महाराष्ट्र विधानसभा सचिव भाजपा विधायकों के निलंबन पर न्यायालय के नोटिस का जवाब नहीं देंगे

By भाषा | Updated: December 24, 2021 19:05 IST2021-12-24T19:05:46+5:302021-12-24T19:05:46+5:30

maharashtra assembly secretary will not respond to court notice on suspension of bjp legislators | महाराष्ट्र विधानसभा सचिव भाजपा विधायकों के निलंबन पर न्यायालय के नोटिस का जवाब नहीं देंगे

महाराष्ट्र विधानसभा सचिव भाजपा विधायकों के निलंबन पर न्यायालय के नोटिस का जवाब नहीं देंगे

मुंबई, 24 दिसंबर महाराष्ट्र विधानसभा के उपाध्यक्ष नरहरि झिरवाल ने शुक्रवार को विधानसभा सचिव से कहा कि वह एक साल के निलंबन के खिलाफ दायर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 12 विधायकों की याचिका पर जारी उच्चतम न्यायालय के नोटिस का जवाब नहीं दें।

विशेषज्ञों ने कहा है कि यह निर्णय संवैधानिक प्रावधानों के साथ-साथ 2007 में राज्य विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारियों के एक सम्मेलन में पारित एक प्रस्ताव को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।

इन 12 विधायकों को विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में इस साल पांच जुलाई को पीठासीन अधिकारी भास्कर जाधव के साथ कथित बदसलूकी करने के मामले में राज्य विधानसभा से निलंबित कर दिया गया था। झिरवाल ने शुक्रवार को सरकार को शीर्ष अदालत को उन घटनाक्रम से अवगत कराने का निर्देश दिया, जिसके कारण भाजपा के सदस्यों को निलंबित किया गया।

भाजपा नेता सुधीर मुनगंटीवार ने आश्चर्य जताया कि सरकार 12 मतदाताओं के निलंबित होते हुए विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव कैसे करा सकती है। महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि 12 विधायकों ने उनके निलंबन पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करते हुए अध्यक्ष के कार्यालय में आवेदन किया है। फडणवीस ने कहा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं कि अगले सप्ताह होने वाले अध्यक्ष पद के चुनाव से पहले उनका निलबंन रद्द कर दिया जाएगा।’’

झिरवाल ने बताया कि 21 दिसंबर को विधानसभा सचिवालय को उच्चतम न्यायालय का नोटिस मिला था। निलंबित किए गए 12 सदस्य संजय कुटे, आशीष शेलार, अभिमन्यु पवार, गिरीश महाजन, अतुल भातखलकर, पराग अलवानी, हरीश पिंपले, योगेश सागर, जय कुमार रावल, नारायण कुचे, राम सतपुते और बंटी भांगड़िया हैं।

उच्चतम न्यायालय ने 14 दिसंबर को महाराष्ट्र के 12 भाजपा विधायकों की याचिकाओं पर राज्य विधानसभा और प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था। शीर्ष अदालत ने कहा था कि उठाया गया मुद्दा, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों और राज्य सरकार की ओर से दिए गए तर्क ‘‘जिरह’’ योग्य हैं और ‘‘इन पर गंभीरता से विचार’’ करने की जरूरत है।

विधानसभा सचिवालय के एक सूत्र ने कहा कि झिरवाल का निर्देश विधायी मानदंडों के अनुरूप है। महाराष्ट्र विधानमंडल के पूर्व प्रधान सचिव अनंत कालसे ने पीटीआई-भाषा को बताया कि उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालयों से किसी भी नोटिस को स्वीकार नहीं करने का निर्णय 2007 में एक सम्मेलन के दौरान लिया गया था, जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने की थी।

कालसे ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 212 के अनुसार अदालतें विधायिका की कार्यवाही की पड़ताल नहीं करेंगी और किसी राज्य की विधायिका में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर सवाल नहीं किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद में यह भी उल्लेख किया गया है कि कोई भी अधिकारी या विधायिका का सदस्य, जिसके पास विधायिका में व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रक्रिया या कामकाज के संचालन की संविधान द्वारा या उसके तहत निहित शक्तियां हैं, वह किसी भी अदालत के अधिकार क्षेत्र के अधीन नहीं होगा।

पिछले साल, महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों ने प्रस्ताव पारित किया था कि पीठासीन अधिकारी रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी के खिलाफ विशेषाधिकार हनन मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी किसी भी नोटिस या समन का जवाब नहीं देंगे।

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