अगर विवाहित महिला से घर का काम करने को कहा जाता है तो इसकी तुलना घरेलू सहायिका से नहीं की जा सकती, बंबई उच्च न्यायालय का अहम फैसला
By भाषा | Published: October 27, 2022 07:32 PM2022-10-27T19:32:23+5:302022-10-27T19:34:25+5:30
मुंबईः महिला ने अलग रह रहे पति और उसके माता-पिता पर घरेलू हिंसा और क्रूरता के तहत मामला दर्ज कराया था जिसे उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया।
मुंबईः यदि एक विवाहित महिला से कहा जाता है कि वह परिवार के लिए घरेलू काम करे, तो इसकी तुलना घरेलू सहायिका के काम से नहीं की जा सकती और इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा। बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने एक महिला की ओर से दर्ज कराये गये मामले पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
महिला ने अलग रह रहे पति और उसके माता-पिता पर घरेलू हिंसा और क्रूरता के तहत मामला दर्ज कराया था जिसे उच्च न्यायालय ने निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति विभा कांकनवाड़ी और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने 21 अक्टूबर को उस व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द कर दिया।
महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि विवाह के बाद एक महीने तक ही उसके साथ अच्छा व्यवहार किया गया, लेकिन इसके बाद उससे घरेलू सहायिका की तरह व्यवहार किया जाने लगा। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति और सास-ससुर ने शादी के एक महीने बाद चार पहिया वाहन खरीदने के लिए चार लाख रुपये मांगना शुरू कर दिया।
उसने अपनी शिकायत में कहा कि इस मांग को लेकर उसके पति ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया। उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने केवल इतना कहा है कि उसे प्रताड़ित किया गया, लेकिन उसने इस तरह के किसी विशेष कृत्य का अपनी शिकायत में जिक्र नहीं किया।
अदालत ने कहा कि अगर विवाहित महिला से परिवार के लिए घर का काम करने को कहा जाता है तो इसकी तुलना घरेलू सहायिका के काम से नहीं की जा सकती। अदालत के अनुसार, अगर महिला की दिलचस्पी घर का काम करने में नहीं है तो उसे यह बात विवाह से पहले स्पष्ट कर देना चाहिए ताकि पति और पत्नी बनने से पहले विवाह पर पुन:विचार किया जा सके। अदालत के अनुसार, अगर महिला विवाह के बाद कहती है कि वह घर का काम नहीं करना चाहती तो ससुराल वालों को इसका हल जल्द निकालना चाहिए।