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बिजली नहीं, कोचिंग नहीं? फिर भी चंचल बनीं टॉपर, 99.83% के साथ चमकीं भरतपुर की बेटी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: June 10, 2025 18:15 IST

चंचल की पढ़ाई और दिनचर्या की जिम्मेदारी मुख्यतः उनकी मां और छोटे भाई पर रही, जबकि पिता फोन पर सीमित बातचीत के ज़रिए उनका हौसला बढ़ाते रहे।

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ठळक मुद्देबेहद अहम शैक्षणिक वर्ष में वे चंचल के साथ कम ही समय बिता पाए।फोन भी चार्ज नहीं कर पाती थी जिससे ऑनलाइन क्लास देख सकूं।

भरतपुरः राजस्थान के भरतपुर ज़िले के एक छोटे से गाँव पंडेका से आने वाली 15 वर्षीय चंचल मेहरा ने RBSE कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा में 500 में से 499 अंक हासिल किए हैं। 99.83% के साथ वह राज्य की टॉप करने वाली छात्राओं में शामिल हैं, यह साबित करते हुए कि संसाधनों की कमी सफलता की राह में बाधा नहीं बन सकती, अगर इरादे मजबूत हों। साधन-संसाधनों की सीमित पहुंच के बावजूद चंचल ने यह सफर तय किया है। वह संयुक्त परिवार में रहती हैं —दादा-दादी, चाचा-चाची, भाई-बहन, सभी एक ही छत के नीचे। उनके पिता धर्मपाल लगभग 600 किलोमीटर दूर एक शहर में काम करते हैं, ताकि परिवार का भरण-पोषण हो सके। इसका मतलब ये भी था कि इस बेहद अहम शैक्षणिक वर्ष में वे चंचल के साथ कम ही समय बिता पाए।

चंचल की पढ़ाई और दिनचर्या की जिम्मेदारी मुख्यतः उनकी मां और छोटे भाई पर रही, जबकि पिता फोन पर सीमित बातचीत के ज़रिए उनका हौसला बढ़ाते रहे। “ऐसे दिन भी आए जब शाम को बिजली नहीं होती थी। इनवर्टर न होने की वजह से मैं मम्मी का फोन भी चार्ज नहीं कर पाती थी जिससे ऑनलाइन क्लास देख सकूं,” चंचल याद करती हैं।

“उस समय तो लगा था कि शायद मैं परीक्षा भी पास न कर पाऊं।” बिजली की अनियमित आपूर्ति, कोचिंग की गैर-मौजूदगी और पढ़ाई के सीमित साधनों के बीच चंचल की तैयारी बहुत योजनाबद्ध नहीं थी। उन्होंने कोई सख़्त टाइमटेबल नहीं बनाया — बल्कि छोटे-छोटे समय निकालकर पढ़ाई की, घर के कामों और भाई के साथ खेलने के बीच।

अक्टूबर से उन्होंने गंभीरता से पढ़ाई शुरू की, लेकिन असली बदलाव जनवरी में आया जब परिवार ने घर में इनवर्टर लगवाया। “बिजली बेहतर हुई तो मैंने मम्मी के फोन पर फिज़िक्सवाला की ऑनलाइन क्लास देखनी शुरू की। सुबह 5 बजे उठकर मैथ्स की क्लास लेती थी। समझना आसान हो गया,” चंचल बताती हैं। “मैंने चैप्टर वाइज सिलेबस पूरा किया और लगातार पढ़ाई की।”

हर सुबह चंचल बस से स्कूल जातीं, स्कूल में होमवर्क निपटातीं, और घर लौटकर शाम को बिजली मिलते ही रिवीजन करतीं। आत्मविश्वास धीरे-धीरे बढ़ा। “जब प्रश्न पत्र देखा तो लगा कि मैं कर लूंगी। टॉप करूंगी ये नहीं सोचा था, लेकिन पास ज़रूर हो जाऊंगी, ये भरोसा था।”

हालात हमेशा चुनौतीपूर्ण रहे — कभी कम बैटरी, तो कभी लंबे घंटों तक पढ़ाई — लेकिन चंचल मानती हैं कि परिवार का सहयोग ही सबसे बड़ी ताक़त बना। “हमारे पास बहुत कुछ नहीं था, लेकिन मैं उनसे हर बात कर सकती थी,” वह कहती हैं। उनके पिता आज भी उनके सबसे बड़े सपोर्टर हैं।

“मेरा सपना है कि वह IAS अफसर बने। वह बहुत होशियार और मेहनती है। मैं उसे हर संभव सहायता दूंगा,” वे कहते हैं। चंचल भी यही सपना देखती हैं, लेकिन सबसे पहले वह इंजीनियर बनना चाहती हैं। अगला लक्ष्य: JEE की तैयारी। उसके बाद, सिविल सेवा।

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