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भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा- हमारी दोस्ती अफगानिस्तान के साथ हमारे इतिहास का प्रमाण

By रामदीप मिश्रा | Updated: September 12, 2020 16:26 IST

विदेश मंत्री ने कहा कि माना जाता है कि शांति प्रक्रिया अफगान के नेतृत्व वाली, स्वामित्व वाली व अफगान-नियंत्रित होनी चाहिए, इसे अफगानिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए।

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ठळक मुद्देभारतीय विदेश मंत्री डॉ.एस जयशंकर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दोहा में अफगान शांति वार्ता सम्मेलन को संबोधित किया है।उन्होंने कहा कि हमा लोगों की दोस्ती अफगानिस्तान के साथ हमारे इतिहास का प्रमाण है।

नई दिल्लीः भारतीय विदेश मंत्री डॉ.एस जयशंकर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए दोहा में अफगान शांति वार्ता सम्मेलन को संबोधित किया है। इस दौरान उन्होंने कहा कि हमा लोगों की दोस्ती अफगानिस्तान के साथ हमारे इतिहास का प्रमाण है। हमारी 400 से अधिक विकास परियोजनाओं से अफगानिस्तान का कोई भी हिस्सा अछूता नहीं है। हमें विश्वास है कि यह संबंध हमेशा बढ़ता रहेगा।

विदेश मंत्री ने कहा कि माना जाता है कि शांति प्रक्रिया अफगान के नेतृत्व वाली, स्वामित्व वाली व अफगान-नियंत्रित होनी चाहिए, इसे अफगानिस्तान की राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए। हमें उम्मीद है कि अफगानिस्तान की मिट्टी का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिए कभी नहीं किया जाएगा।

अफगानिस्तान की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि अफगान शांति प्रक्रिया में अफगानिस्तान की सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान किया जाना चाहिए। दोहा में आयोजित अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया में डिजिटल माध्यम से हिस्सा लेते हुए जयशंकर ने कहा कि शांति प्रक्रिया को मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अल्पसंख्यकों, महिलाओं और खतरे की आशंका वाले वर्गों के हित सुनिश्चित हों एवं देशभर में हिंसा का प्रभावी समाधान निकाला जाए।

जयशंकर ने एक के बाद एक किए गए ट्वीट के जरिये अपने संबोधन के बारे में जानकारी दी। उन्होंने लम्बे समय से जारी भारत के उस रूख की पुन: पुष्टि की कि शांति प्रक्रिया अफगानिस्तान के स्वामित्व वाला, अफगानिस्तान नीत और अफगानिस्तान नियंत्रित होनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लोगों के बीच मित्रता अफगानिस्तान के साथ हमारे इतिहास की गवाही देती है । हमारी 400 से अधिक परियोजनाओं के जरिये अफगानिस्तान का कोई हिस्सा अछूता नहीं है। हमें विश्वास है कि हमारे सभ्यतागत संबंध आगे बढ़ना जारी रहेंगे।’’

राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तालिबान के 400 कैदियों को छोड़ने पर सहमति व्यक्त की थी

गौरतलब है कि पिछले महीने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने तालिबान के 400 कैदियों को छोड़ने पर सहमति व्यक्त की थी जिससे युद्धग्रस्त देश में पिछले दो दशकों से जारी संघर्ष को समाप्त करने के लिये बहुप्रतिक्षित शांति प्रक्रिया शुरू होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में भारत एक महत्वपूर्ण पक्षकार है।

भारत ने अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण गतिविधियों में करीब 2 अरब डालर का निवेश किया है। फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर होने के बाद भारत उभरती राजनीति स्थिति पर करीबी नजर बनाये हुए हैं । इस समझौते के तहत अमेरिका, अफगानिस्तान से अपने सैनिक हटा लेगा। वर्ष 2001 के बाद से अफगानिस्तान में अमेरिका के करीब 2400 सैनिक मारे गए हैं। भारत का कहना है कि इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस प्रक्रिया में कहीं कोई ऐसा अप्रशासित स्थान रिक्त नहीं रह जाये जिसे आतंकवादी और उनके छद्म सहयोगी भर दें ।

इधर, अभी हाल ही में  एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच मॉस्को में गुरुवार रात हुई बातचीत में भारत ने पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पास चीन द्वारा बड़ी संख्या में बलों और सैन्य उपकरणों की तैनाती पर चिंता जताई थी। 

विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच मॉस्को में बातचीत के बाद पांच-सूत्री संयुक्त बयान जारी किया गया था जो सीमा पर गतिरोध के समाधान के लिए मार्गदर्शन करेगा। संयुक्त बयान में कहा गया था कि भारत, चीन ने सहमति जताई कि दोनों पक्षों को मतभेदों को विवादों में नहीं बदलने देने की नेताओं के बीच बनी सर्वसम्मति से मार्गदर्शन लेना चाहिए। 

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पूर्वी लद्दाख में चीन की ‘पीपल्स लिबरेशन आर्मी’ (पीएलए) द्वारा बलों की तैनाती का मामला उठाया था। इस दौरान दोनों देशों के विदेश मंत्री पांच सूत्री समझौते पर पहुंचे, जो पूर्वी लद्दाख में सीमा पर गतिरोध सुलझाने में दोनों देशों का मार्गदर्शन करेगा। मॉस्को में गुरुवार को हुई बैठक ढाई घंटे चली थी। जयशंकर और वांग शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए रूस की राजधानी में थे। 

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