प्रवर्तन निदेशालय के नियमों में भारी बदलाव, जांच के दायरे में जज और सैन्य अधिकारी भी, क्रिप्टोकरेंसी भी रडार के दायरे में

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: March 10, 2023 08:24 IST2023-03-10T08:16:33+5:302023-03-10T08:24:58+5:30

भारत सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय के धन शोधन निवारण अधिनियम में भारी बदलाव किया है, जिसके तहत अब जांच एजेंसी जजों और सैन्य अधिकारियों की किसी भी संदिग्ध आर्थिक गतिविधियों की जांच करने के लिए आजाद होगी।

Major changes in the rules of Enforcement Directorate, judges and military officers also under investigation, cryptocurrency also under radar | प्रवर्तन निदेशालय के नियमों में भारी बदलाव, जांच के दायरे में जज और सैन्य अधिकारी भी, क्रिप्टोकरेंसी भी रडार के दायरे में

फाइल फोटो

Highlightsवित्त मंत्रालय ने प्रवर्तन निदेशालय के धन शोधन निवारण अधिनियम में किया भारी बदलाव भारत सरकार की ओर नये बदलाव को लेकर दो गजेट पारित किए गए हैं नये बदलाव के तहत प्रवर्तन निदेशायल के जांच का दायरा और भी व्यापक किया गया है

दिल्ली: भारत सरकार के वित्त मंत्रालय ने प्रवर्तन निदेशालय के धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention Of Money Laundering Act- PMLA) में भारी बदलाव किया है। साल 2002 में देश की संसद से पारित हुए और 1 जुलाई 2005 से प्रभावी होने वाले आर्थिक अपराध की रोकथाम के इस सख्त कानून के दायरे में अब जज और सैन्य अधिकारी भी आएंगे यानी प्रवर्तन निदेशायल उनकी भी गैर कानूनी आर्थिक गतिविधियों की जांच करने के लिए स्वतंत्र होगा।

जानकारी के अनुसार भारत सरकार ने केंद्रीय वित्त मंत्रालय की जांच एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय को लेकर दो गजेट पारित किए हैं। जिसके तहत धन शोधन नियमों में व्यापक बदलाव गया है। कानून में हुए नये बदलाव के तहत प्रवर्तन निदेशायल के जांच का दायरा और भी व्यापक हो जाएगा और अवैध धन निकासी को मॉनिटर करने के लिए बनाये गये पूर्व के नियमों के साथ क्रिप्टोकरेंसी को जांच के दायरे में लाया गया है।

धन शोधन निवारण अधिनियम के नियमों में बदलाव को लेकर केंद्र सरकार की ओर से दो गजेट पारित किए गए हैं। इनमें एक राजनीतिक क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों के संबंध में है। नये नियम के अनुसार प्रवर्तन निदेशालय अब जांच के लिए विदेशों में काम करने वाले लोगों, जजों, वरिष्ठ राजनेताओं, राजनीतिक पार्टी के पदाधिकारियों, वरिष्ठ नौकरशाहों और सैन्य अधिकारियों के घर भी जांच के लिए पहुंच सकती है।

वहीं साल में प्रवर्तन निदेशालय में परिवर्तिन नये नियमों के अनुसार देश के सभी गैर-सरकारी संगठनों को बैंकों के लेनदेन, लेनदेन किस तरह से किए गए उसका सारा रिकॉर्ड उन्हें रखना होगा। इसके साथ ही नये नियमों में यह भी जोड़ा गया है कि पैसे के लेनदेन की जानकारियों को कैसे साझा की जाएगी, इसको लेकर भी एक तरीका तैयार किया जाएगा।

मालूम हो कि प्रवर्तन निदेशालय धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत आर्थिक अपराध की जांच करने वाली वित्त मंत्रालय की प्रमुख केंद्रीय एजेंसी है। वित्त मंत्रालय के इस एजेंसी के खिलाफ विभिन्न राजनीतिक दलों का आरोप है कि धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत प्राप्त शक्तियों का केंद्रीय एजेंसी कई बार दुरुपयोग करती है और इस बात की प्रबल संभावना रहती है कि सत्ता पक्ष धन शोधन निवारण अधिनियम को अन्य राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी या विरोधियों के खिलाफ बतौर हथियार उपयोग कर सकती है क्योंकि इसकी तहत की गई कार्रवाई स्वयं में दंड के समान हैं।

दरअसल प्रवर्तन निदेशालय के धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत दर्ज किये जाने वाला प्रवर्तन केस सूचना रिपोर्ट, जो एफआईआर के समान है। वह एक ‘आंतरिक दस्तावेज़’ माना जाता है और उसे आरोपी को सौंपने का प्रावधान नहीं है।

धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत की गई कानूनी प्रक्रिया के दौरान आरोपी को यह नहीं पता होता है कि उसके खिलाफ कौन-कौन से आरोप लगाये गये हैं क्योंकि एकमात्र दस्तावेज जिसमें आरोप दर्ज़ होता है। वह प्रवर्तन केस सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) आरोपी को नहीं सौंपा जाता है।

धन शोधन निवारण अधिनियम सामान्य आपराधिक कानून के विपरीत है क्योंकि सामान्य आपराधिक कानून में दोषी साबित होने तक आरोपी को निर्दोष माना जाता है जबकि धन शोधन निवारण अधिनियम में आरोपी को निर्दोष साबित होने के लिए स्वयं तथ्यों को पेश करना होता है।

धन शोधन निवारण अधिनियम की धारा 63 में कहा गया है कि आरोपी द्वारा स्वयं सारी सूचना प्रदान करनी होगी और यदि उसने झूठी सूचना या सच छुपाने का प्रयास किया तो वह अन्य आपराधिक कृत्य माना जाएगा।

हालांकि इतने कठोर कानूनी प्रवाधान के बावजूद प्रवर्तन निदेशालय बहुत कम मामलों में दोष सिद्ध कर पाया है। जबकि उसकी ओर से दर्ज किये गये हज़ारों मामले अब भी न्यायिक प्रक्रिया के तहत गुजर रहे हैं। संसद में सरकार की ओर से पेश किये गये आंकड़ों के अनुसार साल 2005 से 2013-14 के बीच प्रवर्तन निदेशालय अदालत में  शून्य दोष सिद्ध कर पाया था। साल 2014-15 से 2021-22 तक प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जांच किये गए 888 मामलों में से केवल 23 मामलों में ही दोष सिद्ध हुए थे। 

Web Title: Major changes in the rules of Enforcement Directorate, judges and military officers also under investigation, cryptocurrency also under radar

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