Raj and Uddhav Thackeray: नगर निकाय चुनाव में गठजोड़?, उद्धव के साथ गठबंधन में राज ठाकरे का पलड़ा भारी, राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा- बाजी मारेंगे मनसे प्रमुख
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 14, 2025 21:09 IST2025-09-14T21:07:33+5:302025-09-14T21:09:44+5:30
Raj and Uddhav Thackeray: शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) साल 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के कारण पार्टी (अविभाजित शिवसेना) के दो हिस्सों में बंटने के बाद अस्तित्व में आई थी।

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Raj and Uddhav Thackeray: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरेमुंबई और आसपास के महानगरीय क्षेत्र सहित राज्य के कई शहरों में होने वाले नगर निकाय चुनावों से पहले अपने चचेरे भाई उद्धव ठाकरे की शिवसेना (उबाठा) के साथ संभावित गठबंधन की शर्तें तय करते नजर आ रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों ने रविवार को यह बात कही। शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) साल 2022 में एकनाथ शिंदे की बगावत के कारण पार्टी (अविभाजित शिवसेना) के दो हिस्सों में बंटने के बाद अस्तित्व में आई थी।
पिछले साल नवंबर में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में पार्टी ने बेहद निराशाजनक प्रदर्शन करते हुए महज 20 सीटों पर दर्ज की थी। राजनीतिक विश्लेषकों ने कहा कि कई पूर्व पार्षदों और नेताओं ने उद्धव के नेतृत्व वाली पार्टी का दामन छोड़ दिया है, जिसके कारण उन्हें मराठी वोटों को एकजुट करने के लिए राज ठाकरे का समर्थन लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
उद्धव और राज ने हाल-फिलहाल में न सिर्फ मंच साझा किया है, बल्कि उनके बीच कई मुलाकातें भी हुई हैं, जिससे शिवसेना (उबाठा) और मनसे के बीच गठबंधन की अटकलों को बल मिला है। स्कूलों के लिए त्रिभाषा नीति का उद्धव और राज दोनों ने ही विरोध किया था। उन्होंने दावा किया कि इस नीति में हिंदी को मराठी भाषा पर प्राथमिकता दी गई है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस नीत सरकार के त्रिभाषा नीति से जुड़ा सरकारी आदेश (जीआर) वापस लेने के बाद उद्धव और राज ने पांच जुलाई को वर्ली में एक संयुक्त विजय रैली में लगभग दो दशक बाद मंच साझा किया था। इस रैली में उद्धव के बेटे आदित्य और राज के बेटे अमित भी शामिल हुए थे।
आयोजन स्थल पर मौजूद नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच दिखी आत्मीयता से दोनों पक्षों के पारिवारिक एवं राजनीतिक संबंधों में सुधार के संकेत मिले थे। इसके बाद 27 जुलाई को राज ने उद्धव को जन्मदिन की बधाई देने के लिए बांद्रा स्थित उनके आवास ‘मातोश्री’ का दौरा किया था। वहीं, अगस्त में उद्धव और उनका परिवार गणपति उत्सव मनाने के लिए दादर के शिवाजी पार्क क्षेत्र में स्थित राज के घर ‘शिवतीर्थ’ पहुंचा था। राज ने 19 अप्रैल को अभिनेता-निर्देशक महेश मांजरेकर के साथ एक पॉडकास्ट में कहा था कि वह मराठी पहचान और महाराष्ट्र के कल्याण के लिए “सब कुछ भूलने” को तैयार हैं।
मनसे प्रमुख का इशारा उनके और उद्धव के बीच की कड़वाहट की ओर था। उसी दिन, उद्धव ने भी राज के साथ अपने सभी मतभेदों को सुलझाने की इच्छा जाहिर की। 20 अप्रैल को शिवसेना (उबाठा) के प्रमुख नेता संजय राउत ने इसे “भाइयों के बीच भावनात्मक आदान-प्रदान” बताया, जिससे दोनों दलों के भविष्य में साथ आने की अटकलें तेज हो गईं।
एक राजनीतिक विश्लेषक ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, “उद्धव अपनी पार्टी के कमजोर पड़ने के बाद गठबंधन पर जोर दे रहे हैं। 2017 में बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के चुनावों के बाद उन्होंने राज को झटका देते हुए सात में से छह मनसे पार्षदों को अपने पाले में शामिल कर लिया था। अब, उद्धव को राज के शहरी मराठी आधार की जरूरत है। राज ही शर्तें तय कर रहे हैं।
उद्धव की वोटों की चाह राज का पलड़ा भारी करती है।” मनसे के एक सूत्र ने दावा किया, “राज को उनके पार्टी (अविभाजित शिवसेना) छोड़ने में उद्धव की भूमिका याद है। वह अपनी शर्तों पर बातचीत कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि उद्धव की पार्टी कमजोर है।” बताया जा रहा है कि उद्धव, राउत और अनिल परब ने पिछले हफ्ते ‘शिवतीर्थ’ में राज से ढाई घंटे की मुलाकात की थी, जिसमें बीएमसी चुनाव में सीटों के बंटवारे पर चर्चा हुई थी। हालांकि, बाद में राउत ने इसे पारिवारिक मुलाकात बताया था।
राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “राउत लगातार कह रहे हैं कि उद्धव और राज साथ आएंगे। हालांकि, राज के आवास पर दो घंटे से ज्यादा समय बिताने के बाद भी, उन्होंने अपना सुर बदलते हुए कहा कि यह एक पारिवारिक मुलाकात थी। मतलब साफ है कि राज की ओर से कोई कड़ा रुख जरूर रहा होगा, जिसने उद्धव और उनकी पार्टी को पीछे धकेल दिया होगा और राउत को इसे एक पारिवारिक मुलाकात बताने के लिए मजबूर किया होगा।” पूर्व पत्रकार संदीप आचार्य का मानना है कि दोनों चचेरे भाइयों को एक-दूसरे की जरूरत है, लेकिन दिक्कत यह है कि दोनों का ज्यादातर समान क्षेत्रों में दबदबा है।
आचार्य ने कहा, “उद्धव ने राज से समर्थन की मांग की है। यह सच है कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है, लेकिन उनके दबदबे वाले ज्यादातर क्षेत्र समान हैं। सीटों के बंटवारे के मामले में यह एक अहम मोड़ हो सकता है और राज निश्चित रूप से अपनी पार्टी के लिए अच्छी हिस्सेदारी चाहेंगे।” उन्होंने कहा कि पहले भी ऐसे मौके आए हैं, जब राज ने उद्धव के साथ हाथ मिलाने की इच्छा जताई थी, लेकिन उद्धव ने उनकी अनदेखी की। आचार्य ने कहा, “राज को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी।
अब इन चर्चाओं में ये कारक भी मायने रखेंगे। उद्धव को यह भी आकलन करना होगा कि राज के साथ गठबंधन से उनकी झोली में कुछ वोट तो जुड़ सकते हैं, लेकिन उन्हें मुसलमानों और गैर-मराठी भाषियों के समर्थन में संभावित कमी को भी ध्यान में रखना होगा, जिन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी के पक्ष में मतदान किया था।”