पुलिस में केवल 7% महिलाएं कार्यरत, जेलों में क्षमता के मुकाबले 114% कैदीः रिपोर्ट
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 7, 2019 06:18 PM2019-11-07T18:18:14+5:302019-11-07T18:18:14+5:30
रिपोर्ट को जारी करते हुए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एमबी लोकुर ने कहा कि इससे रेखांकित होता है कि न्याय प्रदान करने की प्रणाली में बहुत गंभीर खामी है।
टाटा न्यास की रिपोर्ट के मुताबिक लोगों को न्याय देने के मामले में महाराष्ट्र शीर्ष पर है जबकि केरल, तमिलनाडु, पंजाब और हरियाण क्रमश: दूसरे, तीसरे, चौथे और पांचवे स्थान पर हैं।
रिपोर्ट को जारी करते हुए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एमबी लोकुर ने कहा कि इससे रेखांकित होता है कि न्याय प्रदान करने की प्रणाली में बहुत गंभीर खामी है।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, ‘‘ यह पथप्रदर्शक अध्ययन है जिसके नतीजों से साबित होता है कि निश्चित तौर पर हमारे न्याय प्रदान करने की प्रणाली में बहुत गंभीर खामी है। हमारी न्याय प्रणाली की चिंताओं को मुख्यधारा में लाने का यह सर्वोत्तम प्रयास है जो समाज के हर हिस्से, शासन और अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि न्यायपालिका और सरकार इन प्रासंगिक नतीजों पर संज्ञान लेंगी और राज्य भी पुलिस प्रबंधन, कारागार, फॉरेंसिक, न्याय प्रदान करने की प्रणाली और कानूनी सहायता के अंतर को पाटने के लिए तुरंत कदम उठाएंगे एवं रिक्तियों को भरेंगे।’’
यह रैंकिंग टाटा न्याय की पहल है जिसे ‘सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन कॉज, राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल, दक्ष, टीआईएसएस, कानूनी नीति के लिए प्रयास एवं विधि केंद्र के सहयोग से तैयार किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में न्यायाधीशों के कुल 18,200 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 23 फीसदी रिक्त हैं।
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘ न्याय के इन स्तंभों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। पुलिस में केवल सात फीसदी महिलाएं कार्यरत हैं। जेलों में क्षमता के मुकाबले 114 फीसदी कैदी हैं। इनमें से 68 प्रतिशत विचाराधीन हैं जिनके मामलों की जांच की जा रही है या सुनवाई चल रही है।
बजट के मामले में अधिकतर राज्य केंद्र की ओर से आवंटित बजट का इस्तेमाल नहीं कर पाते, पुलिस, कारावास और न्यायपालिका का खर्च बढ़ने के बावजूद उस गति से राज्य का खर्च नहीं बढ़ा है।’’ इसमें कहा गया, ‘‘कुछ स्तंभ कम बजट की वजह से प्रभावित है।
भारत में मुफ्त कानूनी सहायता पर प्रति व्यक्ति खर्च मात्र 75 पैसे प्रति वर्ष है जबकि 80 फीसदी आबादी मुफ्त कानूनी सहायता पाने की अर्हता रखती है। रिपोर्ट में राज्य की ओर से न्याय देने की क्षमता का आकलन करने के लिए चार स्तभों के संकेतकों का इस्तेमाल किया गया है। ये हैं अवसंरचना, मानव संसाधन, विविधता (लिंग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग), बजट, काम का दबाव और गत पांच साल की प्रवृत्ति।
इन 6 राज्यों में कोर्ट में फाइल सभी मामलों का निपटारा हुआ
2016 और 2017 में केवल 6 राज्य ही हैं जिन्होंने कोर्ट में दर्ज सभी मामलों का निपटारा किया है। ये राज्य हैं - गुजरात, दमन-दीव, दादर-नगर हवेली, त्रिपुरा, ओडिशा, लक्षद्वीप, तमिलनाडु और मणिपुर. अगस्त 2018 में बिहार, यूपी, प.बंगाल, ओडिशा, गुजरात, मेघालय और अंडमान-निकोबार में हर चार मामलों में से एक केस पांच सालों से लटका पड़ा है।