UP News: शिक्षकों की कमी से जूझ रहे उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज, 50 फीसदी टीचरों के पद खाली
By राजेंद्र कुमार | Updated: September 7, 2025 16:32 IST2025-09-07T16:32:42+5:302025-09-07T16:32:42+5:30
प्रदेश में गत पांच सितंबर से एमबीबीएस सत्र शुरू हुआ चुका है, लेकिन अभी भी प्रदेश के सरकारी चिकित्सा संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों के औसतन 50 फीसदी पद खाली हैं.

UP News: शिक्षकों की कमी से जूझ रहे उत्तर प्रदेश के मेडिकल कॉलेज, 50 फीसदी टीचरों के पद खाली
लखनऊ: देश के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में लोगों के इलाज के लिए कुल 78 मेडिकल कालेज हैं. जिनमें 43 सरकारी मेडिकल कॉलेज, दो एम्स, दो केंद्रीय केंद्रीय विश्वविद्यालय, एक डीम्ड विश्वविद्यालय और 35 निजी मेडिकल कॉलेज शामिल हैं. इन चिकित्सा संस्थानों व मेडिकल कॉलेजों में हर साल करीब 11,200 एमबीबीएस सीटों पर डाक्टर बनने की इच्छा रखने वाले छात्र-छात्राओं पढ़ने के लिए आए हैं.
प्रदेश में गत पांच सितंबर से एमबीबीएस सत्र शुरू हुआ चुका है, लेकिन अभी भी प्रदेश के सरकारी चिकित्सा संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों के औसतन 50 फीसदी पद खाली हैं. लखनऊ में ही डा. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में 37, किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमयू) में 20 तो पीजीआई में भी 16 फीसदी चिकित्सा शिक्षकों के पद खाली हैं. बलिया, कन्नौज, गाजीपुर जैसे ऐसे में छोटे शहरों में स्थित मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों के कितने पद खाली होंगे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
सरकारी चिकित्सा संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों के पद इसलिए नहीं खाली हैं कि इन संस्थानों में पढ़ाने के लिए चिकित्सा शिक्षक मिल नहीं रहे हैं. पद खाली रहने की सबसे बड़ी वजह नौकरशाही के हस्तक्षेप, संसाधनों की कमी और चिकित्सा शिक्षकों को मिलने वाला कम वेतन है. इस वजह से सरकारी चिकित्सा संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं.
लोक सेवा आयोग को भेजा गया प्रस्ताव :
फिलहाल चिकित्सा शिक्षकों की कमी को दूर करने के लिए सूबे के पिछड़े जिलों के मेडिकल कॉलेजों में खाली पदों पर विज्ञापन जारी किए गए हैं. कई जिलों में चिकित्सा शिक्षकों की भर्ती के लिए साक्षात्कार भी चल रहा है. बताया जा रहा है कि असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए डॉक्टर मिल रहे हैं, लेकिन एसोसिएट और प्रोफेसर पद पर संकट बना हुआ है.
इस कारण लखनऊ के केजीएमयू में 645 में 135 पद खाली हैं। डॉ. राम मनोहर लोहिया संस्थान में 440 में 165 पद और एसजीपीजीआई में 403 में 67 चिकित्सा शिक्षकों के पद खाली हैं. प्रदेश के राजकीय एवं स्वशासी मेडिकल कॉलेजों में सृजित कुल पदों के सापेक्ष करीब 50 फीसदी पद खाली हैं. उन्हें भरने के प्रयास किए जा रहे हैं.
लोक सेवा आयोग को चिकित्सा शिक्षकों के 480 पदों पर भर्ती करने के लिए प्रस्ताव भेजा गया है. प्रदेश के 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों के पदों को भरने के लिए लोक सेवा आयोग को लिखा गया है. इन 13 सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सिर्फ चार में नियमित प्रधानाचार्य हैं. इन मेडिकल कॉलेजों में स्थानीय कमेटी द्वारा एडॉक पर चिकित्सा शिक्षक रखे जा रहे हैं. इसके बाद भी राज्य के ज्यादातर मेडिकल कॉलेजों में 60 से 70 फीसदी ही चिकित्सा शिक्षक हैं.
इसलिए चिकित्सा शिक्षकों के पद रिक्त
राज्य के सरकारी चिकित्सा संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों में चिकित्सा शिक्षकों के पद रिक्त होने की कई वजहें हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह नौकरशाही के हस्तक्षेप और संसाधनों की कमी को बताया जा रहा है. इसके अलावा चिकित्सा शिक्षकों को मिलने वाला कम वेतन भी एक वजह है. एमएमबीएस के छात्रों को पढ़ाने में रुचि रखने वाले सीनियर डाक्टरों का कहना है कि चिकित्सा शिक्षक सिर्फ सम्मान को ध्यान में रखकर बनते हैं. हर चिकित्सा शिक्षक चाहता है कि उसे सम्मान मिले, लेकिन नौकरशाही उन्हें निशाना बनाती है.
वह कहते हैं कि चिकित्सा शिक्षकों को कार्य और उपचार के अलावा ढेर सारे काम करने पड़ते हैं, क्योंकि मेडिकल कॉलेजों में बिजली, फायर सर्विस, सीवर निगरानी सहित अन्य संसाधनों को लेकर कोई काडर नहीं है. ऐसे में जब की कोई अप्रिय घटना होती है तो उन्हे ही निशाना बनाया जाता है. इसके अलावा मेडिकल कॉलेजों में संसाधनों का अभाव है तथा शोध के लिए माहौल की कमी भी है.
ऐसे में माहौल में भी कार्य करने वाले डॉक्टरों को कॉलेजों में निरीक्षण के दौरान छोटी-छोटी बात पर अधिकारियों की फटकार मिलती है. यहीं नहीं सरकारी चिकित्सा संस्थानों में अनुबंध पर रखे जाने वाले शिक्षकों को प्राइवेट प्रैक्टिस पर छूट है जबकि नियमित शिक्षक होने पर निजी प्रैक्टिस (बाहर मरीज देखने) पर रोक है.
असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में करीब 1.20 लाख रुपये प्रतिमाह मिलता है, जो काफी कम है. समयबद्ध तरीके से पदोन्नति भी उन्हें नहीं मिलती तथा दो से तीन साल में तबादला भी किया जाता है. इन सब कारणों के चलते चिकित्सा शिक्षक प्राइवेट मेडिकल कालेजों में कार्य करने को महत्व दे रहे हैं. जहां उन्हे अच्छा वेतन और सम्मान दोनों ही मिल रहा है.
सरकार के निर्देश :
फिलहाल राज्य में चिकित्सा शिक्षकों के कमी को देखते हुए चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने चिकित्सा संस्थानों एवं मेडिकल कॉलेजों के खाली पदों को भरने के लिए प्रधानाचार्यों एवं संस्थानों के निदेशकों को सख्त निर्देश दिए हैं. उन्होने सभी मेडिकल कॉलेजों के प्रधानाचार्यों, संस्थानों के निदेशकों और कुलपति को निर्देश दिया गया है कि हर 15 दिन पर शासन को अवगत कराया जाए कि कितने पद भरे गए.
शर्मा का कहना है कि जल्दी ही खाली पदों को भर लिया जाएगा. जहां आयोग से चिकित्सा शिक्षक मिलने में देरी हो रही है, वहां वैकल्पिक रास्ते अपनाकर खाली पदों को भरा जा रहा है. इसके साथ ही चिकित्सा शिक्षकों की हर सुविधा का ध्यान रखा जा रहा है. जहां कॉलेज बढ़े हैं, वहां सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं ताकि चिकित्सा शिक्षकों को किसी तरह की समस्या न हो.