पश्चिम बंगाल में और बढ़ेगा टकराव! राज्यपाल जगदीप धनकड़ को हटाने के लिए ममता बुलायेंगी विधान सभा का विशेष सत्र
By शीलेष शर्मा | Updated: May 20, 2021 22:00 IST2021-05-20T17:48:02+5:302021-05-20T22:00:25+5:30
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के बाद भी टीएमसी और बीजेपी के बीच टकराव कम होता नजर नहीं आ रहा है। वहीं टीमएसी के नेता राज्यपाल जगदीप धनकड़ की भूमिका को लेकर भी सवाल उठाते रहे हैं।

राज्यपाल जगदीप धनकड़ को हटाने के लिए ममता बनर्जी बुलायेंगी विधान सभा का विशेष सत्र!
नई दिल्ली: राज्यपालों की भूमिका को लेकर लंबे समय से उठते रहे विवादों के बीच पश्चिमी बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अब इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार ममता बनर्जी हर स्तर पर राज्यपाल जगदीप धनकड़ को हटाने की कोशिश में जुट गयी हैं।
इसी कोशिश के तहत उन्होंने विधान सभा का विशेष सत्र बुला कर जगदीप धनकड़ को हटाने के लिए प्रस्ताव पारित करने का निर्णय किया है। पार्टी की सांसद महुआ मोइत्रा ने इन संकेतों के साथ साफ किया कि संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल जगदीप धनकड़ भाजपा के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे हैं।
वहीं पार्टी के एक अन्य सांसद सौगत राय का तर्क था कि राज्यपाल जगदीप धनकड़ ऐसा वातावरण बना रहे हैं जिससे यह साबित किया जा सके कि राज्य में कानून व्यवस्था समाप्त हो चुकी है ताकि केंद्र सरकार को राज्य की चुनी हुई ममता सरकार को अस्थिर करने में मदद मिल सके।
गौरतलब है कि ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मंगलवार को पत्र भेज कर राज्यपाल धनकड़ को वापस बुलाने की मांग पहले ही कर दी है।
राज्यपालों की भूमिका पर पहले भी उठे हैं सवाल
यह पहला मामला नहीं है जब राज्यपाल की भूमिका को लेकर सवाल उठे हो। इससे पहले भी राज्यपालों की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। राजस्थान में कलराज मिश्रा , कर्नाटक के तत्कालीन राज्यपाल हंसराज भारद्वाज, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी इसके उदाहरण हैं।
क़ानून के विशेषज्ञ, जाने माने वकील और कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि पिछले 75 वर्षों में उन्होंने कभी ऐसा नहीं देखा कि कोई राज्यपाल यह कहे कि राज्य में खून की होली और नरसंहार हो रहा है। उन्होंने संविधान निर्माता की उस टिप्पणी का उल्लेख किया जो उन्होंने संविधान पीठ के सामने राज्यपालों की भूमिका को लेकर रखी थी जिसमें राज्यपाल को कार्यपालन शक्ति देने का विरोध किया था।
सिंघवी ने भाजपा पर संघीय ढाँचे और संवैधानिक संस्थाओं को नष्ट करने का भी आरोप लगाया। वहीं, पूर्व मंत्री आनद शर्मा का मत था कि राज्यपाल को संवैधानिक व्यवस्थाओं के तहत राजनीतिक और प्रशासनिक भूमिका अदा करने का कोई अधिकार नहीं है।
केंद्र में किसी भी दल की सरकार रही हो राज्यपालों की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं। बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने भी इस बात पर आपत्ति उठायी कि किसी राज्यपाल को संविधान की व्यवस्था के तहत एक राजनीतिक टूल की तरह काम नहीं करना चाहिए, उन्हें सवाल उठाने का अधिकार है लेकिन सरकार के काम में हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है।