क्या आरक्षण को 50% से बढ़ाया जा सकता है? मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का राज्यों से सवाल, नोटिस

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 8, 2021 07:36 PM2021-03-08T19:36:03+5:302021-03-08T19:42:17+5:30

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू है. पांच जजों की पीठ इस मामले को 18 मार्च तक सुनेगी.

mumbai maratha reservation case hearing supreme court increased by 50% questions state notice quota state government | क्या आरक्षण को 50% से बढ़ाया जा सकता है? मराठा आरक्षण पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का राज्यों से सवाल, नोटिस

राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है. (file photo)

Highlightsसुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण के मसले पर सभी राज्यों को सुना जाना जरूरी है.राज्य सरकार ने 2018 में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था.जून 2019 में आरक्षण के दायरे को 16 फीसदी से घटाकर शिक्षा में 12 और नौकरी में 13 फीसदी तय कर दिया.

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से 'अति महत्वपूर्ण' सवाल पर जवाब मांगा कि क्या विधायिका किसी विशेष जाति को आरक्षण देने के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा घोषित करने में सक्षम है.

शीर्ष अदालत की संवैधानिक पीठ ने राज्यों को नोटिस जारी कर पूछा है कि क्या आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से बढ़ाया जा सकता है? मौजूदा समय में कई राज्यों में 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण दिया जा रहा है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट राज्य सरकारों का तर्क जानना चाहता है.

महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के आरक्षण मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू है. पांच जजों की पीठ इस मामले को 18 मार्च तक सुनेगी. अदालत ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि आरक्षण के मसले पर सभी राज्यों को सुना जाना जरूरी है.

महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल और पीएस पटवालिया की उस दलील पर पीठ ने गौर किया कि 102वें संशोधन की व्याख्या के सवाल पर फैसला राज्यों के संघीय ढांचे को प्रभावित कर सकता है और इसलिए, उन्हें सुनने की जरूरत है.

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की मांग काफी लंबे समय से हो रही थी, जिसे लेकर राज्य सरकार ने 2018 में मराठा समुदाय को 16 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था. सरकार के इस फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, जिस पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने जून 2019 में आरक्षण के दायरे को 16 फीसदी से घटाकर शिक्षा में 12 और नौकरी में 13 फीसदी तय कर दिया.

साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50 फीसदी आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है. हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने मराठा आरक्षण पर सुनवाई करते हुए इंदिरा साहनी या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए इस पर रोक लगा दी थी. साथ ही कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिए बड़ी बेंच बनाए जाने की आवश्यकता है. मराठा आरक्षण के लिए पांच जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है.

याचिकाकर्ता ने क्या कहा? आरक्षण मामले में मुख्य हस्तक्षेपकर्ता राजेन्द्र दाते पाटिल ने कहा कि यह मामला इंदिरा साहनी मामले से संबंधित है, जिस पर 11 जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया था. इसलिए सोमवार को मसले पर होने वाली सुनवाई के दौरान मराठा आरक्षण को भी 11 जजों की पीठ के समक्ष भेजने की मांग रखी जानी चाहिए.

पाटिल ने कहा कि मराठा एसईबीसी आरक्षण मसला गायत्री बनाम तमिलनाडु इस केस के साथ टैग करके बड़ी बेंच इस पर सुनवाई करे. तमिलनाडु में भी 69 प्रतिशत आरक्षण लागू है. मराठा एसईबीसी आरक्षण के चलते महाराष्ट्र में भी आरक्षण का प्रतिशत 65 तक बढ जाएगा. इसलिए प्रारंभिक मुद्दों को सबसे पहले सुना जाना चाहिए.

क्या है इंदिरा साहनी केस? 1992 में पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने का आदेश जारी किया था, जिसे इंदिरा साहनी ने कोर्ट में चुनौती दी थी. इंदिरा साहनी केस में नौ जजों की बेंच ने कहा था कि आरक्षित स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए.

इसी फैसले के बाद से कानून ही बन गया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है. 

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