65 फीसदी मिड डे मिल रसोइयों को दो हजार रुपये से कम मिलते हैं, दक्षिणी राज्यों में स्थिति अच्छी: रिपोर्ट

By विशाल कुमार | Published: December 21, 2021 10:57 AM2021-12-21T10:57:27+5:302021-12-21T11:01:24+5:30

संसदीय समितियों द्वारा उनके वेतन में वृद्धि की सिफारिश के बाद भी उनके वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में, इन श्रमिकों का मासिक भुगतान 2009 से सिर्फ 1,000 रुपये है।

over-65-percent mid-day-meal-cooks-get-less-than-rs-2000-report | 65 फीसदी मिड डे मिल रसोइयों को दो हजार रुपये से कम मिलते हैं, दक्षिणी राज्यों में स्थिति अच्छी: रिपोर्ट

65 फीसदी मिड डे मिल रसोइयों को दो हजार रुपये से कम मिलते हैं, दक्षिणी राज्यों में स्थिति अच्छी: रिपोर्ट

Highlightsलगभग 65 फीसदी मिड डे मिल रसोइयों को 2,000 रुपये से कम का भुगतान किया जाता है।देश में कुल 24.95 लाख रसोइयां और सहायक कार्य करते हैं।आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में 2009 से सिर्फ 1,000 रुपये दिया जाता है।

नई दिल्ली: मिड-डे-मिल योजना के तहत रसोइयां और सहायक के रूप में कार्यरत भारत के 24.95 लाख  में से लगभग 65 फीसदी को 2,000 रुपये प्रति माह से कम का भुगतान किया जाता है। आधिकारिक रिकॉर्ड से यह जानकारी सामने आई है।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, संसदीय समितियों द्वारा उनके वेतन में वृद्धि की सिफारिश के बाद भी उनके वेतन में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई। आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में, इन श्रमिकों का मासिक भुगतान 2009 से सिर्फ 1,000 रुपये है।

करीब 30 फीसदी मिड डे मिल कार्यबल वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने तीन सालों में वेतन में मामूली बढ़ोतरी की लेकिन अभी भी उनका वेतन 2000 रुपये से कम है।

दूसरी ओर मासिक भुगतान के मामले में पुदुचेरी, तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिणी राज्य मासिक आधार पर क्रमशः 21,000 रुपये, 12,000 रुपये और 9,000 रुपये से अधिक का भुगतान कर रहे हैं।

एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि रसोइयों और सहायकों को मानद कार्यकर्ताओं के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो सामाजिक सेवाओं को प्रदान करने के लिए आगे आए हैं। उन्हें श्रमिक नहीं माना जाता है और परिणामस्वरूप, न्यूनतम मजदूरी का कानून उन पर लागू नहीं होता है।

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि शिक्षा मंत्रालय ने 2018 और पिछले साल वेतन में 2,000 रुपये की बढ़ोतरी की मांग की थी, लेकिन प्रस्तावों को वित्त मंत्रालय ने खारिज कर दिया। मंत्रालय ने राज्यों को उनकी मांगों के आधार पर वेतन बढ़ाने की जिम्मेदारी दी।

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