महाराष्ट्र में कुल कितने किसान हैं? न तो सरकार और न ही बैंकों के पास है साफ जवाब
By विशाल कुमार | Updated: September 28, 2021 09:52 IST2021-09-28T09:47:34+5:302021-09-28T09:52:53+5:30
महाराष्ट्र में सरकार और बैंकों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है जिसमें उनके पास राज्य में किसानों की कुल संख्या को लेकर कोई साफ जवाब नहीं है. कई सरकारी आंकड़े देने वाले स्त्रोत अलग-अलग जवाब दे रहे हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर.
मुंबई:महाराष्ट्र में सरकार और बैंकों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई है जिसमें उनके पास राज्य में किसानों की कुल संख्या को लेकर कोई साफ जवाब नहीं है. कई सरकारी आंकड़े देने वाले स्त्रोत अलग-अलग जवाब दे रहे हैं.
यह सवाल सबसे पहले राज्य में बैंकरों के शीर्ष संगठन स्टेट लेवल बैंकिंग कमिटी (एसएलबीसी) की अगस्त में हुई बैठक में उठाया गया जिसमें मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, उपमुख्यमंत्री अजित पवार और राज्य सहकारी मंत्री बालासाहेब पाटिल के साथ कई वरिष्ठ मंत्री शामिल थे.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) मुख्य़ महाप्रबंधक जीएस रावत ने कहा कि राज्य में कुल 1.52 करोड़ किसानों की तुलना में 1.14 करोड़ किसान पीएम किसान पोर्टल में दर्ज हैं और 58 लाख किसानों को 31 अक्टूबर 2021 तक फसल ऋण सुविधा के तहत कवर किया गया है.
हालांकि, इस तरह राज्य के 50 प्रतिशत किसान भी संस्थागत वित्त हासिल करने के दायरे में नहीं हैं.
इस तथ्य को देखते हुए कि किसानों की आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र देश में सबसे आगे है, राज्य में कृषि और अन्य प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए वित्तीय खर्च तय करने वाली संस्था निकाय द्वारा यह स्वीकार किया जाना महत्वपूर्ण है.
बता दें कि, पीएम किसान केंद्र सरकार की योजना है जिसके तहत पात्र किसानों को उनके बैंक खातों में प्रति वर्ष 6,000 रुपये प्राप्त होते हैं.
बैठक में कहा गया कि मौजूदा हालात में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के साथ कम से कम 15-20 लाख नए किसानों के कवरेज की गुंजाइश मौजूद है.
राज्य में 5,900 ग्रामीण और 3,500 अर्ध-शहरी बैंक शाखाओं के नेटवर्क का उपयोग मिशन मोड अपनाकर केसीसी जारी करने में अंतर को पाटने के लिए किया जा सकता है.
किसानों की संख्या के आंकड़ों को लेकर यह अस्पष्टता कृषि और सिंचाई ऋण हासिल करने सहित कई गंभीर समस्याओं की ओर इशारा करती है.
संस्थागत ऋण की आसान और उचित उपलब्धता किसानों की एक प्रमुख मांग रही है। संस्थागत ऋण की अनुपलब्धता भी एक प्रमुख चिंता का विषय रहा है.
राज्य सरकार द्वारा कई कृषि ऋण माफी के बावजूद, अपने कृषि ऋण आधार को बढ़ाने में बैंकों की विफलता राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है.