भारत से फिलीपींस खरीदेगा ब्रह्मोस मिसाइल, अगले साल तक दोनों देश के बीच डील हो सकता है फाइनल
By विनीत कुमार | Published: December 9, 2019 08:07 AM2019-12-09T08:07:04+5:302019-12-09T08:07:25+5:30
भारत इस बीच ब्रह्मोस को इंडोनेशिया को भी बेचने को लेकर बातचीत कर रहा है। यही नहीं, वियतनाम से भी इसे बेचने को लेकर बातचीत हो चुकी है।
भारत से फिलीपींस ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल खरीदेगा। इस संबंध में नई दिल्ली और मनीला के बीच कीमत को लेकर बातचीत हालांकि अभी जारी है और इस चर्चा की जानकारी रखने वाले मानते हैं कि साल 2020 में ये डील अपने अंजाम तक पहुंच जाएगा। दरअसल, ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल को संयुक्त रूप से भारत और रूस की ओर से विकसित किया गया है।
भारत पिछले कुछ वर्षों से थाईलैंड समेत इंडोनेशिया और वियतनाम से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल के जमीन और समुद्र आधारित वर्जन बेचने के लिए बातचीत करता रहा है। जानकारों के अनुसार फिलीपींस आर्मी ने ब्रह्मोस पर ध्यान दिया और कई परीक्षण के बाद अब सबकुछ कीमत और डील को लेकर वित्तीय लेनदेन पर टिक गया है।
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इस डील से परिचित एक अधिकारी ने नाम नहीं दिए जाने की शर्त पर बताया, 'जहां तक फिलीपींस सेना की बात है तो विचार के आधार पर ब्रह्मोस मिसाइल को लेकर डील लगभग तय है। अब सबकुछ कीमत को लेकर हो रही बातचीत पर निर्भर है और हम उम्मीद करते हैं कि अगले साल तक ये फाइनल हो जाएगा।'
रिपोर्ट के अनुसार भारत ने फिलीपींस के सामने 100 मिलियन डॉलर तक के प्रस्ताव रखे हैं। मनीला हालांकि अपने अगले रक्षा बजट तक में इसे खरीदने की योजना बना रहे हैं। एक जानकार के अनुसार फिलीपींस में कई विकल्पों को देखा जा रहा है। इसमें उसके सरकारी फंड, कर्ज या फिर खरीद को लेकर किसी विशेष शर्त आदि की कोशिश जारी है। कीमत इस बात पर भी निर्भर होगी कि कितने मिसाइल खरीदे जाएंगे।
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2017 के फिलीपींस दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच डिफेंस इंडस्ट्री और सैन्य-संचालन को लेकर एक एमओयू पर भी हस्ताक्षर हुए थे। इसके तहत दोनों देशों के बीच सहयोग को और मजबूती देने सहित डिफेंस हार्डवेयर के विकास, उत्पादन और खरीद आदि को लेकर बातें हुईं।
भारत इस बीच ब्रह्मोस को इंडोनेशिया को भी बेचने को लेकर बातचीत कर रहा है। यही नहीं, वियतनाम से भी इसे बेचने को लेकर बातचीत हो चुकी है। ब्रह्मोस को भारत और रूस के संयुक्त सहयोग से 1998 में विकसित किया गया था। भारतीय नौसेना ने इसे अपने वॉरशिप पर 2005 में स्थापित किया और सेना ने भी कई परीक्षण के बाद इसे 2007 में अपने बेड़े में शामिल किया।