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कांग्रेस से भी रहे हैं शिवसेना के करीबी रिश्ते! राजनीतिक और वैचारिक प्रतिद्वंदियों के साथ गठजोड़ का रहा है लंबा इतिहास

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 13, 2019 08:07 IST

धवल कुलकर्णी ने अपनी किताब 'द कजिन्स ठाकरे-उद्धव एंड राज एंड इन द शैडो ऑफ देयर सेना' में लिखा है कि 1960 और 70 के दशक में कांग्रेस ने वामपंथी मजदूर संगठनों के खिलाफ शिवसेना का इस्तेमाल किया.

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ठळक मुद्दे1960 और 70 के दशक में कांग्रेस ने वामपंथी मजदूर संगठनों के खिलाफ शिवसेना का इस्तेमाल कियाशिवसेना ने 1977 में आपातकाल का समर्थन किया, साथ ही तब पार्टी ने कांग्रेस के मुरली देवड़ा का महापौर चुनाव में समर्थन किया थाशिवसेना और कांग्रेस के बीच संबंध 80 के दशक में इंदिरा गांधी के निधन के बाद खत्म हो गए

राष्ट्रपति चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार का समर्थन करने से लेकर एनसीपी प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के खिलाफ कोई उम्मीदवार नहीं उतारने और वैचारिक रूप से विपरीत छोर वाली पार्टी मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन करने तक, शिवसेना का ''दुश्मनों के साथ दोस्ती'' का एक इतिहास रहा है. इसलिए जो लोग शिवसेना के अतीत से परिचित हैं, उन्हें शिवसेना द्वारा सोमवार को एनडीए से अलग होने और कांग्रेस तथा राकांपा से समर्थन मांगने पर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ. 

शिवसेना को उग्र हिंदुत्ववादी रुख के लिए जाना जाता है. पिछले महीने हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को 105 सीटें मिलीं, इसके बाद शिवसेना को 56, राकांपा को 54 और कांग्रेस को 48 सीटें मिलीं. बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थापना की थी. पार्टी के शुरुआती पांच दशकों के दौरान कांग्रेस ने उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया. 

धवल कुलकर्णी ने अपनी किताब 'द कजिन्स ठाकरे-उद्धव एंड राज एंड इन द शैडो ऑफ देयर सेना' में लिखा है कि 1960 और 70 के दशक में कांग्रेस ने वामपंथी मजदूर संगठनों के खिलाफ शिवसेना का इस्तेमाल किया. पार्टी ने 1971 में कांग्रेस (ओ) के साथ गठबंधन किया और मुंबई तथा कोंकण क्षेत्र में लोकसभा चुनाव के लिए तीन उम्मीदवार उतारे, लेकिन किसी को भी जीत नहीं मिली. 

पार्टी ने 1977 में आपातकाल का समर्थन किया. जाने-माने राजनीतिक विश्लेषक सुहास पलशीकर ने बताया कि 1977 में पार्टी ने कांग्रेस के मुरली देवड़ा का महापौर चुनाव में समर्थन किया. पार्टी का तब 'वसंत सेना' कहकर मजाक उड़ाया गया था. 'वसंत सेना' से आशय तत्कालीन मुख्यमंत्री वसंतराव नाईक की सेना, जो 1963 से 1974 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे. उन्होंने लिखा है कि जनता पार्टी के साथ गठबंधन का प्रयास विफल होने के बाद 1978 में शिवसेना ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) के साथ गठबंधन किया. 

विधानसभा चुनाव में उसने 33 उम्मीदवार उतारे, जिनमें से सभी को हार का सामना करना पड़ा. वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश अकोलकर ने अपनी किताब 'जय महाराष्ट्र' में लिखा है कि 1970 में मुंबई महापौर का चुनाव जीतने के लिए शिवसेना ने मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया. इसके लिए शिवसेना सुप्रीमो ने मुस्लिम लीग के नेता जी. एस. बनातवाला के साथ मंच भी साझा किया. 

शिवसेना ने 1968 में मधु दंडवते की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के साथ गठजोड़ किया. शिवसेना और कांग्रेस के बीच संबंध 80 के दशक में इंदिरा गांधी के निधन के बाद खत्म हो गए. राजीव गांधी, सोनिया गांधी और इंदिरा गांधी के समय ये संबंध खराब ही हुए. इस दौरान शिवसेना ने उग्र हिंदुत्ववादी पार्टी की पहचान बनाई और भाजपा के करीब आई. 

हालांकि, शिवसेना ने राष्ट्रपति चुनावों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों प्रतिभा पाटिल और प्रणब मुखर्जी का समर्थन किया. ठाकरे परिवार और पवार के बीच संबंध भी पांच दशक पुराने हैं. दोनों राजनीतिक रूप से तगड़े प्रतिद्वंदी रहे हैं, लेकिन निजी जीवन में पक्के दोस्त भी रहे हैं. शरद पवार ने इस बारे में अपनी आत्मकथा 'ऑन माई टर्म्स' में लिखा है कि किस तरह वह और उनकी पत्नी 'मातोश्री' में गपशप और रात्रिभोज के लिए जाते थे.

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