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केरल में मुस्लिम महिलाओं ने दिया पैतृक विरासत से जुड़े शरिया कानून को चुनौती, एक को मिली जीत, दूसरे की याचिका सुप्रीमकोर्ट ने की स्वीकार

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: March 19, 2023 16:54 IST

केरल के अलापुज्झा की स्थानीय अदालत ने एक मुस्लिम व्यक्ति को अपने तीन वर्षीय पोते को गुजाराभत्ता देने का आदेश दिया है। जबकि इस्लामी शरिया कानून के अनुसार किसी दिवंगत व्यक्ति की पत्नी और बच्चे का मृतक की पैतृक जायदाद में हिस्सा नहीं होता।

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ठळक मुद्देकेरल के अलापुज्झा की स्थानीय अदालत ने इस्लामी शरिया कानून के खिलाफ फैसला दिया हैअदालत ने एक मुस्लिम व्यक्ति को आदेश दिया है कि वो तीन वर्षीय पोते को गुजाराभत्ता देंशरिया के अनुसार किसी दिवंगत व्यक्ति की पत्नी और बच्चे का पैतृक जायदाद में हिस्सा नहीं होता है

तिरुवनंतपुरम: केरल के अलापुज्झा की स्थानीय अदालत ने एक मुस्लिम व्यक्ति को अपने तीन वर्षीय पोते को गुजाराभत्ता देने का आदेश दिया है। बच्चे के पिता का वर्ष 2020 में देहांत हो गया था। मेवेलिक्कारा परिवार अदालत के जज हफीज मोहम्मद ने प्रतिवादी कुंजुमन को 13 मार्च को दिए फैसले में आदेश दिया कि वो अपने तीन वर्षीय मुजीब को गुजाराभत्ता दें।

मलयालम मनोरमा डॉट काम के अनुसार इस फैसले को लेकर स्थानीय स्तर पर काफी चर्चा हो रही है क्योंकि इस्लामी शरिया कानून के अनुसार किसी दिवंगत व्यक्ति की पत्नी और बच्चे का मृतक की पैतृक जायदाद में हिस्सा नहीं होता। मुजीब की विधवा हैरुन्निसा ने अदालत में गुजाराभत्ता दिलाए जाने के लिए याचिका दायर की थी जिसपर सुनवाई करते हुए जज ने उनके हक में फैसला दिया।

स्थानीय अदालत के अनुसार तीन वर्षीय मुजीब के दादा हर महीने 5000 रुपये गुजाराभत्ता देंगे जबतक कि मुजीब 18 साल का नहीं हो जाता। हालाँकि इस मामले में अदालत ने हैरुन्निसा के लिए कोई विशेष राहत नहीं प्रदान की। मेहरुन्निसा ने अपने ससुर से दहेज में दिये गये गहने और पैसे वापस करने की भी माँग की है।

मलयालम मनोरमा के अनुसार केरल के ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी मुस्लिम महिला को मिलने वाली विरासत से जुड़े मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट के जज कृष्णा मुरारी और संजय कौल की पीठ ने 68 वर्षी बुशरा अली की याचिका पर स्वीकार कर ली है। बुशरा की माँग है कि उन्हें पैतृक जायदाद में बराबर हिस्सा दिया जाना चाहिए। बुशरा के 11 भाई-बहन हैं। बुशरा के माता-पिता डॉक्टर सलीम और सुहरा ने अपनी जायदाद में बेटों से आधा हिस्सा बेटियों को दिया। बुशरा इसके खिलाफ स्थानीय अदालत में गयीं तो कोर्ट ने इसे इस्लामी विरासत कानून के अनुकूल फैसला बताया।

स्थानीय अदालत के फैसले के बाद बुशरा को उनके माता-पिता की जायदाद का 4.82 प्रतिशत मिलेगा। जायदाद को बराबर बाँटने पर बुशरा को 10 प्रतिशत जायदाद मिलेगी।  सुप्रीम कोर्ट ने बुशरा की याचिका स्वीकार करते हुए प्रतिवादियों को इस मसले पर अपना पक्ष रखने के लिए चार हफ्ते का समय दिया है।

स्थानीय मीडिया के अनुसार सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुशरा की याचिका स्वीकार करने से यह संकेत मिला है कि अदालत इस मसले को बराबरी के सिद्धान्त के तहत ले रही है।

टॅग्स :केरलइस्लाम
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