मध्य प्रदेश चुनावः 2013 की ऐतिहासिक हार के बावजूद कांग्रेस अबकी ढहा सकती है बीजेपी से ये "किला"

By राजेश मूणत | Published: October 31, 2018 11:36 AM2018-10-31T11:36:39+5:302018-10-31T12:27:51+5:30

साल 2013 के विधानसभा निर्वाचन में इन 86 सीटों में से कांग्रेस महज 10 सीटें ही जीत सकी थी। बीजेपी ने इन चुनावों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर मालवा की 50 सीटों में से 45 पर कब्जा जमाकर इतिहास बनाया था।

Madhya Pradesh Election: BJP stronghold Malwa and Madhya kshetra assembly election 2018 congress change dice | मध्य प्रदेश चुनावः 2013 की ऐतिहासिक हार के बावजूद कांग्रेस अबकी ढहा सकती है बीजेपी से ये "किला"

फाइल फोटो

मालवा और मध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश की राजनीति को सदैव दिशा देते रहे है। राज्य की सत्ता की राह को भाजपा के लिए आसान बनाने वाले इस क्षेत्र को भाजपा का गढ़ कहना अतिश्योक्ति नहीं है। प्रदेश के 230 विधानसभा क्षेत्रों में से मालवा और उससे लगे मध्य क्षेत्र में 86 सीटें है। उज्जैन-इंदौर-भोपाल- रतलाम-मन्दसौर सहित 10 दूसरे बड़े जिले इस क्षेत्र में आते है।

विगत 2013 के विधानसभा निर्वाचन में इन 86 सीटों में से कांग्रेस महज 10 सीटें ही जीत सकी थी। बीजेपी ने इन चुनावों में 50 फीसदी से ज्यादा वोट लेकर मालवा की 50 सीटों में से 45 पर कब्जा जमाकर इतिहास बनाया था। कांग्रेस को जबरदस्त पटकनी मिली थी और वह महज चार सीटें ही जीत पाई थी।

मोदी लहर में उड़ी पार्टियां

पिछली बार की बात की जाए तो विधानसभा निर्वाचन पर आने वाले लोकसभा निर्वाचन हावी हो गया था। आम आदमी मोदी लहर में डूब गया था। लोगों को विधानसभा निर्वाचन से ज्यादा चिंता मोदीजी को देश की सत्ता की बागडोर सौंपने की थी। लेकिन पिछली बार के चुनावों के विपरीत इस बार के चुनाव में मालवा क्षेत्र में सन्नाटा पसरा हुआ है। 

इन क्षेत्रों में ये हैं चुनावी मुद्दे

मतदाता चुनाव को लेकर उत्साहित नहीं है। लोगों को चुनाव के लिए आकर्षित कर सके ऐसा कोई मुद्दा भी राजनैतिक दल सामने नही ला पाए हैं। लम्बे समय से सत्ता में रहने के बाद सरकार के प्रति नाराजगी के कई बड़े मुद्दे है। इनमें से एक किसान आंदोलन के दौरान मन्दसौर में घटित गोलीकांड, केंद्र सरकार का सर्वोच्य न्यायालय को दरकिनार कर एससीएसटी एक्ट में किया गया संशोधन और ऑनलाइन व्यापार के कारण खुदरा व्यवसाय का चौपट हो जाना तीसरा बड़ा मुद्दा है ।  

कांग्रेस का दुर्भाग्य है की वह इन मुद्दों को भुनाने में नाकामयाब रही है। कांग्रेस इतनी करारी पराजयों के बाद भी संगठन के रूप में  सशक्त नहीं हो सकी। क्षेत्र में कांग्रेस के पास कोई प्रभावी चेहरा भी नहीं है। पिछली बार से एक बड़ा अंतर सपाक्स का मैदान में उतरना भी है । हालाँकि  सांगठनिक रूप से सपाक्स भी अभी तक जिला स्तर से आगे का ढांचा खड़ा नही कर पाई है । अब मतदाता के मौन को वैसे तो सत्तारूढ़ दल के खिलाफ माना जाता रहा है । लेकिन विचित्र स्थिति यह है की आम मतदाताओं में कांग्रेस के प्रति भी कोई सहानुभूति नही बन पाई है।

संगठन और शिवराज का चेहरा 

क्षेत्र में बीजेपी के पास संगठन और शिवराज का चेहरा है। चुनाव विश्लेषकों के मुताबिक कांग्रेस का सीएम चेहरा प्रोजेक्ट नहीं कर पाना उसके लिए हानिकारक है। दूसरी बड़ी बात  दिग्गी राजा को दरकिनार करना भी कांग्रेस के लिए अच्छे संकेत नहीं है । मालवा और मध्य क्षेत्र में वे कांग्रेस के छोटे- बड़े सभी नेताओं को व्यक्तिगत नाम से जानते है। कांग्रेस का यह कदम अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है। कुल मिलाकर मतदाताओ की बेरुखी किसके लिए लाभकारी और किसके लिए हानिकारक रहेगी यह समय ही बताएगा।

Web Title: Madhya Pradesh Election: BJP stronghold Malwa and Madhya kshetra assembly election 2018 congress change dice

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