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राजस्थान : सरकार-संगठन में खींचतान से दो खेमों में बंटी कांग्रेस, एक तरफ अशोक गहलोत, दूसरी ओर सचिन पायलट

By भाषा | Updated: June 14, 2019 15:04 IST

टीकाकारों के अनुसार जिस आग को 'गहलोत मुख्यमंत्री, पायलट उपमुख्यमंत्री' की घोषणा के साथ खत्म मान लिया गया था उसे लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस की हार और उसके बाद गहलोत के बयान ने फिर हवा दे दी है।

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राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस में संगठन व सरकार के स्तर पर जिस खींचतान व खेमेबंदी को पुराने दिनों की बात मान लिया गया था वह आम चुनावों में हार के बाद फिर खुलकर सामने आ गयी है। हाल ही की कुछ घटनाओं ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस का संगठन और सरकार दो खेमों में बंटी है। एक तरफ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं तो दूसरी ओर उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट।

इसी मंगलवार को भंडाना (दौसा) में पायलट के पिता व पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट की पुण्यतिथि पर आयोजित प्रार्थना सभा में सरकार के 15 मंत्रियों सहित 62 विधायक पहुंचे। मुख्यमंत्री गहलोत इस कार्यक्रम में नहीं गए लेकिन ट्वीटर के जरिए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके ठीक एक दिन बाद जब गहलोत जयपुर में एमएसएमई के एक पोर्टल की शुरुआत कर रहे थे तो कई बड़े मंत्री जयपुर में होने के बावजूद वहां नहीं आए। पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में उपाध्यक्ष मुमजात मसीह का कमरा हाल ही में बदल दिया गया।

गहलोत के करीबी माने जाने वाले मसीह को दो दशकों से आवंटित कमरे पर वरिष्ठ उपाध्यक्ष की नाम पट्टिका लगा दी गयी और उन्हें बगल वाले कमरे में बैठने को कहा गया। थोड़े दिन पहले टोंक में एक चालक की मौत के मामले में सत्तारूढ कांग्रेस के विधायक हरीश मीणा ही सरकार के खिलाफ धरने पर जा बैठे। पार्टी में खेमेबाजी के सवाल पर कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय में बैठने वाले एक वरिष्ठ नेता ने हंसते हुए कहा,' यह सवाल तो बड़े नेताओं से पूछिए, वही कुछ बता पाएंगे।'

दरअसल प्रदेश नेताओं की बयानबाजी पर नाराजगी जताते हुए प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने एक परामर्श जारी कर उनसे इस तरह की बयानबाजी से बचने को कहा था। इसी के चलते कांग्रेस के एक विधायक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,‘ लोगों का संगठन में खींचतान से कोई वास्ता नहीं। लेकिन अगर उससे सरकार का काम प्रभावित होता है तो उससे जनता में अच्छा संदेश नहीं जाता और न ही पार्टी के समर्थक व कार्यकर्ता अच्छा महसूस करते हैं।’

टीकाकारों के अनुसार जिस आग को 'गहलोत मुख्यमंत्री, पायलट उपमुख्यमंत्री' की घोषणा के साथ खत्म मान लिया गया था उसे लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 25 सीटों पर कांग्रेस की हार और उसके बाद गहलोत के बयान ने फिर हवा दे दी है। गहलोत ने एक टीवी साक्षात्कार में कहा भी था कि पायलट को कम से कम जोधपुर सीट पर हार की जिम्मेदारी तो लेनी ही चाहिए। जोधपुर सीट पर गहलोत के बेटे वैभव गहलोत चुनाव लड़े थे और बुरी तरह हार गए। इसके ठीक अगले दिन टोडाभीम से कांग्रेस विधायक पृथ्वीराज मीणा ने राज्य में पार्टी की हार के लिए गहलोत को जिम्मेदार ठहराते हुए पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की बात कर दी।

वहीं जयपुर सीट पर प्रत्याशी रही ज्योति खंडेलवाल ने अपनी हार के लिए पार्टी की उपाध्यक्ष अर्चना शर्मा व उनके पति पर खुलकर आरोप लगाए। पार्टी के नेता भी मानते हैं कि सरकार व संगठन के बारे में ऐसी खबरों, अटकलों से आम कार्यकर्ता निराश हैं। पूर्व सांसद और पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष शंकर पन्नू ने कहा,‘ निश्चित रूप से कांग्रेस के समर्थक और कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहे हैं ... ऐसी बयानबाजी करने वाले भले ही किसी ही गुट या खेमे के हों, नुकसान तो कांग्रेस का ही कर रहे हैं।’

पन्नू ने कहा कि पार्टी नेताओं को राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की राय मानते हुए एक महीने तक मौन व्रत रखकर मनन करना चाहिए। पार्टी के प्रदेश प्रभारी अनिवाश पांडे ने प्रदेश के नेताओं से अपनी वाणी पर संयम रखने की सलाह दी है लेकिन फिलहाल तो इस पर अमल होता नजर नहीं आ रहा।

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