IAS अधिकारी के फोन टैपिंग मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनाया कड़ा रुख, कहा- किसी के लिए भी निजता नहीं बची

By भाषा | Updated: November 4, 2019 16:03 IST2019-11-04T16:03:22+5:302019-11-04T16:03:39+5:30

आईपीएस अधिकारी के फोन टैपिंग मामलाः न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार को सारे मामले में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया ओर कहा कि इसमें यह भी स्पष्ट किया जाये कि फोन की टैपिंग का आदेश किसने दिया और किन कारणों से दिया?

No privacy left for anybody says Supreme Court, takes serious note of Chhattisgarh government tapping IPS officer's phone | IAS अधिकारी के फोन टैपिंग मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनाया कड़ा रुख, कहा- किसी के लिए भी निजता नहीं बची

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Highlightsउच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता और उनके परिवार के सदस्यों के फोन टैप कराने की छत्तीसगढ़ सरकार की कार्रवाई पर सोमवार को कड़ा रुख अपनाया।शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार से जानना चाहा कि क्या इस तरह से किसी भी व्यक्ति के निजता के अधिकार का हनन किया जा सकता है।

उच्चतम न्यायालय ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता और उनके परिवार के सदस्यों के फोन टैप कराने की छत्तीसगढ़ सरकार की कार्रवाई पर सोमवार को कड़ा रुख अपनाया और कहा, ‘‘किसी के लिये भी निजता नहीं बची है।’’ शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ सरकार से जानना चाहा कि क्या इस तरह से किसी भी व्यक्ति के निजता के अधिकार का हनन किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की पीठ ने राज्य सरकार को सारे मामले में विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया ओर कहा कि इसमें यह भी स्पष्ट किया जाये कि फोन की टैपिंग का आदेश किसने दिया और किन कारणों से दिया?

पीठ ने सख्त लहजे में कहा, ‘‘इस तरह से करने की क्या आवश्यकता है? किसी के लिये कोई निजता बची ही नहीं है। इस देश में आखिर क्या हो रहा है? क्या किसी व्यक्ति की निजता का इस तरह हनन किया जा सकता है? किसने यह आदेश दिया? विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जाये।’’

पीठ ने शीर्ष अदालत में आईपीएस अधिकारी का प्रतिनिधित्व कर रहे अधिवक्ता के खिलाफ अलग से प्राथमिकी दायर किये जाने पर भी नाराजगी व्यक्त की और अधिवक्ता के खिलाफ जांच पर रोक लगा दी। पीठ ने कहा कि इस मामले में अगले आदेश तक कोई दण्डात्मक कदम नहीं उठाया जायेगा।

पीठ ने आईपीएस अधिकारी मुकेश गुप्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी से कहा कि इस मामले में छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का नाम घसीट कर इसे राजनीतिक रंग नहीं दिया जाये। न्यायालय ने निर्देश दिया कि याचिका में पक्षकारों की सूची से मुख्यमंत्री का नाम हटा दिया जाये।

इस वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने अपनी याचिका में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को भी एक प्रतिवादी बनाया है। गुप्ता 2015 में नागरिक आपूर्ति घोटाले की जांच के दौरान गैरकानूनी तरीके से फोन टैपिंग और भारतीय टेलीग्राफ कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने के आरोपी हैं।

शीर्ष अदालत ने 25 अक्टूबर को राज्य सरकार को गुप्ता और उनके परिवार के टेलीफोन सुनने या टैप करने से रोक दिया था और इस आईपीएस अधिकारी को उसके खिलाफ दर्ज मामलों में गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया था।

न्यायालय ने राज्य सरकार से यह भी कहा था कि गुप्ता के खिलाफ दर्ज दो प्राथमिकी में आगे जांच पर रोक लगाने संबंधी अंतरिम आदेश अगले आदेश तक जारी रहेगा। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इन प्राथमिकी को रद्द करने से इंकार कर दिया था। इनमें से एक मामला एक ट्रस्ट द्वारा एफसीआरए के उल्लंघन के बारे में हैं। यह ट्रस्ट आंख के एक अस्पताल का संचालन करता है जिसकी स्थापना गुप्ता के पिता ने की थी।

पुलिस के आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ द्वारा 2015 में नागरिक आपूर्ति घोटाले के दौरान गैरकानूनी तरीके से फोन टैप करने और आपराधिक साजिश रचने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज किये जाने के बाद इस साल नौ फरवरी को विशेष पुलिस महानिदेशक मुकेश गुप्ता सहित दो आईपीएस अधिकारियों को निलंबित किया गया था।

इस कथित घोटाले का फरवरी, 2015 में उस समय भण्डाफोड़ हुआ था जब भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ ने नागरिक आपूर्ति निगम के 26 ठिकानों पर एक साथ छापे मारे थे। भूपेश बघेल सरकार ने इस मामले की जांच के लिये आठ जनवरी को 12 सदस्यीय विशेष जांच दल का गठन किया था। 

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