मां को समय और पैसा देना घरेलू हिंसा नहीं, कोर्ट ने पति-पत्नी को ऐसे झिड़का, महिला को डॉट पिलाई, जानें माजरा

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 14, 2024 03:51 PM2024-02-14T15:51:51+5:302024-02-14T15:52:30+5:30

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आशीष अयाचित ने पारित आदेश में कहा कि उत्तरदाताओं के खिलाफ आरोप अस्पष्ट और संदिग्ध हैं और यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि उन्होंने आवेदक (महिला) के खिलाफ घरेलू हिंसा की।

mumbai court says Giving time and money to mother is not domestic violence scolded husband and wife like this made woman drink dot, know matter | मां को समय और पैसा देना घरेलू हिंसा नहीं, कोर्ट ने पति-पत्नी को ऐसे झिड़का, महिला को डॉट पिलाई, जानें माजरा

सांकेतिक फोटो

Highlightsघरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष शिकायत दर्ज की थी।महिला ने आरोप लगाया कि पति ने मां की मानसिक बीमारी की बात छिपाकर और उसे धोखा देकर उससे शादी की है। महिला ने यह भी दावा किया कि उसकी सास उसकी नौकरी का विरोध करती थी और पति व सास उससे झगड़ते थे।

मुंबईः मुंबई की एक सत्र अदालत ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ शिकायत पर मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली एक महिला की याचिका खारिज करते हुए कहा कि पति द्वारा अपनी मां को समय और पैसा देना घरेलू हिंसा नहीं माना जा सकता। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश आशीष अयाचित ने मंगलवार को पारित आदेश में कहा कि उत्तरदाताओं के खिलाफ आरोप अस्पष्ट और संदिग्ध हैं और यह साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है कि उन्होंने आवेदक (महिला) के खिलाफ घरेलू हिंसा की। ‘मंत्रालय’ (राज्य सचिवालय) में सहायक के रूप में काम करने वाली एक महिला ने सुरक्षा और गुजारा भत्ते की मांग के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम के तहत एक मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष शिकायत दर्ज की थी।

महिला ने आरोप लगाया कि उसके पति ने अपनी मां की मानसिक बीमारी की बात छिपाकर और उसे धोखा देकर उससे शादी की है। महिला ने यह भी दावा किया कि उसकी सास उसकी नौकरी का विरोध करती थी और पति व सास उससे झगड़ते थे। महिला ने कहा कि उसके पति सितंबर 1993 से दिसंबर 2004 तक अपनी नौकरी के लिए विदेश में रहे।

जब भी वह छुट्टी पर भारत आते थे, तो अपनी मां से मिलने जाते थे और उन्हें हर साल 10,000 रुपये भेजते थे। महिला ने कहा कि पति ने अपनी मां की आंख के ऑपरेशन के लिए भी पैसे खर्च किए। उसने अपने ससुराल के अन्य सदस्यों द्वारा उत्पीड़न का भी दावा किया। हालांकि, ससुराल वालों ने सभी आरोपों से इनकार किया।

प्रतिवादी ने दावा किया कि पत्नी ने कभी भी उसे अपने पति के रूप में स्वीकार नहीं किया और उस पर झूठे आरोप लगाती रही। पति के अनुसार, उन्होंने उसकी क्रूरताओं के कारण पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की थी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनकी पत्नी ने बिना किसी जानकारी के उनके एनआरई (अनिवासी बाहरी) खाते से 21.68 लाख रुपये निकाले और उस राशि से एक फ्लैट खरीदा। न्यायाधीश ने कहा कि मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले में इस अदालत के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

महिला की याचिका लंबित रहने के दौरान मजिस्ट्रेट अदालत ने उसे प्रति माह 3,000 रुपये का अंतरिम गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। महिला और अन्य के साक्ष्य दर्ज करने के बाद, मजिस्ट्रेट अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी और कार्यवाही के लंबित रहने के दौरान उसे दी गई अंतरिम राहत को रद्द कर दिया। बाद में महिला ने सत्र अदालत के समक्ष आपराधिक अपील दायर की। 

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