शरद पावर बोले-मैं जनता को ही भगवान मानता हूं...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: December 12, 2020 08:21 PM2020-12-12T20:21:17+5:302020-12-12T20:35:02+5:30

लोकमत समूह के एडिटोरियल बोर्ड के चेयरमैन विजय दर्डा का राकांपा दिग्गज शरद पवार से विशेष साक्षात्कार. कई मुद्दों पर खुलकर बातचीत की.

mumbai ncp chief Sharad Pawar At 80 I consider people as God anti-BJP front | शरद पावर बोले-मैं जनता को ही भगवान मानता हूं...

महाराष्ट्र में कृषि उत्पन्न बाजार समिति और अन्य राज्यों की खेती में फर्क है. (file photo)

Highlightsमैं 80 वर्ष का हो गया हूं. मगर मैं कोई बूढ़ा नहीं हुआ हूं.अन्नदाता की समस्याओं पर राज्यकर्ताओं को गंभीरता से ध्यान देना होगा.

सत्ता में रहे या सत्ता से बाहर.. शरदचंद्र पवार का नाम देश के राजनीतिक क्षितिज पर हमेशा चमकता रहा है. उनकी दूरदृष्टि के कारण देश के कृषि क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं. देश की राजनीति में प्रत्येक राजनीतिक नेता से घनिष्ठ एवं आत्मीय संबंध रखने वाले शरद पवार एकमेव नेता हैं. महाराष्ट्र की राजनीति के इतिहास की हर किताब शरद पवार के उल्लेख के बिना पूरी हो नहीं सकती. पवार के 80वें जन्म दिवस पर लोकमत समूह के एडिटोरियल बोर्ड के चेयरमैन विजय दर्डा द्वारा उनसे लिए गए विशेष साक्षात्कार के अंश...

विजय दर्डा- सर्वप्रथम मैं हमारे देश के लोकप्रिय नेता तथा हम महाराष्ट्रवासियों के भूषण श्री शरदचंद्रजी पवार को उनके 80वें जन्मदिन पर हार्दिक बधाई देता हूं. आपने मुझे संवाद करने का जो अवसर प्रदान किया, उसके लिए मैं तहेदिल से आभारी हूं.

शरद पवार- आपकी भावनाओं से मुझे अपार आनंद हुआ. मगर कोई कारण न होते हुए भी आप मुझे यह कहकर बुढ़ापे की याद दिला रहे हैं कि मैं 80 वर्ष का हो गया हूं. मगर मैं कोई बूढ़ा नहीं हुआ हूं.

विजय दर्डा- आप हमेशा कहते हैं कि राजनीति से संन्यास ले रहे हैं और अब चुनाव नहीं लड़ेंगे.

शरद पवार- यह सही है. 

विजय दर्डा- परंतु पवार साहब आपकी जो मानसिक सक्रियता है, वह आपको चैन से बैठने नहीं देती. आपका व्यक्तित्व ही इस प्रकार का है कि आप राष्ट्रीय सवालों में रमे रहते हैं और सतत जागरूक रहते हैं. जब मैं यह सोचता हूं कि आपके जैसे व्यक्तित्व की तुलना किससे की जाए, तो मुझे कोई भी आपका प्रतिद्वंद्वी नजर नहीं आता. यही बात अगर मैं हिंदी में बोलना चाहूं तो कहूंगा कि ‘हमें आप पर नाज है. इस राज्य को आप पर नाज है’.

ऐसे अनेक लोग होंगे जिनसे आपके राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं, मगर व्यक्तिगत जीवन में वे आप से प्रेम करते हैं और आप भी उन्हें स्नेह करते हैं. मेरा पहला सवाल यह है कि आपकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा का क्या हुआ? राष्ट्रीय मसलों पर आपने बोलना कम कर दिया है क्या?किसानों के मसले पर आपकी पार्टी ने अलग रुख अपनाया था. लगता है कि यह जटिल मसला आपने नई पीढ़ी के हवाले कर दिया है. हम क्या समझें?

शरद पवार- दो बातें हैं. अब जब आपने उम्र का जिक्र कर ही दिया है, तब मुझे लगता है कि उम्र को देखते हुए मेरी जिम्मेदारी अब नई पीढ़ी तैयार करने की है. जब हम नई पीढ़ी तैयार करने की बात करते हैं तो हमें उन्हें आजादी भी देनी चाहिए. हमें उनके हर काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. जरूरी नहीं कि नई पीढ़ी की हर बात हमें पसंद आए.

मगर हमें व्यक्तिगत तौर पर नई पीढ़ी को अपनी असहमति से अवगत करा देना चाहिए. मैंने नीतिगत तौर पर यह तय किया है कि सार्वजनिक जीवन में नई पीढ़ी की उज्ज्वल छवि बनी रहनी चाहिए. ऐसा नहीं है कि संसद में या बाकी के वैचारिक मंचों पर या बैठकों में मैं अपने विचार रखता नहीं. मगर मैं बड़े पैमाने पर पहल विशिष्ट अवसरों पर ही करता हूं.

आपने किसानों की समस्याओं पर बात कही. यह प्रश्न पूरे देश में चर्चा का विषय है. देश के बाहर भी उसकी चर्चा हो रही है. यह सच है कि देश में किसानों की स्थिति को लेकर असंतोष है. इस मसले पर जिनके हाथ में देश की सत्ता है, उन्हें नाराज किसानों के प्रतिनिधियों से सुसंवाद साधना चाहिए. वे ऐसा नहीं करते हैं.

इसीलिए टकराव की स्थिति पैदा हुई है. मेरा यही मत है कि उनमें से उनके कुछ मुद्दे जायज हैं, कुछ मुद्दों पर उन्हें समझाना पड़ेगा. इस देश के अन्नदाता की समस्याओं पर राज्यकर्ताओं को गंभीरता से ध्यान देना होगा. किसानों के संदर्भ में केंद्र सरकार ने तीन कानून बनाए हैं. लेकिन कृषि उत्पन्न बाजार समिति का महत्व कम करने वाला विधेयक महाराष्ट्र में पहले ही मंजूर हो चुका है. कॉन्ट्रेक्ट फार्मिग का विधेयक भी कांग्रेस-राकांपा की तत्कालीन सरकार ने पारित किया था. ऐसी स्थिति में आप नए कृषि कानूनों का विरोध क्यों कर रहे हैं.

हम ऐसे ही विरोध नहीं कर रहे हैं. आपने जो पहली बात कही, उस पर मुझे यह कहना है कि महाराष्ट्र में कृषि उत्पन्न बाजार समिति और अन्य राज्यों की खेती में फर्क है. हमारे यहां बाजार समिति किसानों द्वारा मान्य संस्था है. महाराष्ट्र में हमने लोगों से विचार-विमर्श कर सुझाव दिया था कि किसानों को कुछ मामलों में आजादी दी जाए. इस संबंध में महाराष्ट्र में  फैसला किया गया था.

इसका मतलब यह हुआ कि हमारे यहां कृषि बाजार समिति कायम है. किसानों को वहां जाकर अपना माल बेचने का अधिकार है. किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य देना खरीददार के लिए अनिवार्य है. यह शर्त आज भी कायम है. हमने इस मामले में कोई समझौता नहीं किया. सिर्फ एक संशोधन यह किया कि किसान समिति के बाहर भी माल बेच सकेंगे.

यह व्यवस्था आज की नहीं है, पहले से है. आप देखिए नागपुर के संतरे देश के कोने-कोने में जाते हैं. नाशिक का प्याज पूरे देश में जाता है. खानदेश का केला भी देशभर में बिकता है. महाराष्ट्र में किसानों को माल बेचने की आजादी हमने पहले से दे रखी है. यह स्वतंत्रता कायम रखने का जो समर्थन करेगा, मैं उसका विरोध नहीं करूंगा.

फिर ऐसे आंदोलन क्यों होते हैं?

हमारी पद्धति और देश की पद्धति में थोड़ा अंतर यह है कि महाराष्ट्र में उत्पाद की जो कीमत तय की जाती है, उसी दर पर खरीददार को माल लेना अनिवार्य है.

हमारे यहां?

हां, हमारे यहां. उदाहरण के तौर पर गेहूं को लें. यदि नीलामी के लिए किसान ने 2100 रु. क्विंटल दाम तय किया, तो उतनी कीमत पर गेहूं खरीदना पड़ेगा. यह रकम चौबीस घंटे या 48 घंटे अथवा कृषि उत्पन्न बाजार समिति के नियमों के अंतर्गत तय अवधि में ही चुकानी पड़ेगी. उत्तर भारत में भुगतान को लेकर ही लोगों की शिकायत रहती है.

महाराष्ट्र में ऐसा नहीं होता कि माल नीलाम हुआ और अ ब क ने लिया तथा भुगतान 25 प्र.श. ही किया और बाकी के पैसे दो महीने नहीं दिए. महाराष्ट्र में 48 घंटे के भीतर या ज्यादा से ज्यादा चार दिन में भुगतान करना ही पड़ता है. मैं जब दिल्ली जाता हूं, तब महाराष्ट्र के कई किसान मुझ से मिलकर शिकायत करते हैं कि उत्तर भारत में हमने प्याज और संतरा बेचा, लेकिन उसका भुगतान नहीं हुआ.
इसका मतलब यह हुआ कि मौजूदा किसान आंदोलन उचित है?

आंदोलनकारी किसानों की मांग है कि खरीददार पर यह बंधन होना चाहिए कि माल खरीदते ही किसानों को 100 प्र.श. भुगतान हो जाए. यह प्रावधान महाराष्ट्र में है. मगर केंद्र सरकार के नए कानून में यह बंधन नहीं है. इसीलिए उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा के किसानों में तीव्र असंतोष है.

तो क्या यह समझा जाए कि कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और आपके बीच मतभेद खत्म हो गए?

पिछले 10-15 वर्षों से हम साथ में ही काम कर रहे हैं. सन 2004 में जब केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी, तब मैं विपक्ष में ही था. सोनिया गांधी खुद मेरे पास आईं और विस्तार से चर्चा की. उसके बाद प्रणब दा और डॉ. मनमोहन सिंह ने भी चर्चा की. इसके पश्चात हमने साथ काम करने का फैसला किया.

2004 से लेकर 2014 तक हम एक साथ ही सरकार में काम कर रहे थे. हमने मिलकर सरकार चलाई. सारे कार्यक्रम एक-दूसरे से चर्चा कर तय किए. उन पर सहमति के बाद ही हम आगे बढ़े. आज सभी मसलों पर हमारी विचारधारा एक है. मान लीजिए, 10 विषय हैं और उनमें 8 पर सहमति है, तो 2 विषय परे रखे जा सकते हैं. हमारा मत है कि आज हमें एकजुट होने की आवश्यकता है.

क्या ऐसा कुछ है कि पवार साहब को प्रधानमंत्री बनने नहीं देना चाहिए?

नहीं, इस तथ्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती कि पवार साहब के साथ संसद में कितने लोग आएंगे. कांग्रेस और आप एकजुट हैं. आप का व्यक्तित्व जिस प्रकार का है, उसे देखते हुए क्या आपको लगता नहीं कि आपका ग्रुप और मजबूत हो सकता था? मैं समझता हूं कि ऐसा दृष्टिकोण रखने से काम नहीं हो सकता. लोकतंत्र में संख्या का महत्व होता है.

क्या आप यह कहना चाहते हैं कि संख्याबल आपके साथ हो तो व्यक्ति गौण हो जाता है?

नहीं, व्यक्ति और संख्या दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं. जिस व्यक्ति के पक्ष में आंकड़े होते हैं, वह व्यक्ति गौण हो नहीं सकता. आंकड़े विविध कारणों से जुट सकते हैं. क्या आप महसूस करते हैं कि आज भाजपा के पास जो आंकड़े हैं, उसे स्वीकार कर आगे काम करना चाहिए? हम भाजपा के साथ कैसे काम कर सकते हैं. हमारी विचारधारा ही अलग है. 

लेकिन जनता ने भाजपा को स्वीकार किया है..

जनता ने 1977 में भी कांग्रेस को हराया था. उस वक्त जनता पार्टी की सरकार आई थी. जनता ने जनता पार्टी को भी स्वीकार किया था. हमने कहा था कि यह प्रयोग टिकेगा नहीं. आप देखिए कि सरकार सिर्फ दो साल चली. आज लोगों ने मोदी की झोली में वोट डाले. हम इसका विरोध नहीं करते. हम सच्चाई को स्वीकार करते हैं. मगर इस बात पर विचार करने का अधिकार विपक्ष को है कि मोदी की नीतियां देश के दीर्घकालिक हित में कितनी उपयोगी हैं.

हम बार-बार कहते हैं कि यह फुले, शाहू, आंबेडकर का महाराष्ट्र है, मगर पिछले 60 वर्षों में महाराष्ट्र में आपने एक भी महिला को मुख्यमंत्री नहीं बनाया. इस बारे में आप क्या कहेंगे?

आखिर नंबर तो होने चाहिए ना. जिस पक्ष के साथ बहुमत हो, उसे यह काम करना चाहिए. मुझे आज ऐसा दृश्य नजर नहीं आता कि कोई महिला महाराष्ट्र की मुख्यमंत्री बनेगी. मुख्यमंत्री बनने की क्षमता प्रतिभा ताई पाटिल में थी. मगर उस वक्त कांग्रेस ने अलग भूमिका अपनाई. प्रतिभा ताई की क्षमता को कांग्रेस ने राष्ट्रपति बनाकर स्वीकार किया. यहां भले अवसर न मिला हो लेकिन दूसरी जगह इस तरह के अवसर महिलाओं को मिले. ऐसे अनेक राज्य हैं जहां महिलाएं मुख्यमंत्री बनीं. 

लेकिन महाराष्ट्र का अलग ही चरित्र है..

अंतत: नंबर चाहिए. बिना नंबर के ऐसा कैसे हो सकता है. मगर जब आपके पास संख्याबल था तब भी.. उस वक्त की हालत अलग थी. पहले जो परिस्थिति थी, उसमें कांग्रेस के पास ही संख्याबल था. कांग्रेस ने प्रतिभा ताई को अवसर दिया. उन्हें उचित अवसर पर राष्ट्रपति बनाया. मैं यह नहीं कहता कि राष्ट्रपति बनाए जाने की संभावना के कारण उन्हें महाराष्ट्र में मौका नहीं दिया गया. आखिरकार पहली महिला राष्ट्रपति देश को महाराष्ट्र ने ही दी.

आजकल यह कहा जाता है कि नई पीढ़ी को नेतृत्व की बागडोर सौंप दी जानी चाहिए. आपका क्या मत है? राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में युवकों की संख्या काफी है. उनमें से मैं कह सकता हूं कि कई लोगों में नेतृत्व क्षमता है. राष्ट्रवादी में अजित पवार, जयंतराव पाटिल, धनंजय मुंडे जैसे नेतृत्वगुणों के धनी नेता हैं. उनकी प्रशासनिक क्षमता भी बेहतरीन है. उनमें मेहनत करने की मानसिकता भी है. 

मगर क्या यही लोग भविष्य में राष्ट्रवादी में नेतृत्व के दावेदार हो सकते हैं?

नहीं, दावेदारी पर हम विचार नहीं करते क्योंकि उसका समय ही नहीं आया. इसके अलावा राष्ट्रवादी के पास बहुमत भी नहीं है. ऐसे में नेतृत्व की चर्चा अभी से क्यों करें. आज महाराष्ट्र में तीन पार्टियां मिलकर सरकार चला रही हैं. यह फैसला सोच-समझकर लिया गया है. उसके साथ में हम सब हैं. 

आप रक्षामंत्री थे. डोकलाम और गलवान घाटी में चीन ने जो हमला किया, उस पर भारत को क्या करना चाहिए था? इसके बारे आप क्या कहेंगे? हमारे देश के बहुसंख्य लोगों के बीच पड़ोसी देशों को लेकर पाकिस्तान का विरोध सबसे ज्यादा होता है. मेरी भूमिका शुरू से यह रही है कि पाकिस्तान में नेतृत्व और सेना भारत के बारे में कई बार चमत्कारिक पद्धति से फैसले करते हैं.

इस तथ्य को हम खारिज नहीं कर सकते. लेकिन जब हम इस बात पर विचार करते हैं कि देश को खतरा कहां से हो सकता है, तो मेरा स्पष्ट मत है कि चीन से हमें ज्यादा सतर्क रहना पड़ेगा. चीन की मजबूत स्थिति, उसकी अर्थव्यवस्था, उसकी नौसेना, वायुसेना और थल सेना की ताकत को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते. चीनी नेतृत्व की एक खासियत है. उसमें बहुत संयम है. वे कुछ बोलते नहीं, कुछ करते नहीं मगर सही समय पर ही अपना फैसला घोषित करते हैं. इसीलिए असली खतरा चीन से ही है. पाकिस्तान से भी खतरा है, मगर चीन से खतरा ज्यादा है.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राहुल गांधी पर करारी टिप्पणी की है. आप क्या कहेंगे?

ओबामा ने अपने विचार व्यक्त किए. सभी विचार स्वीकार करने लायक नहीं होते. मैं अपने देश के नेतृत्व के बारे में कुछ भी बोल सकता हूं. मगर दूसरे देशों के मसलों पर मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा. हमें उस दायरे में रहना पड़ता है. मुङो लगता है कि ओबामा ने मर्यादा लांघकर टिप्पणी की है.

क्या आपका कहना है कि उनका झुकाव मोदी की ओर है?

नहीं, मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि ओबामा का झुकाव मोदी की ओर है. मैं दूसरे देशों के नेताओं के बारे में नहीं बोलूंगा. आज के अखबार में खबर छपी है कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए बयान दिया और भारत को पाठ पढ़ाने का प्रयास किया. भारत सरकार ने उन्हें करारा जवाब दिया. हमारी सरकार ने ठीक किया. यह मसला हमारे देश का है और इसमें बाहरी लोगों को दखल देने की जरूरत नहीं है. इसी तरह ओबामा ने हमारे नेतृत्व के बारे में कुछ कहा नहीं होता, तो बेहतर होता.

योगी आदित्यनाथ मुंबई आए हैं. उन्होंने कहा कि वह बॉलीवुड को उत्तर प्रदेश ले जाएंगे. एक ओर बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के समूह महाराष्ट्र में आ रहे हैं और दूसरी ओर बॉलीवुड को उ.प्र. ले जाने की बात हो रही है. यह कैसी राजनीति है?

महाराष्ट्र और मुंबई ने देश के बारे में विचार किया है. देश के अनेक हिस्सों में महाराष्ट्र के लोगों ने निवेश किया है. हम देश का विचार करते हैं.  इसके पहले भी अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री उनके राज्य में पूंजीनिवेश का प्रस्ताव लेकर महाराष्ट्र में आए थे. अगर कोई समझता है कि बॉलीवुड को ले जाने से महाराष्ट्र और मुंबई कमजोर हो जाएंगे, तो उस पर मेरा विश्वास नहीं है. 

फिलहाल चर्चा है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी के कुछ विधायक नाराज हैं. वे पार्टी छोड़ने की तैयारी में हैं. क्या यह सच है?

मुझे लगता है कि यह टेबल न्यूज है, इससे ज्यादा और कुछ नहीं. ऐसा है कि किसी विधायक के निर्वाचन क्षेत्र की कोई समस्या हल नहीं होती तो वह नाराजगी जताता है. बड़ी पार्टियों में भी ऐसा होता है. बहुमत वाले दल में भी ऐसा होता है. मगर पार्टी की सीमा लांघकर कुछ अलग करने का विचार किसी के मन में नहीं है, बिल्कुल नहीं है.

फिलहाल राज्य की राजनीति के सूत्र आपके हाथ में हैं. ऐसे में राज ठाकरे के बारे में आपका क्या मत है.

सूत्र मेरे हाथ में नहीं हैं. सूत्र उद्धव ठाकरे के हाथ में हैं. राज ठाकरे की अलग पार्टी है. वे स्वतंत्र रूप से अपने विचार व्यक्त करते हैं. युवाओं का बड़ा वर्ग उनका समर्थन करता है. चुनाव में उन्हें भले ही अपेक्षित सफलता न मिली हो परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि युवकों के बीच उनका क्रेज खत्म हो गया.

क्या आप महाराष्ट्र की पहली महिला मुख्यमंत्री के रूप में सुप्रिया सुले को देखते हैं?

मेरी जानकारी के मुताबिक सुप्रिया की दिलचस्पी महाराष्ट्र में नहीं है. उनका इंटरेस्ट राष्ट्रीय राजनीति में है, संसद में है. उन्हें उत्कृष्ट सांसद के रूप में कई पुरस्कार मिल चुके हैं. लोकमत का उत्तम सांसद का पुरस्कार भी उन्हें मिला है. आखिर सबकी अपनी दिलचस्पी होती है.

वो बात जो मन में बस गई

आपके प्रदीर्घ सार्वजनिक जीवन में क्या आप ऐसी दो-तीन घटनाएं बता सकते हैं जो आपके मन में बस गई हैं.

कुछ बातों से मुझे बेहद संतोष मिला है. मैं दस वर्ष तक देश का कृषि मंत्री रहा. जिस दिन मैंने कृषि मंत्री पद की शपथ ली, उसी दिन शाम को एक फाइल मेरे पास आई. मैं कृषि के अलावा नागरी आपूर्ति मंत्रलय भी संभाल रहा था. फाइल में कहा गया था कि देश में गेहूं का भंडार खत्म होता आ रहा है. अत: उसके आयात की अनुमति दी जाए.

मुझे यह सोचकर बुरा लग रहा था कि कृषि प्रधान देश का कृषि मंत्री होने के बावजूद मुङो पहले ही दिन अनाज के आयात की अनुमति देनी पड़ रही है. मैंने उस फाइल पर हस्ताक्षर नहीं किए. दूसरे दिन मुङो तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का फोन आया. डॉ. सिंह ने मुझे से पूछा, ‘‘शरद जी आपने स्टॉक देखा. जल्द से जल्द इंपोर्ट करने की आवश्यकता है. वो फाइल क्लीयर करो.’’ मेरे सामने कोई रास्ता नहीं बचा था. मैंने उस फाइल पर हस्ताक्षर कर दिए. उसी वक्त मैंने संकल्प किया कि कृषि प्रधान देश में इस तस्वीर को बदलना होगा. 

चूंकि आप ने सवाल किया है तो बतला रहा हूं कि दस वर्ष बाद जब मैंने कृषि मंत्रालय छोड़ा, तब भारत गेहूं का उत्पादन कर निर्यात करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन चुका था. गेहूं के निर्यात में भारत दुनिया में अव्वल बन गया. शक्कर उत्पादन में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर पहुंच गया. फलोत्पादन तथा दूध के उत्पादन में भारत दुनिया का नंबर-1 देश बन चुका था. कृषि मंत्री के रूप में दस वर्ष का कार्यकाल मुझे बेहद संतोष प्रदान करने वाला रहा. जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं.

मेरे हाथों में राज्य की बागडोर थी. सन 1980 में चुनाव हुए और राज्य की कमान मेरे हाथ से निकल गई. वो मतदाता का अधिकार होता है. सरकारें आती हैं और जाती हैं. उस वक्त मेरे पास 54 विधायक थे लेकिन तीन माह के भीतर 48 विधायकों ने मेरा साथ छोड़ दिया. मैं सिर्फ 6 विधायकों का नेता रह गया. मैंने ये दिन भी देखे. सार्वजनिक जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. मैंने ये सीखा कि उसकी ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए.

Web Title: mumbai ncp chief Sharad Pawar At 80 I consider people as God anti-BJP front

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