमयी जगह की बात हम इस लेख में करेंगे। ये कहानी हिमालय पर्वत में समुद्र तल से 5,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड झील की है जहां आज भी कई सौ व्यक्तियों के कंकाल और मुंड बिखरे हुए हैं।

रूपकुंड झील  (Roopkund- lake of skeletons) 

रूपकुंड झील, उत्तराखंड राज्य में हिमालय की गोद में स्थित है। यह समुद्र तल से 5,029 मीटर (16,500 फीट) ऊपर स्थित है। इसे "कंकालों की झील" भी कहते हैं क्योंकि इसके आसपास और बर्फ के नीचे सैकड़ों मानव कंकाल और मुंड बिखरे हुए हैं। इस झील की खोज 1942 में गश्त कर रहे एक ब्रिटिश वन रेंजर ने की थी। रूपकुंड झील  वर्ष के अधिकांश समय जमी रहती है। लेकिन जब बर्फ पिघलती है तो कंकाल दिखाई देते हैं। कभी-कभी ऐसे शव भी दिख जाते हैं जो अब भी अच्छे से संरक्षित हैं। यानी कि इन शवों पर मांस भी दिखता है।

आज तक, अनुमानित 600-800 लोगों के कंकाल अवशेष यहां पाए गए हैं। आधी सदी से भी अधिक समय से मानवविज्ञानी और वैज्ञानिक अवशेषों का अध्ययन कर रहे हैं लेकिन सभी सवालों के जवाब नहीं मिले हैं। कुछ कंकालों के के जीनोम डीएनए के अध्ययन से पता चला कि ये अवशेष एक साथ यहां जमा नहीं हुए। कुछ कंकाल 800 ईस्वी पूर्व के हैं। वहीं कुछ 1800 ईस्वी पूर्व के भी पाए गए।

आज भी ये सवाल जस का तस है कि ये कौन लोग थे? उनकी मृत्यु कब हुई? उनकी मृत्यु कैसे हुई? वे कहां से आए थे? कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ये  अवशेष भारतीय सैनिकों के हैं जिन्होंने 1841 में तिब्बत पर आक्रमण करने की कोशिश की थी। एक थियरी कहती है कि यह एक "कब्रिस्तान" रहा होगा जहां महामारी के पीड़ितों को दफनाया गया था। वहीं एक पुराना सिद्धांत अवशेषों को एक भारतीय राजा, उनकी पत्नी और उनके सेवकों से जोड़ता है, जो लगभग 870 साल पहले एक बर्फ़ीले तूफ़ान में मारे गए थे।

कंकालों के पहले के अध्ययनों से पता चला है कि मरने वाले मध्यम आयु वर्ग के वयस्क थे, जिनकी उम्र 35 से 40 के बीच थी। कोई शिशु या बच्चे नहीं थे। उनमें से कुछ बुजुर्ग महिलाएं थीं। सभी का स्वास्थ्य काफी अच्छा था। भारत, अमेरिका और जर्मनी स्थित 16 संस्थानों के कई विशेषज्ञों ने शोध किया और पता लगाया कि ये सारे लोग एक साथ यहां नहीं मरे। मरने वाले आनुवंशिक रूप से भी अलग थे और उनकी मृत्यु के समय में 1,000 वर्षों का अंतर था।

यह अभी भी स्पष्ट नहीं है कि रूपकुंड झील पर क्या हुआ था। कंकालों के अध्ययन से ये भी सामने आया कि इनमें से कुछ लोगों का डीएनए वर्तमान समय के उन लोगों के समान था जो दक्षिण एशिया में रहते हैं, जबकि कुछ लोगों का डीएनए  वर्तमान यूरोप में रहने वाले लोगों से मिलता है। 

रूपकुंड झील न तो किसी व्यापार मार्ग पर स्थित है न ही इस इलाके में किसी बड़े युद्ध का इतिहास है। अध्ययनों में किसी भी माहामारी के प्रकोप की बात भी सामने नहीं आई है। इस क्षेत्र में 19वीं शताब्दी से पहले तीर्थयात्रा के लिए आने वाले श्रद्धालुओं का भी कोई विवरण नहीं है। 

रूपकुंड झील के नीचे के गांवो में रहने वाले लोगों का भी अपना मत है। ये पूरा क्षेत्र  हिंदू धर्म में सर्वोच्च देवी, पार्वती की एक रूप नंदा देवी  तीर्थयात्रा के मार्ग पर है। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि यहां देवी अपने पति शिव के साथ रहती हैं। झील भी त्रिशूल पर्वत की तलहटी में स्थित है। ग्रामीण बताते हैं कि बहुत समय पहले नंदा देवी एक दूर के राज्य की यात्रा के लिए अपना घर छोड़कर चली गईं, जहां राजा और रानी ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया। नंदा देवी ने राज्य को शाप दिया। शाप के असर से आपदा फैली और  दूध और चावल में कीड़े पड़ गए। देवी को प्रसन्न करने के लिए राजा और रानी तीर्थयात्रा पर निकले लेकिन अपने साथ मनोरंजन के लिए नर्तकियों और संगीतकारों की एक टोली को अपने साथ ले गए। 

 नंदा देवी सांसारिक सुखों के प्रदर्शन से क्रोधित हो गईं और ओलों का तूफान और बवंडर भेजा। इसकी चपेट में आने से सभी लोग मारे गए। स्थानीय लोग मानते हैं कि झील में बिखरे कंकाल उन लोगों के लिए एक चेतावनी हैं जो देवी का अनादर करेंगे।

Web Title: Roopkund lake ka rahasya lake of skeletons Himalaya Uttarakhand Nanda Devi

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