Rahul Gandhi defamation case: पुर्णेश मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "राहुल ने अहंकार दिखाया है, याचिका खारिज होने के लायक"

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: August 1, 2023 12:39 IST2023-08-01T12:35:22+5:302023-08-01T12:39:49+5:30

भाजपा विधायक पुर्णेश मोदी ने राहुल गांधी मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने जवाब में कहा है कि कांग्रेस के पूर्व प्रमुख लगातार अपने "अहंकार" को प्रदर्शित कर रहे हैं, इस कारण उच्चतम न्यायालय में दायर की गई उनकी याचिका खारिज कर दिया जाना चाहिए।

Rahul Gandhi defamation case: Punnesh Modi said in Supreme Court, "Rahul has shown arrogance, petition deserves to be dismissed" | Rahul Gandhi defamation case: पुर्णेश मोदी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "राहुल ने अहंकार दिखाया है, याचिका खारिज होने के लायक"

फाइल फोटो

Highlightsभाजपा विधायक पुर्णेश मोदी ने राहुल गांधी मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जवाब पुर्णेश मोदी ने कहा है कि सजा सुनाये जाने के बाद भी राहुल गांधी "अहंकार" को प्रदर्शित कर रहे हैंराहुल की याचिका सुने जाने के योग्य नहीं लगती है, इसलिए सर्वोच्च अदालत उसे खारिज कर दे

नई दिल्ली: भाजपा विधायक पुर्णेश मोदी ने राहुल गांधी मानहानि मामले में सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने जवाब में कहा है कि कांग्रेस के पूर्व प्रमुख लगातार अपने "अहंकार" को प्रदर्शित कर रहे हैं, इस कारण उच्चतम न्यायालय में दायर की गई उनकी याचिका सुने जाने के योग्य नहीं लगती है और वो अदालत से अपील करते हैं कि उनकी खारिज कर दिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट में पेश किये अपने जवाब में पूर्णेश मोदी ने कहा जब राहुल गांधी को निचली अदालत से सजा सुनाई गई तो उसके बाद भी उन्हें प्रेस कांफ्रेंस करके वह अवमानना के लिए कभी भी माफी नहीं मांगेंगे क्योंकि वह सावरकर नहीं बल्कि गांधी हैं।

मोदी ने कोर्ट से कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा  सजा सुनाए जाने के समय भी मानहानि के आरोपी राहुल गांधी को कोई पश्चाताप नहीं था बल्कि इसके उलट वो अपने अहंकार को प्रदर्शित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राहुल ने अदालत से दोषी ठहराये जाने के कोई न तो सजा के खिलाफ रहम की मांग की और न ही मोदी समाज की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए माफी मांगी।

सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने जवाब में पुर्णेंश मोदी ने आगे कहा कि राहुल गांधी का रवैया दर्शाता है कि उनकी सजा पर रोक नहीं लगानी चाहिए क्योंकि वह अहंकारी हैं। नाराज समुदाय के प्रति उनके असंवेदनशीलता रवैये और कानून के प्रति उनकी अवमानना माफी के काबिल नहीं है।

इसके अलावा मोदी ने अपने जवाब में यह भी कहा है कि राहुल गांधी ने देश के निर्वाचित प्रधानमंत्री के प्रति "व्यक्तिगत नफरत" के कारण अपमानजनक बयान दिया है। इस कारण वो सहानुभूति के पात्र नहीं हैं। राहुल गांधी का इतिहास भी अपमानजनक रहा है। मोदी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राहुल गांधी के खिलाफ चल रहे नेशनल हेराल्ड आपराधिक मुकदमे का हवाला दिया, जिसमें वो जमानत पर चल रहे हैं।  इसके साथ ही पुर्णेश मोदी ने कोर्ट के सामने राहुल गांधी के खिलाफ वीर सावरकर के मानहानि केस का प्रकरण भी सामने रखा।

सुप्रीम कोर्ट में दखिल किये गये पुर्णेश मोदी के जवाब में कहा गया है कि राहुल गांधी को सजा सुनाने का निचली अदालत का फैसला पूरी तरह से उचित था और सत्र न्यायालय के फैसले में उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से इनकार इस बात को प्रमाणित करता है कि निचली अदालत का फैसला पूरी तरह से सही है।

मालूम हो कि बीते 21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट 'मोदी उपनाम' मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार करने वाले गुजरात उच्च न्यायालय के दिये फैसले के खिलाफ कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा दायर याचिका की सुनवाई पर सहमत हो गया।

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने इस सवाल पर नोटिस जारी किया था कि क्या दोषसिद्धि को निलंबित किया जाना चाहिए या नहीं। लेकिन इसी के साथ ही दोनों जजों की बेंच ने राहुल को निचली अदालत से मिली सजा को निलंबित करने की याचिका पर कोई अंतरिम राहत नहीं दी थी।

राहुल गांधी के खिलाफ मानहानी केस का प्रकरण साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में दिये उनके विवादित भाषण से संबंधित है, जिसमें राहुल गांधी ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भगोड़े व्यवसायी नीरव मोदी और ललित मोदी के बीच मोदी उपनाम होने के कारण साम्य स्थापित करने की कोशिश की थी। राहुल ने टिप्पणी की थी कि सभी चोरों के उपनाम 'मोदी' कैसे हो सकते हैं।

इसी विवाद को लेकर राहुल गांधी मानहानि के दोषी करार दिये गये थे और उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। बीते मार्च में सूरत की सत्र अदालत ने मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा राहुल को मिली सजा को निलंबित करने की मांग करने वाली उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। उसके बाद गुजरात हाईकोर्ट ने भी निचली आदालत के फैसले को बरकरार रखा था।

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