पूण्यतिथि विशेषः एमएस गोलवलकर RSS के 'गुरुजी', पीएम मोदी भी जिसे मानते हैं अपना गुरु 

By खबरीलाल जनार्दन | Published: June 5, 2018 07:49 AM2018-06-05T07:49:31+5:302018-06-05T08:58:11+5:30

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर को पूरा संघ 'गुरुजी' मानता है।

MS Golwalkar 2nd Sarsanghchalak of the Rashtriya Swayamsevak Sangh RSS All you Need to know about him | पूण्यतिथि विशेषः एमएस गोलवलकर RSS के 'गुरुजी', पीएम मोदी भी जिसे मानते हैं अपना गुरु 

MS Golwalkar

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर की आज पूण्यतिथि है। संघ उन्‍हें 'गुरुजी' कहकर बुलाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब ऐसे 16 लोगों के बारे में किताब 'ज्योतिपुंज' में जिक्र करते हैं, जिन्होंने उनकी जिंदगी को प्रभावित किया, उसमें एमएस गोलवलकर को 'पूजनीय गुरुजी' कहकर संबोधित करते हैं।

यही नहीं, साल 2017 में जब मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने दर्शनशास्त्र के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देने और उसमें सहायता करने के लिए इंडियन काउंसिल फॉर फिलॉसफिकल रिसर्च (आईसीपीआर) का गठन किया तो इसमें एमएस गोलवरकर का राष्ट्रवाद प्रमुख विषय के तौर पर रखा गया। तब इस काउंसिल ने एक बयान जारी कर कहा था, राष्ट्रवाद पर संघ विचारक एमएस गोलवरकर के विचारों को गलत समझा गया है और विरोधियों ने उनके विचारों का गलत प्रचार किया है।

आरएसएस के लोग एमएस गोलवलकर को अपना आदर्श मानते हैं। महाराष्ट्र के रामटेक में इनका जन्‍म 19 फरवरी, 1906 को हुआ था। इन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई ईसाई मिशनरी के एक स्कूल से की थी। इंडिया टुडे की एक खबर के अनुसार गोलवलकर ने साल 1924 में नागपुर के ईसाई मिशनरी के हिस्लाफ कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई पूरी की थी। 

इसके बाद गोलवलकर स्नातक की पढ़ाई के लिए काशी हिंदू विश्वविद्यायल आए। यहीं पर उनका उनका वास्ता मदन मोहन मालवीय से पड़ा। वाराणसी में ही हो रहे एक आरएसएस के कार्यक्रम में पहली दफा संघ के संपर्क में आए। यहां डॉ. हेडगेवार ने ऐसा भाषण किया कि गोलवलकर उन्हें अपना गुरु मान बैठे। डॉ. हेडगेवार 'डाक्टर जी' ने ही 13 अगस्त, 1939 को गोलवलकर को 'सरकार्यवाहक' अथवा सरसंघचालक के तौर पर नियुक्त किया था।

इसके बाद सन 1940-1973 तक करीब 33 सालों तक वे आरएसएस के विस्तार में लगे रहे।  साल 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, 1947 में देश की आजादी व विभाजन साल 1948 में नाथूराम गोडसे द्वारा गांधीजी की हत्या, साल 1962 में भारत पर चीन का आक्रमण, पंडित नेहरू का निधन, 1965 में भारत-पाक युद्ध, 1971 में भारत व पाकिस्तान के बीच दूसरे युद्ध व बंगलादेश के जन्म की सभी घटनाओं के वक्त गोलवलकर ही आरएसएस के प्रमुख थे। कहा जाता है कि इन्होंने ही आरएसएस को एक संगठन का रूप दिया। खासकर इन्होंने आरएसएस की विचारधारा को दिशा देने और मांजने का काम किया।

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खुद का पेट पालने के लिए वे बीएचयू में एक अस्‍थाई नौकरी भी करते थे। इन सारे कामों के साथ वे टेनिस के अच्छे खिलाड़ी थे और सितार-बांसुरी बजाने का भी शौक रखते थे। लेकिन विचारों का पुलिंदा उनकी किताब 'वी आर आवर नेशनहुड डिफाइंड' व 'बंच ऑफ थॉट्स' में मिलते हैं। 5 जून, 1973 को गोलवलकर का निधन हुआ था।

हालांकि गोलवलकर हमेशा आरएसएस विरोधियों की पहली पसंद रहे हैं। वामपंथी चिंतक और कलकत्‍ता वि‍श्‍ववि‍द्यालय के हि‍न्‍दी वि‍भाग में प्रोफेसर जगदीश्‍वर चतुर्वेदी ने अपने एक लेख में बताया कि कैसे गोलवलकर देश को पीछे ढकेलने का काम करे थे। उन्होंने 'पत्रकारों के बीच श्री गुरूजी, हिन्दुस्तान साहित्य 2, राष्ट्रधर्म प्रकाशन लखनऊ के पृष्ठ नंबर 36 का हवाला दिया है- 'असांप्रदायिक (धर्मनिरपेक्ष) राज्य का कोई अर्थ नहीं।' चतुर्वेदी के मुताब‌िक आरएसएस के सरसंघचालक का लक्ष्य था कि देश को फासीवादियों की तरह ही एकात्मक निगमीय अथवा सहकार्य (कारपोरेट) राज्य के तौर पर स्थाप‌ित किया जाए।

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