आरबीआई की सदस्य ने कहा, 'मुफ्त उपहार कभी मुफ्त नहीं होते, राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में मतदाताओं को यह बात बताते ही नहीं हैं'

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: August 21, 2022 14:32 IST2022-08-21T14:20:07+5:302022-08-21T14:32:46+5:30

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य और देश की जानीमानी आर्थशास्त्री आशिमा गोयल ने कहा कि जब सरकारें मुफ्त उपहार देती हैं तो वह जनता को उसकी लागत नहीं बताती हैं जबकि सच्चाई यह है कि मुफ्त उपहार कभी भी मुफ्त नहीं होते।

member of RBI said, 'Free gifts are never free, political parties do not tell this to voters in elections' | आरबीआई की सदस्य ने कहा, 'मुफ्त उपहार कभी मुफ्त नहीं होते, राजनीतिक दल चुनाव प्रचार में मतदाताओं को यह बात बताते ही नहीं हैं'

फाइल फोटो

Highlightsआरबीआई की मेंबर ने कहा कि राजनीतिक दल की ओर से दिये गये मुफ्त उपहार कभी मुफ्त नहीं होतेमुफ्त उपहारों से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचता है, जिसकी कल्पना बेहद मुश्किल होती हैजब सरकारें जनता को मुफ्त उपहार देती हैं तो वह उनको उसकी लागत के बारे में कुछ नहीं बताती हैं

दिल्ली: राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार के समय घोषणा किये जाने वाले मुफ्त उपहार कभी भी मुफ्त नहीं होते हैं और इसका व्यापक आर्थिक असर पड़ता है। इसलिए नेताओं को चुनाव प्रचार में इसके आर्थिक भार के विषय में भी जनता को बताना चाहिए। जी हां, यह बात रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की सदस्य और देश की जानीमानी आर्थशास्त्री आशिमा गोयल ने कही।

गोयल ने रविवार को समाचार एजेंसी पीटीआई से कहा, "जब सरकारें मुफ्त उपहार देती हैं तो वह जनता को उसकी लागत नहीं बताती हैं जबकि सच्चाई यह है कि मुफ्त उपहार कभी भी मुफ्त नहीं होते। विशेष रूप से इसके कारण दी जाने वाली सब्सिडी, कीमतों में वृद्धि का कारक बनती हैं और इस कारण अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचता है, जिसकी कल्पना मुश्किल होती है।"

उन्होंने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि मुफ्त उपहारों से उत्पादन और संसाधन आवंटन को नुकसान पहुंचाता है और इसमें एक बड़ी अप्रत्यक्ष लागत शामिल होती है। मसलन मुफ्त बिजली के कारण पंजाब में भूमि जल स्तर बेहद तेजी से गिरा है। इसी तरह मुफ्त उपहारों से स्वास्थ्य, शिक्षा, हवा और पानी की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और इसकी सबसे ज्यादा कीमत गरीबों को चुकानी पड़ती है।

अर्थशास्त्री आशिमा गोयल ने अपनी बात को बल देने के लिए तर्क देते हुए कहा, "जब पार्टियां मुफ्त योजनाओं की पेशकश करती हैं तो उन्हें मतदाताओं के लिए वित्तपोषण और इस तरह के लोक-लुभावने वादों को स्पष्ट करना चाहिए लेकिन वो राजनीतिक प्रतिस्पर्धी में ऐसा नहीं करते हैं।"

मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल के दिनों में कहा था कि राजनीतिक दल मुफ्त 'रेवाड़ी' बांटकर न केवल करदाताओं के पैसे की बर्बादी है, बल्कि एक आर्थिक आपदा भी है जो भारत के आत्मानिभर (आत्मनिर्भर) बनने के अभियान को बाधित कर सकती है।

कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणी कथिततौर पर आम आदमी पार्टी (आप) के संदर्भ में थी, जो गुजरात और हिमाचल प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में मौजूदा राजय की भाजपा सरकार के शासन को फेल बताते हुए राज्य की जनता के लिए मुफ्त योजनाओं की बात कर रही है।

आम आदमी पार्टी ने दिल्ली के बाद पंजाब में मुफ्त बिजली और पानी के वादों के साथ विधानसभा पर कब्जा कर लिया है और अब वो इसी मुफ्त बिजली, पानी के वादे को लेकर गुजरात के विधानसभा चुनाव में भी उतर रही है।

वहीं अगर हम आम आदमी पार्टी की बात करें तो पार्टी का स्पष्ट मानना है कि वो जनता से लिए पैसे जनता में ही खर्च कर रहे हैं और बाकि की राज्य सरकारें ऐसा नहीं करती हैं। इसके अलावा आम आदमी पार्टी का यह भी तर्क है कि देश में आज प्रधानमंत्री के नाम से इतनी योजनाएं चल रही हैं कि आम जनता को उसके बारे में याद भी नहीं हैं, आखिर केंद्र सरकार किस आधार पर उन योजनाओं को चला रही है।

आम आदमी पार्टी का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच में योजनाओं को लेकर भेदभाव नहीं होना चाहिए, केंद्र पूरे देश में योजनाओं को लागू कर सकती है तो हम अपने राज्य में अपनी क्षमताओं के अनुसार जनता के लिए योजनाएं लागू करेंगे।

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