जनसंघ के अध्यक्ष और बीजेपी के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज पुण्यतिथि है। 'एकात्म मानववाद' जैसे सिद्धांत के साथ चलने वाले पंडित दीनदयाल अपनी निष्ठा और ईमानदारी के लिए भी जाने जाते थे। उनकी मान्यता थी कि हिंदू कोई धर्म या संप्रदाय नहीं बल्कि भारत की संस्कृति है। उनकी 50वीं पुण्यतिथि पर ट्विटर पर हिंदी में हैशटैग 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय' ट्रेंड हो रहा है। इस हैशटैग के साथ अब तक सात हजार से अधिक लोगों ने ट्वीट किया है। हर कोई उन्हें अपने तरीके से श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह लिखते हैं- 'पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का सम्पूर्ण जीवन देश की संस्कृति और देश के हित को समर्पित रहा। पंडित जी विकास की पंक्ति में अंतिम खड़े व्यक्ति को पंक्ति में खड़े पहले व्यक्ति के समकक्ष लाना चाहते थे।'
टेक्सटाइल मिनिस्टिर स्मृति ईरानी भी पंडित दीनदयाल के आदर्शों को प्रेरणा बताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दिया है।
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पंडित दीनदयाल को श्रद्धांजलि देते हुए लिखती हैं- 'भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म मानववाद जैसी प्रगतिशील विचारधारा देने वाले महान राष्ट्रवादी, कर्मयोगी एवं ओजस्वी विचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।'
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने भी एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की है।
उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ ने उन्हें प्रेरणास्रोत बताते हुए श्रद्धांजलि दी है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जीवन परिचयः-
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 के मथुरा के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। उनके पिता भगवती प्रसाद एक ज्योतिषी थे। मात्र तीन साल की उम्र में उनकी मां की मौत हो गई थी और 8 साल के उम्र में पिता की। पंडित दीनदयाल ने राजस्थान के सीकर से पढ़ाई की थी। पढ़ाई में तेज होने की वजह से सीकर के महाराज ने उन्हें स्कॉलरशिप दिया था। 12 वीं डिस्टिंक्शन के साथ पास होने के बाद पंडित दीनदयाल आगे की पढ़ाई के लिए कानपुर चल गए। वहां के सनातन धर्म कॉलेज से उन्होंने पढ़ाई की। एमए करने के लिए उन्होंने आगर का रूख किया लेकिन एमए की पढ़ाई वो पूरी नहीं कर पाए।
अपने दोस्त बलवंत महाशब्दे के कहने पर वो 1937 में आरएसएस से जुड़े और वहां उनकी मुलाकात नानाजी देशमुख से हुई। यहीं से उनके अंदर राष्ट्र की सेवा की भावना जगी। दीनदयाल ने अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए लखनऊ में राष्ट्र धर्म प्रकाशन नामक प्रकाशन संस्थान की स्थापना की और एक मासिक पत्रिका राष्ट्र धर्म शुरू की थी।
21 सितंबर 1951 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ मिलकर उन्होंने उत्तर प्रदेश में एक राजनीतिक सम्मेलन आयोजित करके 'भारतीय जनसंघ' की नींव डाली। इस बीच सरकारी नौकरी से लेकर राजनीति हर जगह वो अपनी कुशलता की वजह से पहचान बनाते गए। साल 1968 में उन्हें जनसंघ का अध्यक्ष बनाया गया। अध्यक्ष बनने के कुछ समय बाद 11 फरवरी 1968 को उनकी मौत हो गई।