'CM उद्धव ठाकरे को नामित करने के लिए दबाव नहीं बना सकती कैबिनेट, राज्यपाल के पास मनोनयन के लिए होती है निरंकुश ताकत'
By हरीश गुप्ता | Published: May 1, 2020 06:56 AM2020-05-01T06:56:09+5:302020-05-01T08:39:33+5:30
महाराष्ट्र की वर्तमान परिस्थिति के संदर्भ में जहां राज्य की कैबिनेट ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद के लिए नामित किया है के मुद्दे पर कश्यप ने कहा,'' यह पूर्ण रूप से राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वह कैबिनेट के प्रस्ताव को मंजूरी दे अथवा नहीं. राज्यपाल किसी भी तरह से बाध्य नहीं है कि वह ऐसे प्रस्ताव को मंजूर करे.''
नई दिल्ली: जानेमाने संविधान विशेषज्ञ डॉ. सुभाष कश्यप ने कहा राज्यपाल के पास राज्य की विधान सभा और विधान परिषद में किसी व्यक्ति के मनोनयन के मामले में 'निरंकुश ताकत' होती है. उन्होंने कहा कि राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह मानने के लिए बाध्य है लेकिन संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार वह अपने विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकते हैं.
महाराष्ट्र की वर्तमान परिस्थिति के संदर्भ में जहां राज्य की कैबिनेट ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधान परिषद के लिए नामित किया है के मुद्दे पर कश्यप ने कहा,'' यह पूर्ण रूप से राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वह कैबिनेट के प्रस्ताव को मंजूरी दे अथवा नहीं. राज्यपाल किसी भी तरह से बाध्य नहीं है कि वह ऐसे प्रस्ताव को मंजूर करे.'' डॉ.कश्यप ने यह भी कहा कि संविधानिक शिष्टाचार के अनुसार नामित सदस्य को किसी भी मंत्री पद पर नहीं होना चाहिए.''
मौजूदा मंत्री या मुख्यमंत्री के राज्यपाल द्वारा नामित होने की उम्मीद नहीं होती हालांकि अतीत में कुछ राज्यों में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं.'' कश्यप ने कहा कि, ''केंद्र सरकार की बात करें तो आजादी के बाद से लेकर अब तक केंद्रीय मंत्रीमंडल से नामित कोई भी सदस्य मंत्री पद पर नहीं रहा है. भले ही वह सत्तारूढ़ दल का ही क्यों न रहा हो. ''
कश्यप ने आज 'लोकमत समाचार' ' से बातचीत के दौरान कहा,'' हालांकि मंत्री पद पर आसीन नामित सदस्य के लिए इस तरह का कोई कानूनी या सांविधानिक बाध्यता नहीं है लेकिन कोई भी कैबिनेट राज्यपाल को इस तरह के प्रस्ताव को मंजूर कराने का दबाव नहीं डाल सकती यह राज्यपाल की अपनी विवेकाधिकार शक्ति है.''
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 163 में यह स्पष्ट है कि राज्यपाल इस स्थिति में अपने विवेक अनुसार निर्णय करे. राज्यपाल का आदेश अंतिम निर्णय और वैध माना जाएगा. राज्यपाल के निर्णय में किसी तरह के सवाल भी नहीं उठाए जा सकते. उन्होंने यह भी कहा कि राज्यपाल अगर कैबिनेट के प्रस्ताव को नामंजूर कर दे या स्वीकृत करे तो इस निर्णय को अदालत में चुनौती भी नहीं दी जा सकती.
उल्लेखनीय है कि शिवसेना-राकांपा-कांग्रेस गठबंधन सरकार के कैबिनेट ने 27 अप्रैल को उद्धव ठाकरे को विधान परिषद के लिए नामित किया है ठाकरे किसी भी सदन के सदस्य नहीं रहते हुए गत छह माह से मुख्यमंत्री पद पर आरूढ़ हैं. राज्य के राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी ने ठाकरे को प्रधानमंत्री मोदी के दरवाजे पर दस्तक देने के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है.
इस्तीफा देकर नामित होना कानूनी तौर पर मान्य लेकिन अनुचित उद्धव ठाकरे अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दें और किसी भी सदन के सदस्य रहे बगैर एक हफ्ते या दस दिनों बाद विधान परिषद के लिए उन्हें नामित किया जाए के सवाल पर कश्यप ने कहा कि यह कानूनी तौर पर मान्य होगा लेकिन अनुचित भी होगा.