राजस्थान: लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के हाथ खाली, नहीं है कोई लोकप्रिय उम्मीदवार!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: December 30, 2018 07:24 AM2018-12-30T07:24:57+5:302018-12-30T12:38:46+5:30
कांग्रेस के पास विधानसभा चुनाव की जीत का जोश जरूर है, लेकिन प्राप्त मतदान प्रतिशत पर नजर डालें तो लोस चुनाव आसान नहीं है। सबसे बड़ी परेशानी मंत्रिमंडल के गठन के बाद उभरा असंतोष है।
राजस्थान में विस चुनाव के बाद जहां कांग्रेस प्रदेश सरकार पर फोकस हो गई है, वहीं भाजपा ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। यहां की 25 सीटें दोनों ही दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यदि ये सीटें भाजपा के हाथ से निकल जाती हैं तो लोकसभा में पूर्ण बहुमत के लिए भाजपा की परेशानी बढ़ जाएगी तो उधर, कांग्रेस यदि यहां से अधिकतम सीटें नहीं जीत पाती है तो राहुल गांधी के लिए पीएम बनने की संभावना कमजोर पड़ेगी।
बीजेपी और कांग्रेस के पास प्रभावी लोकप्रिय उम्मीदवारों की कमी
याद रहे, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब, छत्तीसगढ़ आदि करीब आधा दर्जन ही ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस को जीत के लिए क्षेत्रीय दलों के समर्थन की ज्यादा जरूरत नहीं है और इस वक्त इन राज्यों में कांग्रेस के लिए बेहतर संभावनाएं भी हैं। राजस्थान में इस वक्त बड़ी समस्या यह है कि लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस, दोनों के पास प्रभावी लोकप्रिय उम्मीदवारों की कमी है।
कांग्रेस के पास विस चुनाव की जीत का जोश जरूर है, लेकिन प्राप्त मतदान प्रतिशत पर नजर डालें तो लोस चुनाव आसान नहीं है। सबसे बड़ी परेशानी मंत्रिमंडल के गठन के बाद उभरा असंतोष है। इस वक्त पूर्व मंत्री राजकुमार शर्मा, पूर्व मंत्री भंवरलाल शर्मा, पूर्व मंत्री महेन्द्रजीत सिंह मालवीया जैसे कुछ ऐसे नेता हैं जो लंबे समय से अपने-अपने क्षेत्रों में विस चुनाव जीतते रहे हैं। इतना ही नहीं, पिछली बार मोदी लहर के बावजूद ये चुनाव जीत गए थे।
लोकसभा चुनाव-2019 के मदृदेनजर बीजेपी ने होमवर्क करना किया शुरु
राजकुमार शर्मा को तो पिछली बार कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया था तो वे निर्दलीय चुनाव लड़े थे और तीस हजार से ज्यादा वोटों से जीते थे। महेन्द्रजीत सिंह मालवीया को मंत्रिमंडल में नहीं लेने के बाद यह चर्चा थी कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वाया जा सकता है, लेकिन उन्होंने इससे साफ इंकार कर दिया। भंवरलाल शर्मा के समर्थकों ने पूरे प्रदेश में अपना विरोध दर्ज करवाया था।
नाथद्वारा से जीते सीपी जोशी को भी मंत्री नहीं बनाया गया तो समर्थकों ने न केवल विरोध व्यक्त किया बल्कि चेतावनी भी दी कि यदि जोशी को मंत्रिमंडल में सम्मानजनक स्थान नहीं मिला तो इसका नुकसान कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में होगा। लोकसभा चुनाव में जाने से पहले कांग्रेस को असंतोष को शांत करना होगा।
उधर, भारतीय जनता पार्टी ने आगामी लोकसभा चुनाव-2019 के मदृदेनजर होमवर्क करना शुरु कर दिया है। इसी क्रम में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 18 राज्यों में चुनाव प्रभारी व सहप्रभारियों का एलान कर दिया है। इनमें केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को भाजपा राजस्थान का चुनाव प्रभारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी को सहप्रभारी बनाया गया है। भाजपा ने इस दिशा में कार्य भी प्रारंभ कर दिया है। पिछले लोस चुनाव में भाजपा ने राजस्थान की 25 में से 25 सीटें जीत लीं थी। भाजपा पर इन 25 सीटों को बचाने का दबाव है।
राजस्थान में पूर्व सीएम वसुंधरा राजे पर भाजपा की निर्भरता है, क्योंकि प्रदेश में अभी भी राजे ही सर्वाधिक लोकप्रिय और प्रभावी नेता हैं। इस विस चुनाव में भाजपा को सामान्य वर्ग की नाराजगी का नुकसान उठाना पड़ा है। इस बार ब्राह्मण, राजपूत आदि समाजों का साथ भाजपा को नहीं मिल पाया है। जहां राजपूत समाज के लिए खुद राजे को विशेष प्रयास करने होंगे वहीं ब्राह्मण समाज के लिए देवस्थान बोर्ड के अध्यक्ष एसडी शर्मा की कोशिशें काम आ सकती है। सियासी सारांश यही है कि अगला लोकसभा चुनाव न तो कांग्रेस के लिए आसान है और न ही भाजपा के लिए, दोनों ही दलों को दल निरपेक्ष मतदाताओं को भरोसा दिलाना होगा, तभी कामयाबी मिल पाएगी।