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लोकसभा चुनाव 2019ः क्या सुपर स्टार कमल हासन और रजनीकांत सियासी एमजीआर बन पाएंगे?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: February 14, 2019 08:15 IST

तमिलनाडु लोस चुनाव 2019 दिलचस्प बनता जा रहा है. अब न तो एआईएडीएमके के पास जयललिता है और न ही डीएमके के पास करुणानिधि. कांग्रेस, बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों की तो यहां कोई खास भूमिका नहीं है, अलबत्ता कांग्रेस के पास डीएमके का साथ है, परन्तु बीजेपी को कोई मजबूत सहारा अब तक मिला नहीं है. 

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दक्षिण भारत में सिनेमाई सितारों के प्रति दीवानगी का ही नतीजा था कि यहां की सियासत की कमान एमजीआर, जयललिता, एनटीआर, करूणानिधि जैसे सितारों के हाथ में रही, लेकिन बीसवीं सदी की ऐसी सितारा आधारित दीवानगी का दौर गुजर चुका है, सिनेमा के प्रति तो अब भी दीवानगी है, लेकिन सुपर स्टार के प्रति दीवानगी की अब अग्नि-परीक्षा है, और इसीलिए बड़ा सवाल यह है कि- क्या सुपर स्टार कमल हासन और रजनीकांत, सियासी एमजीआर बन पाएंगे?

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता के निधन के बाद प्रदेश की पूरी सियासी तस्वीर बदल चुकी है. सुपर स्टार कमल हासन और रजनीकांत के राजनीति में प्रवेश के बाद तो अब पाॅलिटिकल पिच्चर और भी उलझ गई है. यह राजनीतिक तस्वीर 2019 के लोस चुनाव के बाद ही साफ हो पाएगी कि तमिलनाडु की सियासत की दिशा कौनसी होगी? 

हालांकि, कमल हासन का कहना है कि उनकी पार्टी तमिलनाडु की सभी 39 लोकसभा सीटों और पुदुच्चेरी की एक सीट पर चुनाव लड़ेगी, पर कामयाबी कितनी मिलेगी यह भविष्य के गर्भ में है.गैर-भाजपाई दलों को जहां कमल हासन से उम्मीदें थी, वहीं बीजेपी रजनीकांत पर आस लगाए है, परन्तु ऐसा लगता नहीं है कि किसी के भी सपने साकार होंगे.इसीलिए, तमिलनाडु लोस चुनाव 2019 दिलचस्प बनता जा रहा है. अब न तो एआईएडीएमके के पास जयललिता है और न ही डीएमके के पास करुणानिधि. कांग्रेस, बीजेपी जैसे राष्ट्रीय दलों की तो यहां कोई खास भूमिका नहीं है, अलबत्ता कांग्रेस के पास डीएमके का साथ है, परन्तु बीजेपी को कोई मजबूत सहारा अब तक मिला नहीं है. जैसा कि माना जा रहा है कि इस बार केन्द्र में गठबंधन सरकार बन सकती है, ऐसी स्थिति में कांग्रेस और बीजेपी, दोनों दलों को इस राज्य से सशक्त सहयोगी की जरूरत है.तमिलनाडु में शुरू से ही क्षेत्रीय दलों का असर रहा है. यहां तक कि 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत में जोरदार मोदी मैजिक के बावजूद, तमिलनाडु में तो जयललिता का ही जादू भारी पड़ा. अन्नाद्रमुक ने प्रदेश की 39 में से 37 सीटें जीती थीं. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यदि कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन होता है और शेष दल अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं तो यह गठबंधन अधिकतम सीटें जीत सकता है, लेकिन अन्नाद्रमुक-भाजपा गठबंधन हो जाता है तो इन सीटों में कमी तो होगी, बावजूद इसके, करीब दो दर्जन सीटें कांग्रेस-द्रमुक गठबंधन फिर भी जीत सकता है. लोस चुनाव में कमल हासन, रजनीकांत आदि वोट प्रतिशत को तो प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन कोई चमत्कार ही इन्हें जयललिता जैसी कामयाबी दे पाएगा.याद रहे, द्रमुक प्रमुख एमके स्टालिन, कांग्रेस के साथ लोकसभा चुनाव लड़ने और राहुल गांधी को पीएम का योग्य उम्मीदवार पहले ही घोषित कर चुके हैं. कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि कांग्रेस को एक सशक्त सहयोगी मिल गया है.एआईएडीएमके वैसे तो बीजेपी के साथ गठबंधन कर सकती है, लेकिन इसमें एआईएडीएमके को कुछ खास फायदा नजर नहीं आ रहा है, बल्कि कुछ क्षेत्रों में नुकसान भी हो सकता है, इसलिए हो सकता है कि चुनाव एआईएडीएमके अकेले लड़े, परन्तु चुनाव के बाद बीजेपी को समर्थन दे दे.सियासी संकेत यही हैं कि तमिलनाडु में सिनेमाई सुपर स्टारों के लिए अब राजनीतिक राह आसान नहीं है, लेकिन लोस सीटों की संख्या की दृष्टि से यह राज्य बेहद महत्वपूर्ण है. कांग्रेस-बीजेपी के लिए इस राज्य से प्रत्यक्ष तो कुछ खास हांसिल होता दिखाई नहीं दे रहा है, लेकिन सहयोगी दलों की कामयाबी केन्द्र में सरकार बनाने के काम आ सकती है.

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