नयी दिल्ली, आठ सितंबर उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के अध्यक्ष को अदालत को “बदनाम करने और धमकाने” के लिए बिना शर्त माफी मांगने के लिए तीन दिन का समय दिया, लेकिन इसके साथ ही उनसे कहा कि उन्होंने खुद को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण से वंचित कर दिया है और उनके खिलाफ कुछ दंडात्मक कार्रवाई करने का समय आ गया है।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ एनजीओ सुराज इंडिया ट्रस्ट के अध्यक्ष राजीव दहिया द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में शीर्ष अदालत के 2017 के उस फैसले को रद्द करने की मांग की गई थी जिसके तहत शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र का बार-बार दुरुपयोग करते हुए कुछ वर्षों में बिना किसी सफलता के 64 जनहित याचिकाएं दायर करने पर उसके खिलाफ 25 लाख रुपये की लागत वसूलने का आदेश दिया गया था।
शीर्ष अदालत ने दहिया को अवमानना नोटिस जारी किया था कि क्यों न उनके खिलाफ कार्यवाही की जाए और अदालत को बदनाम करने के उनके प्रयास के लिए उन्हें सजा दी जाए।
मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए न्यायालय ने कहा, “प्रतिवादी-निर्णय देनदार और अवमानना कार्यवाही में अवमानना करने वाले जमानती वारंट के अनुसरण में पेश हुए हैं और हमने उन्हें विस्तार से सुना है। हमनें सुविज्ञ अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल और सरकारी वकील को भी सुना है।”
पीठ ने कहा, “अंत में, पूर्व कार्यवाही में सामान्य प्रथा के अनुसार, याचिकाकर्ता ने कहा कि वह बिना शर्त माफी मांगना चाहता है कि उसने जो कुछ कहा है उसे वापस लेने का अनुरोध कर रहा है। हमने उनसे कहा है कि उन्हें तीन दिनों के भीतर अपनी मर्जी से ऐसा करने की स्वतंत्रता है और हम अपना आदेश पारित करते समय इस पर विचार करेंगे।”
सुनवाई की शुरुआत में, व्यक्तिगत रूप से पेश हुए दैया ने स्थगन की मांग की और कहा कि वह अपनी स्वास्थ्य स्थिति के कारण पीठ के समक्ष पेश होने में असमर्थ हैं।
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