ब्लॉगः रूबिया अपहरण मामले की कानूनी परिणति बदले समय का प्रमाण
By अवधेश कुमार | Published: July 19, 2022 01:33 PM2022-07-19T13:33:34+5:302022-07-19T13:34:39+5:30
गृह मंत्री की कुर्सी पर बैठे बड़े नेता की बेटी का अपहरण भारत के इतिहास की असाधारण घटना थी। अंततः सरकार ने 13 दिसंबर को पांच आतंकवादियों को रिहा किया, जिसके बाद रूबिया को छोड़ा गया।
समय का चक्र घूमते हुए एक समय न्याय की परिधि तक अवश्य पहुंचता है। क्या किसी ने कल्पना की थी कि 32 वर्ष पहले कश्मीर में स्वर्गीय मुफ्ती मोहम्मद सईद की छोटी बेटी रूबिया सईद अपहरण का मामला फिर से खुलेगा और न्यायिक प्रक्रिया मुकाम पर पहुंचने की ओर अग्रसर होगी? पिछले 16 जुलाई को जम्मू के टाडा न्यायालय में रूबिया सईद ने यासीन मलिक समेत चारों आरोपियों की पहचान की। जम्मू-कश्मीर ही नहीं, पूरा देश मान चुका था कि रूबिया अपहरण का मामला आया-गया हो चुका है। लेकिन जैसी स्थिति पैदा हो चुकी है उसमें यासीन मलिक सहित शेष आरोपियों को सजा मिलना निश्चित है।
यासीन मलिक आतंक के वित्तपोषण मामले में राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहा है। यह दूसरा मामला होगा जिसमें यासीन को सजा मिलने की संभावना है। जिस दिन नरेंद्र मोदी सरकार ने अलगाववादी नेताओं तथा पूर्व आतंकवादियों से नेता बने लोगों के विरुद्ध गैरकानूनी गतिविधियां निवारक कानून के तहत मामला दर्ज किया, उसी दिन साफ हो गया था कि कश्मीर में 90 के दशक में हुए भयावह अन्याय के न्यायिक प्रतिकार का रास्ता बन चुका है। आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में लोगों की गिरफ्तारियां हुईं और सजा मिलनी शुरू हो चुकी है। इसी के तहत यासीन मलिक से जुड़े मामले को भी पुलिस व एनआईए ने खोल दिया।
इस मामले में यासीन मलिक के साथ उन्हीं के संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट यानी जेकेएलएफ के कमांडर मेहराजुद्दीन शेख, मोहम्मद उस्मान मीर और मंजूर अहमद सोफी भी सुनवाई के दौरान न्यायालय में मौजूद रहे। यासीन मलिक ने दिल्ली में होने के कारण वर्चुअली न्यायिक प्रक्रिया में भाग लिया किंतु उसने खुद जम्मू के न्यायालय में पेश होकर जिरह करने का आग्रह किया। न्यायालय ने यासीन के विरुद्ध प्रोडक्शन वारंट जारी कर दिया है। न्यायिक प्रक्रिया पर हम नजर रखेंगे। रूबिया सईद अपहरण तब सर्वाधिक चर्चित मामला था। केंद्रीय गृह मंत्री की बेटी के अपहरण की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पर ही कई हलकों में आरोप लगा था कि उन्होंने जेल में बंद आतंकवादियों को छुड़ाने के लिए अपनी बेटी के अपहरण का नाटक रचवाया था। श्रीनगर के सदर पुलिस थाने में 8 दिसंबर, 1989 को रूबिया सईद अपहरण का मामला दर्ज हुआ था। इसके अनुसार रूबिया ट्रांजिट वैन में श्रीनगर के ललदेद अस्पताल से नौगांव अपने घर जा रही थीं। तब वे एमबीबीएस के बाद अस्पताल में इंटर्नशिप कर रही थीं। जब वे चांदपुरा चौक के पास पहुंचीं तो तीन लोगों ने बंदूक के दम पर वैन को रोका और रूबिया का अपहरण कर लिया। बाद में उन्होंने अपने साथियों को जेल से छोड़ने की मांग की। अपहरण के मामले में थाने में यासीन मलिक, मेहराजुद्दीन शेख, मोहम्मद जमाल, अमीर मंजूर, अहमद सोफी के अलावा अली मोहम्मद अमीर, इकबाल अहमद, जावेद अहमद मीर, मोहम्मद रफी, वजाहत बशीर और शौकत अहमद बख्शी के नाम शामिल हैं।
गृह मंत्री की कुर्सी पर बैठे बड़े नेता की बेटी का अपहरण भारत के इतिहास की असाधारण घटना थी। अंततः सरकार ने 13 दिसंबर को पांच आतंकवादियों को रिहा किया, जिसके बाद रूबिया को छोड़ा गया।
रूबिया सईद अपहरण मामले का खुलना केवल एक अपहरण की न्यायिक प्रक्रिया भर नहीं है। यह जम्मू-कश्मीर और उसके संदर्भ में आए व्यापक बदलाव का प्रमाण है। रूबिया सईद अपहरण कांड जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उससे आतंकवादियों का हौसला बढ़ा और उन्होंने जो कहर बरपाया, वह इतिहास का भयानक अध्याय बन चुका है।
इसका भी विश्लेषण करना पड़ेगा कि आखिर ऐसी स्थिति कैसे पैदा हो गई कि रूबिया सामान्य तरीके से न्यायालय पहुंचीं और उन्होंने गवाही दी? वह आगे जिरह में भी उपस्थित होने को तैयार हैं। इसका अर्थ है कि अब आतंकवादियों का भय कम हुआ है तथा बदली हुई आबोहवा का आभास वहां के राजनीतिक परिवारों को हो चुका है।