ममता बनर्जी की महारैली नरेन्द्र मोदी से ज्यादा राहुल गांधी और मायावती के लिए चुनौती है!
By विकास कुमार | Updated: January 19, 2019 14:07 IST2019-01-19T14:07:51+5:302019-01-19T14:07:51+5:30
Mega Rally: महागठबंधन में तीन ध्रुव बनते हुए दिख रहे हैं जिसमें ममता बनर्जी बनाम मायावती और इन दोनों नेताओं के बनाम राहुल गांधी का समीकरण बनता हुआ दिख रहा है.

ममता बनर्जी की महारैली नरेन्द्र मोदी से ज्यादा राहुल गांधी और मायावती के लिए चुनौती है!
महागठबंधन के नेताओं के बीच देश का नेतृत्व करने के लिए होड़ शुरू हो गई है. तमाम राजनीतिक समीकरण गढ़े जा रहे हैं. अपने दावों को मजबूत बनाने के लिए नए राजनीतिक दोस्त बनाये जा रहे हैं. विपक्ष में ममता बनर्जी बनाम मायावती और इन दोनों के बनाम राहुल गांधी की तस्वीर उभरकर सामने आ रही है. नरेन्द्र मोदी के खिलाफ इस तरह का माहौल का माहौल बनाया जा रहा है जैसे खुद बीजेपी ने मनमोहन सिंह के खिलाफ बनाया था.
कलकत्ता में ममता बनर्जी ने महारैली का आयोजन किया है, जिसमें तमाम पार्टियों के नेताओं को बुलाया गया है. मंच पर अरविन्द केजरीवाल भी हैं तो अखिलेश यादव भी हैं, कुमारस्वामी भी हैं तो फारुख अब्दुल्लाह भी हैं. ममता बनर्जी ने इस महारैली के साथ ही बीजेपी के अंतिम संस्कार की घोषणा कर दी है. ममता बनर्जी मंच का संचालन खुद कर रही हैं और एक के बाद एक विपक्षी नेता मंच पर आकर मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का आह्वान कर रहे हैं. आपसी एकता को बरकरार रखते हुए मोदी-शाह की एकता को ध्वस्त करने का राजनीतिक एलान इस मंच से बार-बार किया जा रहा है.
देश की आजादी को खतरे में बताया जा रहा है, गंगा-जमुनी तहजीब को खतरे में बताया जा रहा है और नरेन्द्र मोदी की छवि को जनता विरोधी और राष्ट्र विरोधी बताया जा रहा है. कूल मिलाकर मोदी विरोधी माहौल बनाने की तैयारी लोकसभा चुनाव से पहले जोर-शोर से की जा रही है. राष्ट्रवाद के मुद्दे पर उस नेता को घेरा जा रहा है, जो भारतीय राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा राजनीतिक खिलाड़ी है.
राहुल गांधी बनाम ममता बनर्जी बनाम मायावती
रैली में राहुल गांधी नहीं पहुंचे. मायावती भी नहीं आयीं. संकेत साफ है कि महागठबंधन में तीन ध्रुव उभरकर सामने आ रहे हैं. राहुल गांधी राष्ट्रीय पार्टी के मुखिया होने के कारण मायावती और ममता को अपने बराबर तरजीह नहीं देना चाहते तो वहीं ममता 2014 के चुनाव में कांग्रेस के राजनीतिक प्रदर्शन का ठीक से ख्याल रख रहीं हैं. इस प्रॉक्सी वॉर में मायावती भारी पड़ती दिखाई दे रही हैं क्योंकि उन्हें बबुआ का साथ मिल रहा है. लेकिन चुनाव बाद अगर बबुआ को भी मायावती के बराबर सीटें मिलती हैं तो क्या यह साथ उस समय भी बना रहेगा या अपनी संभावनाओं की तलाश में निकलेगा, यह सबसे बड़ा सवाल है.
एक-दूसरे का साथ निभाने का वादा
मंच पर तमाम नेताओं का जुटान हुआ है जिनकी आँखों में प्रधानमंत्री बनने की लालसा साफ तौर पर झलक रही है. सरकार की आलोचना तो एक बहाना है दरअसल यह मेगा रैली अपने राजनीतिक महत्वाकांक्षा को विशाल स्वरुप देना है. एक मंच पर होते हुए भी यहां नेता एक दूसरे के दावे को खारिज करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं. अखिलेश यादव ने कहा कि प्रधानमंत्री पद का फैसला चुनाव बाद किया जायेगा. मतलब इस राजनीतिक गेम में कोई भी पार्टी और नेता अपनी संभावनाओं को खत्म नहीं करना चाहता है. यहां पर एक-दूसरे के साथ होने के बाद भी कोई एक साथ नहीं है. अपनी जमीनी हकीकत को भांपने के लिए इस मेगा इवेंट का आयोजन ममता बनर्जी द्वारा किया गया है.
अखिलेश यादव नहीं चाहते कि राहुल गांधी की ताजपोशी चुनाव से पहले हो, मायावती की परेशानी केवल राहुल गांधी नहीं बल्कि ममता बनर्जी भी हैं, ममता बनर्जी की परेशानी विपक्ष के वो तमाम नेता हैं जिनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में 20 से ज्यादा सीटें जीतने की ताकत रखती हैं. दरअसल यह सारा खेल अपने पॉलिटिकल परसेप्शन को मजबूत करने के लिए है ताकि देश की जनता के बीच अपनी छवि को धुर मोदी विरोधी और विकास की उपासक के रूप में पेश किया जा सके.