रवींद्रनाथ टैगोर: नोबेल जीतने वाले पहले एशियाई, जलियाँवाला बाग नरसंहार के विरोध में लौटाया था नाइटहुड
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: August 7, 2018 07:46 AM2018-08-07T07:46:45+5:302018-08-07T07:46:45+5:30
रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म सात मई 1961 को हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर दुनिया के संभवतः एकमात्र कवि हैं जिनकी कविता दो देशों का राष्ट्रगान है। भारत का राष्ट्रगान "जन मन गण अधिनायक" और बांग्लादेश का राष्ट्रगान "आमार सोनार बांग्ला" दोनों के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर हैं।
कई आलोचक रवींद्रनाथ टैगोर को आधुनिक भारत का सबसे बड़ा रचनाकार मानते हैं। सात मई 1861 को कोलकाता (तब कलकत्ता) के प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता देवेंद्र नाथ टैगोर प्रसिद्ध कारोबारी, विद्वान और समाज सुधारक थे। टैगोर परिवार का माहौल सांस्कृतिक था। इस माहौल में रवींद्रनाथ टैगोर बचपन से ही कविता लिखने लगे थे। कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास, संगीत और चित्रकला सभी में रवींद्रनाथ की नवउन्मेषशालिनी प्रतिभा ने अपना रंग दिखाया और समूचे बांग्लाभाषी समाज में वो अग्रणी रचनाकार बन गये। टैगोर को बांग्ला में आधुनिक कहानी, उपन्यास और नाटक का अग्रदूत माना जाता है। रचनात्मक साहित्य के अलावा रवीद्रनाथ को उनके वैचारिक लेखन और विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भी याद किया जाता है। रवींद्रनाथ टैगोर दुनिया के संभवतः एकमात्र कवि हैं जिनकी कविता दो देशों का राष्ट्रगान है। भारत का राष्ट्रगान "जन मन गण अधिनायक" और बांग्लादेश का राष्ट्रगान "आमार सोनार बांग्ला" दोनों के रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर हैं। पिछले कुछ सालों में आधुनिकता, हिन्दू धर्म और राष्ट्रवाद से जुड़े सार्वजनिक विमर्शों में रवींद्ननाथ के विचार चर्चा के केंद्र में रहे। विश्व साहित्य के चितेरे रचनाकार और विचारक का सात अगस्त 1941 को 80 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।
रवींद्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबेल
गीतांजलि, गोरा और घर-बाहर जैसी रचनाओं से रवींद्रनाथ टैगोर खुद को बांग्ला साहित्य के सबसे प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में स्थापित कर चुके थे। भारत से बाहर भी रवींद्रनाथ की ख्याति फैल चुकी थी लेकिन उनकी प्रसिद्धी उस समय अपने उरूज पर पहुंच गयी जब उनके कविता संग्रह गीतांजलि को 1913 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। गीतांजलि के बांग्ला से अंग्रेजी अनुवाद खुद रवींद्रनाथ ने किया था। रवींद्रनाथ को नोबेल पुरस्कार के लिए उनके मित्र और इंग्लिश कवि थॉमस एस मूर (चार मार्च 1870-18 जुलाई 1944) ने नामित किया था।
रवींद्रनाथ नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई थे। वो पहले गैर-यूरोपीय साहित्यकार थे जिसने ये पुरस्कार प्राप्त किया था। 1901 में स्थापित हुए नोबेल पुरस्कार के इतिहास में पहली बार किसी अश्वेत व्यक्ति को साहित्य का नोबेल दिया गया। नोबेल पुरस्कार के रूप में रवींद्रनाथ को मेडल, प्रशस्ति पत्र और आठ हज़ार पाउण्ड का पुरस्कार दिया गया था। नोबेल पुरस्कार समिति ने अपनी प्रशस्ति में लिखा था, "गहरी संवेदनशीलता, नवता और खूबसूरती और काव्य कौशल के सहारे अपने काव्यात्मक विचारों को अभिव्यक्त किया है। अंग्रेजी में भी उन्होंने अपे ही शब्दों में इसे व्यक्त किया है जो पश्चिमी साहित्य का हिस्सा है।" माना जाता है कि रवींद्रनाथ टैगोर ने नोबेल पुरस्कार के साथ मिली राशि का इस्तेमाल विश्व भारती विश्वविद्यालय के निर्माण में किया था।
रवींद्रनाथ टैगोर के नोबेल पुरस्कार की चोरी
रवींद्रनाथ टैगोर को मिला नोबेल मेडल साल 2004 में चोरी हो गया। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने चोरी की जाँच सीबीआई को सौंप दी। साल 2009 में सीबीआई ने सुराग न मिलने के आधार पर मामले को बंद कर दिया। चोरी की रिपोर्ट दर्ज होने के करीब 12 साल बाद साल 2016 में पश्चिम बंगाल सीआईडी ने बाउल कलाकार प्रदीप बाउरी समेत कइयों को रवींद्रनाथ टैगोर के नोबेल मेडल की चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया। रवींद्रनाथ को मिला नोबेल मेडल खोजने के बजाय सीबीआई और पश्चिम बंगाल सीआईडी आपस में आरोप-प्रत्यारोप में उलझ गयीं। दूसरी तरफ भारत भले ही नोबेल जीतने वाले एकमात्र भारतीय साहित्यकार की अमानत को सुरक्षित न रख पाया हो इस पुरस्कार को देने वाली स्वीडिश एकैडमी ने विश्व भारती विश्वविद्यालय को स्वर्ण और कांस्य से बनी नोबेल पुरस्कार की प्रतिकृति भेंट की।
रवींद्रनाथ टैगोर ने लौटायी नाइटहुड की उपाधि
उस समय के अन्य सामंती परिवारों की तरह टैगोर परिवार के भी ब्रिटिश शासकों से सम्बन्ध अच्छे थे। ख़ुद रवींद्रनाथ के सम्बन्ध ब्रिटिश हुक्मरानों और रचनाकारों से अच्छे थे। नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ को 1915 में ब्रिटिश शासन ने "साहित्य की सेवा" के लिए नाइटहुड की उपाधि दी। नाइटहुड को ब्रिटिश साम्राज्य के सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार के रूप में देखा जाता था और इसे पाने वाले अपने नाम के आगे 'सर' लिखते हैं। रवींद्रनाथ टैगोर ने ब्रिटिश साम्राज्य के सर्वोच्च पुरस्कार को ले तो लिया लेकिन महज चार साल बाद उन्होंने क्षोभग्रस्त मन से इसे वापस कर दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर ने 1919 में हुए जलियाँवाला बाग़ नरसंहार के विरोध में नाइटहुड की उपाधि वापस कर दी थी। रवींद्रनाथ टैगोर ने अवार्ड वापस करते समय उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड चेम्सवर्थ को लिखा था, "मैं अपने देश के लिए कम से कम इतना तो कर ही सकता हूँ कि इस आतंक के प्रति उपजे अपने देशवासियों के मूक क्रोध को आवाज दूँ और उसके परिणाम भोगूँ।"
13 अप्रैल 1919 वैशाखी का दिन था। अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ में हजारों भारतीय सत्य पाल और सैफुद्दीन किचुली की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए इकट्ठा थे। इस निहत्थे जनमानस पर ब्रिटिश इंडियन आर्मी के कर्नल रेगिनाल्ड डायर ने गोलीबारी करवा दी। जलियाँवाला बाग़ से निकलने का एक ही रास्ता था जिस पर सेना के जवान बंदूकों के साथ खड़े थे। बग़ैर किसी चेतावनी के गोलीबारी करने के वजह से करीब एक हजार भारतीय मारे गये और 1500 से ज्यादा घायल हो गये थे। पूरे देश में जलियांवाला बाग़ नरसंहार के खिलाफ क्रोध की ज्वाला दहक रही थी। रवींद्रनाथ टैगोर के मन में भी इस घटना से गहरा विक्षोभ हुआ और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से मिला सम्मान विरोध स्वरूप लौटा दिया।
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