Maratha Reservation Live Updates: मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे ने मंगलवार को कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि महाराष्ट्र सरकार इस समुदाय को 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आरक्षण देती है, बल्कि यह आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी के तहत होना चाहिए, न कि अलग। जालना जिले के अंतरवाली सरती गांव में पत्रकारों से बात करते हुए जरांग ने कहा कि वह इंतजार करेंगे और देखेंगे कि क्या राज्य सरकार कुनबी मराठों के ‘खून के रिश्तों’ पर अपनी मसौदा अधिसूचना को कानून में बदलती है या नहीं और उसके बाद अपने आंदोलन के बारे में फैसला करेंगे। राज्य सरकार मराठा समुदाय के आरक्षण और अन्य मांगों पर चर्चा के लिए मंगलवार को राज्य विधानमंडल का एक विशेष सत्र आयोजित कर रही है।
मराठा आरक्षण कार्यकर्ता ने कहा, “सरकार हमें वह दे रही है जो हम नहीं चाहते। हम अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आरक्षण चाहते हैं, लेकिन वे इसके बजाय हमें एक अलग कोटा दे रहे हैं। यदि सरकार कुनबी मराठों के रक्त संबंधियों के लिए आरक्षण पर मसौदा अधिसूचना पर चर्चा और कार्यान्वयन नहीं करती है, तो हम कल आंदोलन की दिशा पर फैसला करेंगे।”
मराठों को अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण देने के राज्य सरकार के प्रस्ताव के बारे में पूछे जाने पर जरांगे ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सरकार समुदाय के लिए 10 प्रतिशत या 20 प्रतिशत आरक्षण देती है, लेकिन यह ओबीसी श्रेणी के तहत होना चाहिए, न कि अलग से। उन्होंने आरक्षण मुद्दे को भटकाने की कोशिश के लिए सरकार की आलोचना की और आरोप लगाया कि वह मंत्री छगन भुजबल के प्रभाव में काम कर रही है, जो ओबीसी आरक्षण में मराठों के “पिछले दरवाजे से प्रवेश” का विरोध कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, “ओबीसी श्रेणी के बाहर एक अलग आरक्षण कानूनी चुनौतियों का सामना कर सकता है, क्योंकि ऐसा करना आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो सकता है।” जरांगे 10 फरवरी से भूख हड़ताल पर हैं। एक साल से भी कम समय में यह चौथी बार है, जब जरांगे ने मराठा समुदाय को ओबीसी समूह में शामिल करने की मांग को लेकर भूख हड़ताल की है।
महाराष्ट्र विधानसभा ने शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने वाला विधेयक मंगलवार को सर्वसम्मति से पारित कर दिया। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मराठा आरक्षण पर विधानमंडल के एक दिवसीय विशेष सत्र के दौरान सदन में महाराष्ट्र राज्य सामाजिक एवं शैक्षणिक रूप से पिछड़ा विधेयक 2024 पेश किया।
विधेयक में यह भी प्रस्ताव किया गया है कि एक बार आरक्षण लागू हो जाने पर 10 साल बाद इसकी समीक्षा की जा सकती है। मराठा आरक्षण कार्यकर्ता मनोज जरांगे 10 फरवरी से भूख हड़ताल पर बैठे हैं और उन्होंने मांग की थी कि इस मुद्दे पर एक विशेष सत्र बुलाया जाए। सरकार ने हाल ही में एक मसौदा अधिसूचना जारी की थी जिसमें कहा गया है कि यदि किसी मराठा व्यक्ति के पास यह दिखाने के लिए दस्तावेजी सबूत है कि वह कृषक कुनबी समुदाय से है, तो उस व्यक्ति के रक्त संबंधियों को भी कुनबी जाति प्रमाण पत्र मिलेगा।
कुनबी समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में आता है और जरांगे मांग कर रहे थे कि सभी मराठा को कुनबी प्रमाणपत्र जारी किए जाएं। महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री छगन भुजबल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे में मराठों के "पिछले दरवाजे से प्रवेश" का विरोध कर रहे हैं, लेकिन समुदाय के लिए अलग आरक्षण के पक्ष में हैं।
वहीं, महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने शुक्रवार को मराठा समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर अपने सर्वेक्षण पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस व्यापक कवायद में लगभग 2.5 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया। मुख्यमंत्री शिंदे द्वारा पेश किए गए विधेयक के प्रमुख निष्कर्षों में से एक यह रेखांकित करता है कि राज्य में मराठा समुदाय की आबादी 28 प्रतिशत है।
गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले कुल मराठा परिवारों में से 21.22 प्रतिशत के पास पीले राशन कार्ड हैं। यह राज्य के औसत 17.4 प्रतिशत से अधिक है। विधेयक के अनुसार, इस साल जनवरी और फरवरी के बीच किए गए राज्य सरकार के सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि मराठा समुदाय के 84 प्रतिशत परिवार उन्नत श्रेणी में नहीं आते हैं, इसलिए वे इंद्रा साहनी मामले के अनुसार आरक्षण के लिए पात्र हैं। विधेयक में कहा गया है कि महाराष्ट्र में आत्महत्या कर चुके कुल किसानों में से 94 प्रतिशत मराठा परिवारों से थे।